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Friday, April 25, 2025
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भारत के हथियारों से होगा संघर्ष? आर्मेनिया-अजरबैजान टकराव के मुहाने पर!


एशिया और यूरोप की सीमाओं पर एक और टकराव का खतरा मंडरा रहा है. इस बार युद्ध में भारत की भूमिका सीधे तौर पर न होते हुए भी अत्यंत महत्वपूर्ण बन चुकी है. आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच दशकों पुरानी दुश्मनी एक बार फिर उबाल पर है, और अगर हालात काबू में नहीं आए, तो यह टकराव एक युद्ध का रूप ले सकता है, ऐसा युद्ध जिसमें भारत से मिले हथियार निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं.

हाल ही में आर्मेनिया और ईरान ने सीमा पर सैन्य अभ्यास किया, वहीं अजरबैजान तुर्की और इज़राइल के साथ मिलकर रणनीतिक मोर्चेबंदी में जुटा है. काकेशस क्षेत्र में रणनीतिक संतुलन बेहद नाजुक है, जहां ईरान, रूस, तुर्की, अमेरिका और अब भारत जैसे शक्तिशाली देशों की भी इनडायरेक्ट भूमिका बढ़ रही है.

आर्मेनिया-अजरबैजान संघर्ष केवल एक क्षेत्रीय विवाद नहीं रह गया है, यह एक बड़े भू-राजनीतिक युद्ध की प्रस्तावना बन सकता है. भारत इस समीकरण में एक उभरती सामरिक शक्ति के रूप में भूमिका निभा रहा है. शांति के पक्षधर के रूप में भी और सामरिक आपूर्ति स्रोत के रूप में भी.

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भारत-अर्मेनिया रक्षा सहयोग: एक नया मोर्चा

भारत और आर्मेनिया के बीच बीते कुछ सालों में रक्षा सहयोग काफी तेजी से बढ़ा है। 2020 के युद्ध के बाद रूस और अमेरिका से निराश होकर आर्मेनिया ने भारत की ओर रुख किया। भारत न केवल कूटनीतिक रूप से बल्कि सामरिक दृष्टि से भी अर्मेनियाई सहयोगी बनकर उभरा है।

काकेशस क्षेत्र युद्ध की दहलीज पर खड़ा है। आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच चल रही दशकों पुरानी दुश्मनी अब ऐसे मोड़ पर पहुंच चुकी है, जहां दोनों देश अपने-अपने सैन्य साझेदारों के साथ युद्ध की तैयारियों में जुटे हैं। दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही देश अब भारत से हथियार खरीद रहे हैं। आर्मेनिया ने सार्वजनिक रूप से और अजरबैजान गुप्त समझौतों के जरिए।

प्रमुख भारतीय रक्षा सौदे

# आकाश एयर डिफेंस सिस्टम: आर्मेनिया भारत से 720 मिलियन डॉलर में यह प्रणाली खरीद चुका है, जो दुश्मन के लड़ाकू विमानों और ड्रोन को रोकने की क्षमता रखती है.

# पिनाका मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम: युद्ध के मैदान में निर्णायक मारक क्षमता प्रदान करने वाला यह स्वदेशी रॉकेट सिस्टम अब अर्मेनियाई सेना के बेड़े में शामिल है.

# होवित्जर तोपें और एंटी-टैंक रॉकेट: पहाड़ी और कठिन इलाकों में अजरबैजान के बख्तरबंद वाहनों के खिलाफ अर्मेनिया को बढ़त दिलाने के लिए.

# एंटी-ड्रोन सिस्टम और गोला-बारूद: आधुनिक युद्ध के इस निर्णायक पहलू पर भी भारत ने आर्मेनिया को उच्च तकनीक से लैस किया है.

भारत के लिए रणनीतिक मायने

# काकेशस में प्रभाव: आर्मेनिया के साथ मजबूत संबंध भारत को यूरेशिया में रणनीतिक गहराई और एक नया भौगोलिक अवसर प्रदान करते हैं.

# प्रतिस्पर्धा में बढ़त: जहां पाकिस्तान तुर्की और अजरबैजान के करीब है, वहीं भारत का अर्मेनिया को समर्थन देना इस त्रिकोण को संतुलित करता है।

# रक्षा निर्यात में तेजी: भारत अपनी रक्षा क्षमताओं को आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत वैश्विक स्तर पर स्थापित करना चाहता है, और आर्मेनिया के साथ सौदे इस दिशा में एक बड़ी सफलता हैं.

क्या होगा अगर युद्ध छिड़ गया?

अगर आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच पूर्ण युद्ध छिड़ता है, तो यह केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा। ईरान, तुर्की, इज़राइल, रूस और संभवतः पश्चिमी देश इस संघर्ष में अपने हितों की रक्षा के लिए कदम उठा सकते हैं। ऐसे में भारत द्वारा भेजे गए हथियार इस युद्ध में निर्णायक साबित हो सकते हैं चाहे वह सीमा की सुरक्षा हो या जवाबी हमले की क्षमता.

भारत-आर्मेनिया रक्षा सौदों की टाइमलाइन

# सितंबर 2020: पहला बड़ा सौदा: भारत से स्वदेशी हथियार प्रणालियों की ओर झुकाव हुआ। शुरुआत छोटे हथियारों और गोला-बारूद से हुई.

# सितंबर 2022: पिनाका मल्टीपल लॉन्च रॉकेट सिस्टम (MLRS): सौदे की राशि करीब 245 मिलियन डॉलर (लगभग 2000 करोड़ रुपये) यह प्रणाली पहाड़ी इलाकों में लंबी दूरी तक हमला करने में सक्षम है. साथ में खरीदे गए एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल, बारूद, और विशेष गोला-बारूद.

# नवंबर 2022: 15 आकाश एयर डिफेंस सिस्टम का ऑर्डर: सौदे की राशि: 720 मिलियन डॉलर, ये सिस्टम दुश्मन के ड्रोन, हेलिकॉप्टर और लड़ाकू विमानों को मार गिराने में सक्षम हैं.

# 2023: भारत में अर्मेनियाई डिफेंस अटैशे की नियुक्ति: इससे रक्षा सहयोग और तेज हुआ.

# मार्च 2024: अधिक होवित्जर तोपें और एंटी-ड्रोन सिस्टम की खरीद: सौदे की राशि: 600 मिलियन डॉलर तक पहुंची. भारत निर्मित DRDO टेक्नोलॉजी और निजी कंपनियों की भागीदारी रही.

भारत अब केवल एक क्षेत्रीय शक्ति नहीं रहा, वह वैश्विक हथियार आपूर्तिकर्ता बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है. आर्मेनिया और अजरबैजान के बीच चल रहे तनाव में भारतीय हथियारों की भूमिका निर्णायक हो सकती है. हालांकि भारत युद्ध का पक्षधर नहीं है, लेकिन रक्षा उद्योग के इस नए युग में उसकी भागीदारी अब वैश्विक भू-राजनीति को प्रभावित कर रही है.





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