देश भर में सरकार नौकरियों में महिलाओं की भागीदारी को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. इस रिपोर्ट की माने तो पुलिस बल में 90 प्रतिशत महिलाएं जूनियर रैंक पर काम कर रही हैं, यहां सीनियर लेवल पर पुरुष अधिकारी काम कर रहे हैं. इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की मानें तो पिछले कुछ सालों में इन आंकड़ों में बढ़ोतरी देखने को मिली है. रिपोर्ट के अनुसार 52% सब-इंस्पेक्टर, 25% ASI और 13% महिलाएं कांस्टेबल हैं.
रिपोर्ट के अनुसार भारत के पुलिस बल के महानिदेशक और पुलिस अधीक्षक जैसे बड़े पदों पर 1,000 से भी कम महिलाएं हैं, जबकि पुलिस बल में कार्यरत सभी महिलाओं में से 90 प्रतिशत महिलाएं कांस्टेबल के पद पर काम कर रही हैं. लैंगिग विविधता में केवल कर्नाटक ही ऐसा राज्य है जहां इसके नियमों को पूरी तरह से फॉलो किया गया है.
मंगलवार को जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस में अधिकारी स्तर पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है. पुलिस में 2.4 लाख महिलाओं में से केवल 960 भारतीय पुलिस सेवा (IPS) रैंक में हैं, जबकि 24,322 गैर-IPS अधिकारी जैसे उप अधीक्षक, निरीक्षक या उप-निरीक्षक के पद पर हैं. भारतीय पुलिस सेवा (IPS) की अधिकृत ताकत 5,047 अधिकारी हैं.
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दक्षिण वाले राज्यों ने किया कमाल
रिपोर्ट के अनुसार, कानून प्रवर्तन में लैंगिक विविधता की आवश्यकता के बारे में बढ़ती जागरूकता के बावजूद, एक भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश पुलिस बल में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाया है. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु ने कर्नाटक की तरह ही काम किया, जबकि पांच दक्षिणी राज्यों ने बेहतर विविधता, बुनियादी ढांचे और क्षेत्रों में स्टाफिंग के कारण दूसरों से बेहतर प्रदर्शन किया. पुलिस बल में, एससी की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत और एसटी की 12 प्रतिशत है, जो अनुमानित आंकड़े से बहुत कम है.
एक जज के ऊपर 15 हजार केस
रिपोर्ट में पाया गया कि निचली न्यायपालिका में 38 प्रतिशत न्यायाधीश महिलाएं थीं, जबकि उच्च न्यायालयों में यह संख्या गिरकर 14 प्रतिशत रह गई. इसके साथ ही जजों की कमी से भी न्यायपालिका जूझ रही है.
भारत में प्रति दस लाख लोगों पर केवल 15 न्यायाधीश हैं, जो विधि आयोग की 1987 की 50 की संस्तुति से बहुत कम है. इलाहाबाद हाईकोर्ट में हर जज पर 15,000 केस पेंडिंग हैं. न्याय व्यवस्था को लेकर सबसे खराब हालत देखने को मिली है. लगभग सभी हाईकोर्ट में 33 प्रतिशत पद खाली हैं,जिला कोर्ट में 21 प्रतिशत स्टाफ की कमी है. इलाहाबाद और मध्य प्रदेश जैसे हाईकोर्ट में हर जज के ऊपर 15,000 मामले तक हैं. जिला न्यायालय के न्यायाधीश औसत 2,200 मामले संभाल रहे हैं.
मध्य प्रदेश की हालत सुधरी
मध्य प्रदेश में सबसे ज़्यादा 133 महिला पुलिस उपाधीक्षक (DySP) हैं. लगभग 78 प्रतिशत पुलिस स्टेशनों में अब महिला हेल्प डेस्क हैं, 86 प्रतिशत जेलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा है और कानूनी सहायता पर प्रति व्यक्ति खर्च 2019 और 2023 के बीच लगभग दोगुना होकर 6.46 रुपये पर पहुंच गया है. इसी अवधि में जिला न्यायपालिका में महिलाओं की हिस्सेदारी भी बढ़कर 38 प्रतिशत हो गई है.