fbpx
Thursday, April 24, 2025
spot_img

बूटा मलिक ने कैसे अमरनाथ गुफा को खोजा और कोयला बन गया था सोना? पढ़ें पूरी कहानी


बूटा मलिक ने कैसे अमरनाथ गुफा को खोजा और कोयला बन गया था सोना? पढ़ें पूरी कहानी

2023 की अमरनाथ यात्रा में 4.5 लाख और 2025 में 5 लाख श्रद्धालु पहुंचे थे. फोटो: PTI

अमरनाथ यात्रा-2025 के लिए रजिस्टेशन शुरू हो गया है. श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड के अनुसार, इस साल तीन जुलाई से नौ अगस्त तक यात्रा होगी, जिसके लिए श्रद्धालु ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं. आइए जान लेते हैं कि क्या है अमरनाथ यात्रा की कहानी और कौन था इससे जुड़ा बूटा मलिक?

जम्मू-कश्मीर में स्थित अमरनाथ गुफा में हर साल श्रद्धालु बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए जाते हैं. भोलेनाथ का यह मंदिर हिन्दुओं की आस्था के पवित्र केंद्रों में से एक है. यहां बर्फ से शिवलिंग का निर्माण अमरनाथ पहाड़ पर स्थित गुफा में होता है, जिसकी ऊंचाई 3888 मीटर है और साल के ज्यादातर समय यह बर्फ से ढंका रहता है. इसीलिए साल में एक ही बार गर्मी के मौसम में यात्रा का आयोजन हो पाता है.

शिव ने पार्वती को सुनाई थी अमरकथा

हिन्दू धर्म कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने इसी स्थान पर माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था. चूंकि यहां पर शिव ने अमर कथा सुनाई थी, इसीलिए यहां भोले नाथ का नाम अमरनाथ पड़ गया. इसे अमरेश और अमरेश्वर नाम से भी जाना जाता है. दरअसल, ऐसा माना जाता है कि अमर कथा सभी को नहीं सुनाई जा सकती थी. इसीलिए भगवान शिव और पार्वती दूरदराज सूनसान में स्थित इस गुफा तक पहुंचे थे. उन्होंने नंदी को पहलगाम में छोड़ दिया था. अपने सिर पर धारण चंद्रमा को चंदनवाड़ी में छोड़ा था. शेषनाग झील के किनारे पर गले में लिपटे सांपों को छोड़ा था. अब यात्रा के दौरान इन्हीं स्थानों पर तीर्थयात्री ठहरते हैं.

Amarnath Yatra Registration 2025

अमरनाथ यात्रा तीन जुलाई से नौ अगस्त तक चलेगी. फोटो: PTI

सदियों से है अमरनाथ गुफा का अस्तित्व

इतनी सारी सावधानियां बरतने के बावजूद दो कबूतरों ने अमर कथा सुन ली थी और अमर हो गए थे. इसीलिए अमरनाथ गुफा में पाए जाने वाले कबूतरों को शुभ माना जाता है. कहा जाता है, अमरनाथ गुफा में शिव लिंग स्यंभू हैं यानी इन्हें कोई वहां स्थापित नहीं करता है. अमरनाथ गुफा का अस्तित्व सदियों से माना जाता है. कश्मीर का इतिहास बताने वाली कल्हण की किताब राजतरंगिणी में कम से कम दो बार अमरनाथ का जिक्र मिलता है. यह किताब 12वीं सदी में लिखी गई थी.

कभी खो गई थी अमरनाथ गुफा

ऐसा माना जाता है कि सदियों से चली आ रही अमरनाथ गुफा की यात्रा एक वक्त पर रुक गई थी, क्योंकि गुफा खो गई थी. इसके बाद अमरनाथ गुफा की खोज एक मुसलमान चरवाहे बूटा मलिक ने की थी, जो भेड़-बकरियां चराते थे. यह कश्मीर के राजा गुलाब सिंह के शासन काल की बात है. बूटा मलिक संयोगवश अमरनाथ गुफा के पास पहुंच गए थे.

