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Wednesday, April 23, 2025
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वक्फ कानून: सुप्रीम कोर्ट में भी पक्ष-विपक्ष, सुनवाई से पहले जान लें कौन किस तरफ?


वक्फ कानून: सुप्रीम कोर्ट में भी पक्ष-विपक्ष, सुनवाई से पहले जान लें कौन किस तरफ?

वक्फ कानून: सुप्रीम कोर्ट में भी पक्ष-विपक्ष, सुनवाई से पहले जान लें कौन किस तरफ?

कल यानी बुधवार, 16 मार्च को समूचे देश की नजरें सुप्रीम कोर्ट की तरफ होंगी. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस पीवी संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्नवनाथन की पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी जिनके जरिये हाल ही में संसद से पारित हुए वक्फ संशोधन कानून को चुनौती दी गई है. अल्लाह के नाम दान की गई संपत्ति को वक्फ कहते हैं. देश भर में मौजूद ऐसी तकरीबन 8 लाख 70 हजार संपत्तियों को नए तरीके से मैनेज करने के लिए केंद्र सरकार वक्फ संशोधन कानून लेकर आई थी. जिस पर देश भर में विवाद का आलम है. इन संपत्तियों की कुल कीमत 1 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा आंकी जा रही है. जो साढ़े 9 लाख एकड़ जमीन पर फैली हुई है.

मोदी सरकार के ज्यादातर फैसलों ही की तरह, इस कानून पर भी लोगों की राय काफी बंटी हुई है. विपक्षी पार्टियां, ताकतवर मुस्लिम संगठन और मुसलमान आबादी का एक बड़ा तबका इसे अपनी धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप बता रहा है. जबकि भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दल वक्फ की संपत्ति को बेहतर तरीके से मैनेज करने के लिए नए एक जरूरी कानून बता रहे हैं. वक्फ संशोधन कानून-2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट कल सुबह 11 बजे से सुनवाई कर सकता है. एआईएमआईएम अध्यक्ष असद्दुदीन औवैसी, आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतउल्ला खान, अरशद मदनी समेत कुल 10 लोगों की याचिकाओं को कल अदालत सुनेगी.

केंद्र का कैविएट पड़ेगा भारी?

अब तक इस विवाद में दो दर्जन से भी ज्यादा याचिकाएं कानून के खिलाफ खिलाफ जबकि पक्ष में चार याचिकाएं दाखिल हो चुकी है. लोकसभा और राज्यसभा से तीन और चार अप्रैल को कानून के पारित होने के बाद इसे 5 अप्रैल को लागू कर दिया गया. सात अप्रैल को मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने जमीयत उलमा-ए-हिंद के वकील कपिल सिब्बल को भरोसा दिया था कि इस मामले को जल्द सुना जाएगा.लगातार दायर हो रही याचिकाओं के बीच इस मामले में केंद्र सरकार ने अदालत में एक कैविएट दाखिल किया है. कैविएठ दायर करने से मुराद ये है कि इन याचिकाओं पर कोई फैसला सुनाने या फिर रोक लगाने से पहले अदालत सरकार का भी पक्ष जरूर सुने.

कानून के खिलाफ कौन-कौन

वक्फ संशोधन कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने वालों में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद जैसे मुस्लिम संगठन सर-ए-फेहरिश्त हैं. इनके अलावा दर्जनों पार्टी और नेताओं ने भी खुलकर कानून का विरोध अदालत में किया है. राजनीतिक दलों और नेताओं की तरफ से कानून के खिलाफ अदालत में झंडा असद्दुदीन ओवैसी बुलंद किए हुए हैं.

ओवैसी के अलावा अदालत ने सुनवाई के लिए जिन लोगों की याचिकाओं को सूचीबद्ध किया है, उनमें आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, अरशद दनी, समस्त केरला जमीअतुल उलेमा, अंजुम कादरी, तैयब खान सलमानी, मोहम्मद शफी, मोहम्मद फजलुररहीम और राष्ट्रीय जनता दल के नेता मनोज झा शामिल हैं.

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआरसीपी ने वक्फ संशोधन कानून की संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. वाईएसाआरसीपी से पहले भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, अपने महासचिव डी. राजा के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी है. नेता-अभिनेता और तमिलनाडु के राजनीतिक दल टीवीके के मुखिया विजय भी संशोधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं.

इनके अलावा, समाजवादी पार्टी नेता जियाउर रहमान बर्क भी अदालत पहुंचे हैं. जम्मू कश्मीर की कमोबेश सभी क्षेत्रीय दल इस कानून के विरोध में हैं. मसलन – पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस ने कानून का विरोध करने की बात की है. जबकि मीरवाइज उमर फारूक ने अदालत में ऑल इंडिया पर्सनल बोर्ड का समर्थन करने का फैसला किया है.

