
सुप्रीम कोर्ट
रेप के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की एक और टिप्पणी पर नाराजगी जताई है. सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि आरोपी को जज जमानत तो दे दें, लेकिन ऐसी टिप्पणी क्यों करते हैं. ऐसे मामलों में जज को अधिक सावधान रहना चाहिए.
SG तुषार मेहता ने कहा कि न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए. एक आम आदमी यह समझेगा कि जज कानूनी बारीकियों से परिचित नहीं है. रेप की कोशिश के मामले में टिप्पणी के बाद हाई कोर्ट के जज ने एक और मामले में टिप्पणी की थी. जज ने कहा था कि महिला ने खुद मुसीबत को आमंत्रित किया और इसके लिए वह खुद जिम्मेदार भी है.
पहले भी जता चुका है नाराजगी
इससे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 17 मार्च को अपने आदेश में कहा था स्तन पकड़ना और पायजामे की डोरी को तोड़ना रेप या बलात्कार का प्रयास नहीं माना जाता. न्यायालय ने कहा कि ऐसा अपराध यौन उत्पीड़न के दायरे में आता है, जिसके लिए कम सज़ा का प्रावधान है.
हाईकोर्ट की टिप्पणी पर नाराजगी के बीच सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए आदेश पर रोक लगा दी. पीड़िता की मां ने भी हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया.