
वक्फ और सुप्रीम कोर्ट
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने का सिलसिला लगातार जारी है. प्रख्यात वकील और हिंदू अधिकार कार्यकर्ता हरि शंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने भी वक्फ कानून के कई प्रावधानों को चुनौती देते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत का रूख किया है. सुप्रीम कोर्ट में इन याचिकाओं पर कल बुधवार को सुनवाई शुरू होनी है.
सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ के कई प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक नई याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार किए जाने पर अपना रजामंदी जताई. प्रधान न्यायाधीश जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच ने एडवोकेट विष्णु शंकर जैन की ओर से दाखिल इस दलील पर गौर किया कि नई याचिका दायर की गई है और उसे भी सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाए.
ओवैसी समेत कई अन्य ने दाखिल की याचिकाएं
इससे पहले AIMIM के नेता और सांसद असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर याचिका समेत 10 याचिकाएं पहले से ही मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की 3 जजों की बेंच के समक्ष 16 अप्रैल (बुधवार) को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हैं.
एडवोकेट विष्णु शंकर जैन की ओर से हरिशंकर जैन और मणि मंजुल ने नई याचिका दाखिल की है. उन्होंने केंद्र सरकार, केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय और केंद्रीय वक्फ समिति के खिलाफ यह याचिका लगाई है.
‘वक्फ के कई प्रावधान संविधान का उल्लंघन’
दाखिल याचिका में वक्फ अधिनियम द्वारा संशोधित वक्फ अधिनियम, 1995 के कई प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. इसमें कहा गया है कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 27 और 300 ए का उल्लंघन करते हैं क्योंकि ये मुस्लिम समुदाय को अनुचित लाभ देने के भारतीय समाज में असंतुलन और असामंजस्य पैदा करते हैं.
याचिका में यह भी कहा गया है कि इन कानूनी प्रावधानों के जरिए वक्फ बोर्ड को काफी अधिक शक्तियां हासिल हो गई हैं, जिसकी वजह से देशभर में बड़े पैमाने पर सरकारी और निजी भूमि पर कब्जा हो गया है. याचिका में कहा गया, “यहां यह उल्लेख करना आवश्यक हो गया है कि पूरे देश में आम जनता लोगों की संपत्ति और सार्वजनिक संपत्तियों पर धोखे से या जबरन कब्जा करने के अवैध कृत्यों से व्यथित है. उन्होंने अलग-अलग हाई कोर्ट्स में 120 से अधिक याचिकाएं दाखिल कर रखी हैं और वे फैसले का इंतजार कर रही हैं.”
केंद्रीय गृह मंत्री के 2025 के संसदीय वक्तव्य का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया कि वक्फ-रजिस्टर्ड भूमि में 2013 में 18 लाख एकड़ के आंकड़े से 2025 में 39 लाख एकड़ तक भारी वृद्धि दर्ज की गई है. याचिका में कहा गया कि बयान में वक्फ भूमि रिकॉर्ड में विसंगतियों, विशेष रूप से पट्टे पर दी गई संपत्ति के आंकड़ों के गायब होने के संबंध में चिंताओं को भी उजागर किया गया है.
‘ग्राम पंचायत-सार्वजनिक भूमि वापस लेने का निर्देश’
यही नहीं यह भी मांग की गई कि इसमें यह घोषित किया जाए कि गैर-मुस्लिमों को वक्फ अधिनियम के प्रावधानों के अधीन नहीं होना चाहिए. केंद्र को वक्फ के रूप में दर्ज ग्राम पंचायत और अन्य सार्वजनिक भूमि को वापस लेने का निर्देश दिया जाना चाहिए.
याचिका के अनुसार, “यह उल्लेख करना भी प्रासंगिक है कि साल 1947 में विभाजन के बाद बड़ी संख्या में मुस्लिम पाकिस्तान चले गए. बड़ी संख्या में हिंदू भी अपनी बहुमूल्य संपत्ति और सामान छोड़कर पाकिस्तान के नए बने क्षेत्र से भारत वापस चले आए. संसद ने पाकिस्तान से भारत आने वाले प्रवासियों को समायोजित करने के लिए प्रशासन संपत्ति अधिनियम 1950 पारित किया. हालांकि पाकिस्तान चले गए मुसलमानों की संपत्ति भारत सरकार के अधीन है.”
‘पाकिस्तान गए लोगों की संपत्ति धार्मिक संपत्ति नहीं’
“पाकिस्तान चले गए मुसलमानों के कब्जे वाली संपत्तियों का अब कोई धार्मिक चरित्र नहीं है और अपनी पवित्रता खो चुका है. वे अब वक्फ या धार्मिक संपत्ति के रूप में नहीं हैं. इसलिए, खाली कराई गई संपत्तियों को धार्मिक संपत्ति नहीं माना जा सकता. साथ ही इसका कोई भी हिस्सा वक्फ बोर्ड को नहीं सौंपा जा सकता.”
पिता-पुत्र की यह जोड़ी अयोध्या मामले में सबसे आगे रही थी, फिर वे ज्ञानवापी मस्जिद-काशी विश्वनाथ मंदिर, कृष्णजन्मभूमि-शाही ईदगाह (मथुरा) और संभल मस्जिद से जुड़ विवादों में हिंदू याचिकाकर्ताओं के लिए आरोपों की अगुवाई करते हुए सक्रिय रूप से शामिल रहे हैं.