कानून के खिलाफ दलीलें क्या

एक तरफ सरकार नए कानून को वक्फ संपत्तियों के बेहतर मैनेजमेंट, जवाबदेही और पारदर्शिता के लिए जरुरी बता रही है. सरकार का कहना है कि इससे वक्फ की संपत्तियों का बेहतर इस्तेमाल होगा. लेकिन कानून का विरोध करने वाले इसे धार्मिक आजादी, समानता के अधिकार का उल्लंघन बता रहे हैं. दिल्ली सल्तनत के जमाने से शुरू हुए वक्फ की आज की तारीख में मौजूद देश भर की संपत्तियों को मैनेज करने के लिए जब संसद में वोटिंग हुई तो लोकसभा में पक्ष में 288 जबकि विरोध में 232 वोट पड़े थे. वहीं, राज्यसभा में इस बिल के पक्ष में 132 और इसके खिलाफ 95 वोट पड़े थे. विपक्षी पार्टियां कानून का विरोध कर रही हैं. वक्फ संशोधन का विरोध करने वाले इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30 और 300-ए का उल्लंघन बता रहे हैं.

वक्फ के समर्थन में कौन-कौन?

जाहिर सी बात है कि सबसे पहले तो इस कानून के समर्थन में सरकार और उसके वकीलों का पूरा पैनल होगा. इसके अलावा,वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई से पहले ही देश की 6 राज्य सरकारों ने इस मामले में हस्तक्षेप याचिका दायर किया है. असम, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, हरियाणा और महाराष्ट्र की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केंद्र की तरफ से लाए गए नए कानून का समर्थन किया है.

राजस्थान सरकार इस मामले में एक पक्षकार बनना चाहती है. उसने अदालत में कहा है कि कानून का विरोध करने वाले जरूर कुछ संवैधानिक चिंताओं की तरफ ध्यान अदालत का दिला रहे हैं लेकिन ये याचिकाएं राज्य सरकार उन चिंताओं या फिर जमीनी हकीकत को उठाने में विफल रही है, जिनका सामना राज्य सरकारें कर रही हैं.

कानून के समर्थन में क्या दलीलें?

राज्य सरकारों ने याचिकाकर्ताओं का विरोध करते हुए कहा है कि इस कानून को व्यापक विचार-विमर्श, संसदीय समितियों की सलाह और सभी स्टेकहोल्डर्स से बातचीत, चर्चा कर लाया गया है. जिसका मकसद वक्फ बोर्ड में सुधार करना है.\राजस्थान सरकार ने इसे संवैधानिक तौर पर दुरुस्त बताया है. साथ ही, कहा है कि ये कहीं से भी भेदभाव करने वाला कानून नहीं है. राज्य सरकारों ने ये भी कहा है कि इस संशोधन ने उस चिंता को भी दूर किया है जहां मूल कानून की धारा 40 में वक्फ बोर्ड को किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित करने का अधिकार था.

याचिकाकर्ताओं की इस दलील पर कि ये संशोधन संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 की अवहेलना करता है, इन राज्य सरकारों ने अदालत में कहा है कि ये संशोधन सभी वर्गों के साथ बराबरी के साथ पेश आने वाला है. वहीं, इस संशोधन पर कि ये कानून अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन करता है, राज्य सरकारों ने कहा है कि ये याचिकाएं कहीं से भी किसी धर्म विशेष की प्रथाओं या फिर उनके धार्मिक मामलों के मैनेजमेंट में हस्तक्षेप नहीं करती.

इसका मकसद केवल संपत्ति का सही तरीके से देखभाल करने के लिए एक खांका पेश करना है. असम ने वक्फ संशोधन की उस धारा का बचाव किया है जो संविधान की पांचवी और छठी अनुसूची में प्रतिबंधित इलाकों में किसी भी तरह के वक्फ घोषित करने पर रोक लगाता है. छठी अनुसूची के तहत असम के आठ जिले आते हैं. राज्य सरकारों का कहना है कि वे ही असम में इस कानून को जमीन पर उतारने वालों में हैं, इसलिए उनको जरूर सुना जाना चाहिए.

वक्फ पर कोर्ट के 2 अहम फैसले

वक्फ को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई फैसले दे चुकी है. जिनमें 1954 का रतीलाल पानाचंद गांधी बनाम बॉम्बे स्टेट फैसला और 1998 का सय्यद अली बनाम आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड फैसला काफी अहम है. इन दोनों ही फैसलों में अदालत ने वक्फ और उसकी बालादस्ती की बात की थी. 1954 वाले फैसले में अदालत ने कहा था कि धार्मिक संपत्ति का नियंत्रण किसी धर्मनिरपेक्ष संस्था को देना, उस धर्म विशेष के लोगों को धार्मिक और संपत्ति से जुड़े अधिकारों का उल्लंघन है.

वहीं, 1998 के सय्यद अली बनाम आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड हैदराबाद फैसले में अदालत ने वक्फ को इस्लाम धर्म के मातहत की जाने वाला एक दान का तरीका मानते हुए इसे परमानेंट यानी स्थाई माना था. अदालत ने तब कहा था कि एक बार अगर वक्फ संपत्ति घोषित हो गई तो फिर वो वक्फ ही रहेगी. नए कानून को चुनौती देने वाले बारहां इन बातों का उदाहरण दे रहे हैं.





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