
जिस देश से नजदीकियां बढ़ा रहा चीन, वहां भारत का कितना जलवा?
कई देश ऐसे हैं, जो पूरी तरह से जानते हैं कि कौन सा देश उनका भला सोचता है और कौन उनके साथ चालाकी कर रहा है? इन्हीं देशों में एक नाम वियतनाम का भी है. ये देश ड्रैगन के चीन के डर के कारण ही उससे अच्छे संबंध बनाए है. वहीं, भलाई करने वाले भारत पर भी भरोसा करता है. ट्रंप से आर-पार करने का मूड बना चुके जिनपिंग इन दिनों वियतनाम के दौरे पर हैं. हनोई में उनका खूब तगड़ा स्वागत भी हुआ.
जिनपिंग की इस यात्रा से एक बार फिर से कई सवाल उठने लगे हैं. वहीं, एक सवाल यह भी है कि चीन को मैनेज करने वाले इस देश में भारत का कितना दबदबा है. शी जिनपिंग की यह चौथी वियतनाम यात्रा है और यह ऐसे समय में हो रही है जब भारत और वियतनाम के रिश्ते कई क्षेत्रों में मजबूती से आगे बढ़ रहे हैं. जहां एक ओर चीन अपने प्रभाव को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रहा है, वहीं भारत भी रणनीतिक और आर्थिक स्तर पर वियतनाम के साथ अपने रिश्तों को लगातार गहराता जा रहा है.
मुश्किल में हमेशा खड़ा रहा भारत
भारत और वियतनाम के बीच रिश्तों की नींव ऐतिहासिक है. भारत ने वियतनाम की फ्रांस से आजादी का समर्थन किया था. इतन ही नहीं, भारत ने अमेरिका की सैन्य उपस्थिति का विरोध भी किया था. साल 1975 में भारत अखंड वियतनाम को सबसे पहले मान्यता देने वाले देशों में शामिल रहा. 2007 में दोनों देशों ने अपने रिश्तों को ‘रणनीतिक साझेदारी’ का दर्जा दिया और 2016 में इसे ‘व्यापक रणनीतिक साझेदारी’ में तब्दील कर दिया.
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कितना बड़ा व्यापारिक साझेदार?
आर्थिक क्षेत्र में भी दोनों देशों का सहयोग लगातार बढ़ रहा है. 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 14.82 अरब डॉलर तक पहुंचा. वियतनाम भारत का 23वां सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और ASEAN देशों में 5वां. हालांकि चीन और अमेरिका की तुलना में यह व्यापारिक आंकड़ा अभी भी काफी छोटा है, लेकिन इसमें विस्तार की काफी संभावनाएं हैं. भारत-वियतनाम साझेदारी सप्लाई चेन को ज्यादा मजबूत और विविध बनाने में भी अहम भूमिका निभा सकती है.
वियतनाम की सुरक्षा के लिए तत्पर भारत
रक्षा सहयोग भारत-वियतनाम रिश्तों का एक और महत्वपूर्ण स्तंभ है. दोनों देशों के बीच PASSEX, VINBAX, और MILAN जैसे अभ्यास नियमित होते हैं. 2022 में दोनों ने 2030 तक के लिए रक्षा साझेदारी की संयुक्त दृष्टि पर दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए. भारत द्वारा वियतनाम को मिसाइल कोरवेट INS KIRPAN सौंपना इसी कड़ी का हिस्सा था. भारत ने वियतनाम को समुद्री सुरक्षा मजबूत करने के लिए 300 मिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन भी दी है.
चीन की नजदीकियां भारत के लिए खतरा
भौगोलिक दृष्टि से वियतनाम की स्थिति भारत के लिए काफी रणनीतिक है. दक्षिण चीन सागर और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में यह एक अहम देश है. वहीं, ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में भी वियतनाम भारत के लिए अहम है. भारतीय कंपनियां दक्षिण चीन सागर में वियतनामी जल क्षेत्र में तेल और गैस परियोजनाओं में निवेश कर रही हैं. यह क्षेत्र ऊर्जा स्रोतों से समृद्ध है और भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में सहायक हो सकता है. हालांकि, चीनी दावों के कारण यहां खतरे भी मौजूद हैं.
दो हजार साल पुराने रिश्ते
दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध दो हजार साल पुराने हैं. बौद्ध धरोहर इन संबंधों की नींव है. भारत सरकार द्वारा ‘माई सन’ विश्व धरोहर स्थल के संरक्षण के लिए पत्र जारी किया गया है और भारत-वियतनाम के बीच लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है. मेकोंग-गंगा सहयोग और क्विक इम्पैक्ट प्रोजेक्ट्स के जरिए शिक्षा, पर्यटन और संस्कृति के क्षेत्र में साझेदारी मजबूत हो रही है.
जब भारत आए थे वियतनाम के पीएम
सितंबर 2024 में वियतनाम के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान कई महत्वपूर्ण समझौते हुए. 2024-28 के लिए योजना बनाई गई, जिसमें सामरिक सहयोग को लागू करने की रूपरेखा तय की गई. इसके अलावा रेडियो-टेलीविजन सहयोग, लोटल, गुजरात में नेशनल मैरीटाइम हेरिटेज कॉम्प्लेक्स का विकास, और न्हा ट्रांग में आर्मी सॉफ्टवेयर पार्क का उद्घाटन जैसे घोषणाएं रिश्तों को नई ऊंचाई तक ले जा रही हैं.
डर के साए में चल रहा वियतनाम
हालांकि, कुछ चुनौतियां भी हैं. वियतनाम चीन को नाराज करने से बचना चाहता है, जिससे वह भारत के साथ रक्षा सौदों में संकोच करता है. उदाहरण के लिए, भारत की ओर से दी गई सैन्य ऋण सुविधा का वह पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर पाया और आकाश मिसाइल खरीदने से परहेज किया. इसके अलावा व्यापारिक आंकड़े भी चीन और अमेरिका की तुलना में काफी कम हैं.
किसका कितना जलवा?
लेकिन रणनीतिक दृष्टि से देखें तो भारत और वियतनाम के हित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में काफी मिलते-जुलते हैं. दोनों देश इस क्षेत्र में उभरती प्रतिस्पर्धा के बीच स्थायित्व और संतुलन बनाए रखने के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं. भारत की एक्ट ईस्ट नीति और इंडो-पैसिफिक विज़न में वियतनाम एक केंद्रीय साझेदार के रूप में उभरता दिख रहा है. ऐसे में, चीन की वियतनाम से नजदीकियों के बावजूद भारत का प्रभाव फिलहाल स्थिर और प्रभावशाली बना हुआ है.