
डोनाल्ड ट्रंप और जिनपिंग. (फाइल फोटो)
US-China Trade War:दुनिया की 2 सबसे बड़ी इकोनॉमी अमेरिका और चीन के बीच ट्रेड वॉर बढ़ता ही जा रहा है. इस तनातनी का असर अब दोनों देशों की प्रमुख कंपनियों पर दिखने लगा है. हाल ही में चीन ने एक कड़ा कदम उठाते हुए अमेरिकी विमान निर्माता Boeing को बड़ा झटका दिया है, जिससे कंपनी की परेशानी और बढ़ गई है.
दरअसल, ड्रैगन ने ट्रेड और टैरिफ वॉर के बीच ट्रंप को बड़ा झटका देते हुए अपनी एयरलाइनों को निर्देश दिया है कि वे अमेरिकी विमान निर्माता Boeing से और कोई भी नए विमान की डिलीवरी न लें. इसके अलावा, अमेरिकी कंपनियों से विमान पुर्जों और उपकरणों की खरीद को भी रोकने के आदेश दिए गए हैं. यह कदम अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर 145% तक के भारी टैरिफ लगाने के जवाब में लिया गया है.
चीन का फैसला ट्रंप को पड़ा भारी
चीन ने इसके प्रतिरोध में अमेरिकी वस्तुओं पर 125% का जवाबी टैरिफ लागू किया है, जिससे अमेरिका में बने विमानों और उनके पुर्जों की लागत दुगुनी से भी अधिक हो गई है. इसका सीधा असर Boeing पर पड़ा है क्योंकि चीन वैश्विक विमान बाजार का लगभग 20% हिस्सा रखता है. 2018 में Boeing के कुल विमानों में से लगभग 25% चीन को भेजे गए थे, लेकिन व्यापारिक तनाव के चलते हाल के वर्षों में कोई बड़ा ऑर्डर नहीं मिला है.
यह स्थिति Boeing के लिए और भी मुश्किल हो गई है क्योंकि पहले से ही कंपनी की छवि को नुकसान हुआ है. 2019 में दो घातक हादसों के बाद चीन सबसे पहले था जिसने Boeing 737 Max विमानों को ग्राउंड किया. इसके बाद 2024 में एक और घटना हुई जब एक उड़ान के दौरान दरवाज़े का प्लग बाहर निकल गया, जिससे सुरक्षा और गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठे.
अमेरिका को कैसे लगेगा झटका?
बोइंग अमेरिका की सबसे बड़ी निर्यातक कंपनी है और लगभग 150,000 अमेरिकी लोगों की रोजी रोटी इस कंपनी पर निर्भर है. लेकिन पिछले 6 सालों से कंपनी संघर्ष कर रही है. कंपनी को 2018 से अब तक 51 बिलियन डॉलर का घाटा हो चुका है. खास बात ये है कि कंपनी के दो-तिहाई विमान अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को बेचे जाते हैं, और कंपनी के लिए सबसे बड़ा बाजार चीन है.
बोइंग के मुताबिक, अगले 20 साल में चीन को लगभग 8,830 नए विमानों की जरूरत होगी, लेकिन इस फैसले के बाद बोइंग को इस मार्केट से काफी नुकसान हो सकता है और ड्रैगन का फैसला उसके लिए झटका भी है.
कैसे और कहां से खरीदेगा चीन जेट?
चीन अब एयरबस जैसे यूरोपीय निर्माताओं की ओर रुख कर रहा है और अमेरिकी विकल्पों से दूरी बना रहा है. इसके अलावा, चीन उन एयरलाइनों की भी मदद करने के रास्ते तलाश रहा है जो Boeing विमानों को किराए पर ले चुकी हैं और अब बढ़ी हुई लागत से जूझ रही हैं.
हालांकि, इस टकराव से यह भी स्पष्ट होता है कि चीन अभी भी बड़े पैमाने पर यात्री विमानों के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भर है. ऐसे में अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का असर केवल व्यापारिक मोर्चे तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह वैश्विक विमानन उद्योग और आपूर्ति शृंखलाओं पर भी व्यापक प्रभाव डालेगा.