
विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
Vaishakh sankashti chauth vrat katha: संकष्टी चतुर्थी व्रत जो हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है, जो कि भगवान गणेश को समर्पित है. धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से भक्तों के जीवन में आने वाले सारे संकट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है. वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है.
धार्मिक मान्यता है कि विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत और विधिपूर्वक पूजा करने से व्यक्ति को स्वास्थ्य, धन और सुख की प्राप्ति होती है. इस शुभ अवसर पर व्रत रखने के साथ ही कथा का पाठ भी किया जाता है, जिसके बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है. ऐसे में आइए पढ़ते हैं वैशाख संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा क्या है?
विकट संकष्टी चतुर्थी 2025
आज यानी 16 अप्रैल को विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाएगा. पंचांग के अनुसार, वैशाख कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 16 अप्रैल को दोपहर 1:16 बजे से शुरू होकर अगले दिन 17 अप्रैल को दोपहर 3:23 बजे तक रहेगी. आज गणपति बप्पा की पूजा का शुभ समय सुबह 5:55 से 9:08 बजे तक है. बुधवार के दिन पड़ने के कारण यह व्रत और शुभ माना जा रहा है.
चंद्रोदय का समय
संकष्टी चतुर्थी व्रत पूरा करने के लिए रात में चंद्रमा को अर्घ्य देना बहुत जरूरी माना जाता है. 16 अप्रैल को चंद्रोदय रात 10:00 बजे होगा. अर्घ्य देने के लिए दूध, जल और सफेद पुष्पों का इस्तेमाल करना चाहिए.
वैशाख विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (Vikata Sankashti Chaturthi Vrat Katha)
एक पौराणिक कथा के अनुसार, किसी समय में एक राज्य में धर्मकेतु नाम का ब्राह्मण रहता था, जिसकी दो पत्नियां थीं – सुशीला और चंचला. सुशीला बहुत धार्मिक थी, जबकि चंचला का धर्म से कोई खास लगाव नहीं था. लगातार व्रत करने के कारण सुशीला बहुत कमजोर हो गई थी, जबकि चंचला का स्वास्थ्य अच्छा था. कुछ समय बाद सुशीला को एक पुत्री हुई, तो चंचला को पुत्र की प्राप्ति हुई.
यह देख चंचला ने सुशीला से कहा कि तुम इतने व्रत करती हो फिर भी तुम्हें पुत्री प्राप्त हुई, जबकि मैंने तो कुछ भी नहीं किया लेकिन फिर भी मुझे पुत्र की प्राप्ति हुई. चंचला की ये बातें सुनकर सुशीला को बहुत बुरा लगा. एक बार जब विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत आया, तो सुशीला ने पूरे मन से यह व्रत किया. सुशीला की भक्ति से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे एक पुत्र होने का वरदान दिया.
सुशीला की ये कामना शीघ्र पूरी हुई, लेकिन दुर्भाग्यवश उसके पति धर्मकेतु की मृत्यु हो गई. पति की मृत्यु के बाद चंचला और सुशीला अलग-अलग घर में रहने लगीं. सुशीला पति के घर में रहकर ही अपने बच्चों का पालन करती थी. सुशीला का पुत्र बड़ा होकर बहुत ज्ञानी बना, जिससे उसने अपना घर धन-धान्य से भर दिया. जबकि चंचला का पुत्र बहुत आलसी था.
ये देख चंचला को सुशीला के पुत्र से ईर्श्या होने लगी. एक बार मौका मिलते ही चंचला ने सुशीला की पुत्र को कुएं में धक्का दे दिया. लेकिन व्रत के कारण भगवान गणेश ने सुशीला के पुत्र की रक्षा की. चंचला ने जब ये देखा कि भगवान गणेश स्वयं सुशीला के परिवार की रक्षा कर रहे हैं, तो उसे अपने कर्मों पर बड़ा पछतावा हुआ और उसने तुरंत सुशीला से माफी मांगी.
फिर सुशीला के कहने पर चंचला ने भी विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया, जिससे उसके घर पर गणेश जी की कृपा बरसने लगी और उसका पुत्र भी काम करने लगा. ऐसे में जो भी विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखता है, भगवान गणेश स्वयं उसके परिवार की हर परेशानी से रक्षा करते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं.
(Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है. टीवी9 भारतवर्ष इसकी पुष्टि नहीं करता है.)