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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसके तहत लखनपुर-उधमपुर खंड पर निर्माण पूरा होने तक राष्ट्रीय राजमार्ग-44 पर लखनपुर और बन टोल प्लाजा पर टोल शुल्क में 80 फीसदी कम करने का आदेश दिया था. हाई कोर्ट ने टोल कम करने का आदेश देते हुए कहा था, अगर सड़क की स्थिति खराब है तो टोल वसूलना अनुचित है.
जस्टिस अभय ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की ओर से दाखिल अपील पर यह अंतरिम आदेश दिया है. साथ ही पीठ ने मामले में संबंधित पक्ष को नोटिस जारी कर पक्ष रखने का निर्देश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 19 मई को होगी.
राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर टोल शुल्क विवाद
पीठ ने अपने आदेश में कहा है, हम सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद फिलहाल हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा रहे हैं. हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका में विचार करते हुए जिसमें दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेसवे के पूरी तरह से चालू होने तक लखनपुर और बन टोल प्लाजा पर टोल टैक्स में 80 फीसदी की कटौती करने का आदेश दिया था.
एनएचएआई की याचिका और सुप्रीम कोर्ट का फैसला
एनएच-44 उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर का हिस्सा है और श्रीनगर से कन्याकुमारी तक फैला हुआ है. याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में कहा था कि उधमपुर से लखनपुर तक राजमार्ग 2021 से निर्माणाधीन था और लगभग 70 प्रतिशत खंड अधूरा रह गया था. याचिका में राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क नियमों के नियम 3(1) और 3(2) का हवाला देते हुए तर्क दिया गया कि निर्माण पूरा होने के बाद ही टोल टैक्स वसूला जाना चाहिए.
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने देश में अंतरराज्यीय बाल तस्करी के बढ़ते मामलों पर सख्त रुख अपनाते हुए बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने13 आरोपियों की जमानत रद्द कर दी है. जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि न्याय के लिए सामूहिक पुकार, शांति और सद्भाव की उसकी इच्छा को महत्वहीन नहीं किया जा सकता.
पीठ ने ये भी साफ किया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा आरोपियों को जमानत देने में गंभीर खामियां रहीं. इस तरह के गंभीर अपराध में ऐसे फैसले नहीं लिए जाने चाहिए थे. अदालत ने अपराध की प्रकृति को बेहद गंभीर करार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को निर्देश भी दिया कि वो तस्करी के शिकार बच्चों को ‘बच्चों के निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009’ के तहत स्कूलों में दाखिला दिलाएं और उनकी शिक्षा में हरसंभव सहायता जारी रखें.