Snow Shivling At Amarnath

अमरनाथ गुफा लगभग 150 मीटर की परिधि में है. फोटो: PTI

साल 1820 में मुस्लिम चरवाहे को मिली

यह साल 1820 की बात है. बूटा मलिक भेड़-बकरिया चराते हुए अमरनाथ गुफा के पास तक पहुंच गए थे. उन्हें गुफा की महत्ता का अंदाजा नहीं था. हालांकि, वहां काफी सर्दी थी. तभी वहां पर बूटा मलिक की मुलाकात एक साधु से हुई. सर्दी के कारण साधु ने बूटा मलिक को जलाने के लिए कुछ कोयले दिए थे. जलाने के बजाय बूटा मलिक उन कोयलों को अपने साथ लेकर घर लौट आए. वहां पर देखा तो सारे कोयले वास्तव में सोने में बदल गए थे. इससे खुश होकर साधु को धन्यवाद देने के लिए बूटा मलिक वापस गुफा की ओर भागे तो वहां साधु तो नहीं मिले पर बर्फ के बने बाबा बर्फानी के दर्शन हुए.

बूटा मलिक के परिवार को मिला सेवा का सौभाग्य

इसके बाद इस बात की जानकारी धीरे-धीरे उनके गांव के लोगों को लगी. फिर यह खबर बनकर कश्मीर के तत्कालीन राजा गुलाब सिंह और महाराजा हरि सिंह के कानों तक पहुंची. बूटा मलिक से इस बारे में जानकारी ली गई तो उन्होंने गुफा और साधु की पूरी कहानी बयां कर दी. बूटा मलिक के बताए अनुसार गुफा की खोज की गई तो वहां पर वास्तव में बर्फ के बने शिवलिंग के दर्शन हुए.

बर्फ के बने होने के कारण ही भोले नाथ यहां बाबा बर्फानी भी कहे जाते हैं. शिवलिंग मिलने पर उनकी देखभाल का जिम्मा बूटा मलिक और उनके परिवार को दे दिया गया था. तभी से उनकी पीढ़ियां अमरनाथ गुफा में बाबा बर्फानी की सेवा करती आ रही हैं.

Amarnath Yatra 2025

बाबा बर्फानी से कई फुट दूरी पर गर्जेश, भैरव और पार्वती के भी अलग-अलग हिमखंड बनते हैं. फोटो: PTI

इसलिए पूर्णिमा से शुरू होती है यात्रा

ऐसा माना जाता है कि भोलेनाथ और माता पार्वती इस गुफा में सावन महीने की पूर्णिमा को आए थे. इसीलिए अमरनाथ की यात्रा भी हिन्दू महीने की आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर पूरे सावन चलती रहती है. रक्षाबंधन (पूर्णिमा) को ही गुफा में बने हिम शिवलिंग के पास छड़ी मुबारक स्थापित की जाती है. इसी मान्यता के चलते जुलाई से शुरू होकर मौसम अच्छा रहने पर अगस्त के पहले हफ्ते तक श्रद्धालु बाबा बर्फानी के दर्शन के लिए जाते हैं.

ऐसे होता है शिवलिंग का निर्माण

अमरनाथ गुफा लगभग 150 मीटर की परिधि में है. इसके अंदर ऊपर पड़ी बर्फ से पिघलकर पानी की बूंदें टपकती रहती हैं. गुफा के अंदर बीचोबीच एक जगह पर इन्हीं टपकने वाली बूंदों के ठंडा होकर जमने से करीब दस फुट का शिवलिंग बनता है. सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि शिवलिंग ठोस बर्फ का होता है, जबकि गुफा में दूसरे स्थानों पर टपकने वाली बूंदों से भी बर्फ बनती है पर वह कच्ची होती और भुरभुरी हो जाती है. इसके अलावा बाबा बर्फानी से कई फुट दूरी पर गर्जेश, भैरव और पार्वती के भी अलग-अलग हिमखंड बनते हैं.

यह भी पढ़ें:इंदौर के महाराजा का दुर्लभ हीरा नीलामी तक कैसे पहुंचा? पढ़ें 430 करोड़ के गोलकोंडा ब्लू डायमंड का सफर





RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

Most Popular