
भारत में खाद्य मांग तेजी से बढ़ रही है.
देश की जनता जिस कदर आगे बढ़ रही है उससे आने वाले सालों में खाने-पीने की चीजों की डिमांड बेतहाशा बढ़ने वाली है. बड़ा सवाल ये है कि इन चीजों की डिमांड कैसे पूरी होगी क्योंकि खेती करने वाली जमीन का दायरा लगातार घटता जा रहा है, ऐसे में ये एक बड़ी चिंता खड़ी कर सकता है. दरअसल, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से संबद्ध नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चरल इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च (आईसीएआर-एनआईएपी) ने एक विश्लेषण किया गया, जिसमें चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.
विश्लेषण में कहा गया है कि साल 2047 तक भारत की कुल खाद्य मांग मौजूदा मांग से दोगुनी से अधिक हो जाएगी. फलों और पशु उत्पादों (दूध, मांस) की मांग तीन से चार गुना बढ़ने की संभावना है. इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए आवश्यक कृषि भूमि घटकर 176 मिलियन हेक्टेयर रह जाएगी, जो फिलहाल लगभग 180 मिलियन हेक्टेयर है.
फलों की मांग 3 फीसदी बढ़ेगी
रिपोर्ट में फल, सब्जियां, दालें और तिलहन जैसी प्रमुख फसलों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. आने वाले समय में भारतीय आहार पैटर्न में भी बड़ा बदलाव आएगा. रिपोर्ट (नीति पत्र) के अनुसार, वर्ष 2047 तक फलों की मांग सालाना 3 प्रतिशत की दर से बढ़कर 233 मिलियन टन और सब्जियों की मांग 2.3 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़कर 365 मिलियन टन हो जाएगी.
दालों की मांग होगी दोगुनी
रिपोर्ट के मुताबिक, दालों की मांग दोगुनी होकर 49 मिलियन टन तक पहुंच सकती है, जबकि खाद्य तेलों और चीनी की मांग क्रमशः 50 प्रतिशत और 29 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है. जबकि इसी अवधि में प्रति किसान औसत खेती की जोत का आकार वर्तमान लगभग एक हेक्टेयर से घटकर केवल 0.6 हेक्टेयर रह जाएगा. इसके अलावा, शुद्ध बोया गया क्षेत्र घटकर 138 मिलियन हेक्टेयर तक आ सकता है.