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Thursday, April 24, 2025
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बिहार चुनाव में क्या होगी RLM की भूमिका? पार्टी नेताओं के साथ 3 दिन तक मंथन करेंगे उपेंद्र कुशवाहा


बिहार चुनाव में क्या होगी RLM की भूमिका? पार्टी नेताओं के साथ 3 दिन तक मंथन करेंगे उपेंद्र कुशवाहा

राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाह (फाइल फोटो)

बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी तेज होने लगी है. राजनीतिक पार्टियों के नेता सियासी समीकरण सेट करने में जुट गए हैं. पटना से लेकर दिल्ली तक बैठकों का दौर चल रहा है. इस बीच जानकारी सामने आई है कि राष्ट्रीय लोक मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा तीन दिनों की शिविर लगाएंगे. इस शिविर में राजनीतिक भविष्य पर चर्चा होगी. शिविर का आयोजन पश्चिमी चंपारण के बाल्मीकि नगर में किया जाएगा.

पटना में मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए राज्यसभा के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि राज्य में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर उनकी पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा ने शिविर को आयोजित करने का निर्णय लिया है. शिविर का आयोजन इसी माह की 26, 27 और 28 अप्रैल को पश्चिमी चंपारण के बाल्मीकि नगर में किया जाएगा. शिविर में पार्टी के भविष्य और राजनीतिक भविष्य पर चर्चा होगी. इस आयोजन में पार्टी के राष्ट्रीय, प्रदेश और जिला स्तर के लगभग 250 लोग भाग लेंगे.

शिविर में क्या-क्या होगा?

उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि शिविर में राज्य के चुनावी मुद्दों के साथ ही राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर भी चर्चा होगी. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पार्टी की तरफ से राज्य की जनसंख्या के अनुसार परिसीमन के मुद्दे पर भी विचार करेगी.

आरएलएम के मुखिया ने बिहार विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे के मुद्दे पर भी अपनी बातों को रखा. उन्होंने कहा कि टिकट बंटवारे को लेकर बातचीत बाद में होगी. उनका कहना था कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में कोई भी नाराज नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया जीतन राम मांझी के मुंह में सवाल देकर कुछ भी कहवा लेती है. डीलिमिटेशन के मुद्दे पर हम बिहार के हक को लेकर रहेंगे. इस मुद्दे पर किसी हालत में आखिरी दम तक लड़ाई लड़ी जाएगी.

वोट के समान मूल्य के मूल सिद्धांत के खिलाफ है

उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि संविधान की यह मूल भावना है कि एक व्यक्ति एक वोट का अधिकार हो और सबके वोट का मूल्य बराबर हो. यही सही मायने में लोकतंत्र का उचित सम्मान है. जबकि आज स्थिति ये है कि दक्षिण के 21 लाख लोग मिलकर एक सांसद चुनते हैं वहीं उत्तर भारत में 31 लाख लोग मिलकर एक सांसद चुन रहे हैं. जो वोट के समान मूल्य के मूल सिद्धांत के विरुद्ध है.

कांग्रेस के कारनामों को किया उजागर

उन्होंने कहा कि इस संबंध में कांग्रेस के कारनामों को उजागर करते हुए उन्होंने कहा कि आजादी के बाद केवल 1951,1961 और 1971 में संविधान के मूल भावना के अनुसार परिसीमन किया गया. दुर्भाग्य की बात है कि उसके बाद साल 1976 में आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने संविधान में संशोधन कर न केवल 25 वर्षों के लिए परिसीमन के नियमों में संशोधन कर दिया और चुनाव क्षेत्रों की संख्या पर कैप लगा दिया ताकि संख्या बढ़ाई नहीं जा सके.





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