हिन्दी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन आज जिस मुकाम पर हैं उन्हें वो सबकुछ हासिल है, जिसके बारे में हर कोई बस सपना देखता है. लेकिन अमिताभ की एक ऐसी ख्वाहिश भी है जो आज तक नहीं पूरी हुई. ये सुनने में काफी अजीब लगता है कि सबकुछ हासिल करने वाले बिग बी की भी कोई ऐसी ख्वाहिश है जो आजतक अधूरी है. अब उस ख्वाहिश की स्मृतियों से जुड़ी सैकड़ों करोड़ों की तिजोरी 16 अप्रैल को खुलने जा रही है.
हिंदी फिल्मों के शहंशाह अमिताभ बच्चन के पास आज गाड़ी है, बंगला है, दौलत है, शौहरत है लेकिन उनकी एक ऐसी ख्वाहिश जो आज भी उनके सपनों में दबे पांव से उस वक्त दस्तक देती है जब अमिताभ अपने बचपन को याद करते हैं. अमिताभ बच्चन की ये ख्वाहिश थी ‘रानी बेतिया’, जिनकी एक झलक देखने की ललक अधूरी ही रह गई. वो ‘रानी बेतिया’ जो आज भी अमिताभ के लिए एक राज हैं, एक कुतुहल है, जिसे वो मुंबई आने के पहले अपने गृह नगर प्रयागराज छोड़ आये.
अमिताभ, प्रयागराज और रानी बेतिया की कोठी
11 अक्टूबर 1942 को प्रयागराज के बरार नर्सिंग होम में जन्मे हरिवंश राय बच्चन के जिस बेटे को दुनिया अमिताभ के नाम से जानती है उसे उनके पिता ने नाम दिया था ” इन्कलाब ” लेकिन हरिवंशराय बच्चन के नजदीकी कवि सुमित्रानंदन पन्त ने उसे इन्कलाब से अमिताभ कर दिया जिसका मतलब होता है वो प्रकाश जिसका कभी अंत नहीं होता. अमिताभ के इस प्रकाश से आज भले ही उनकी हर एक ख्वाहिश पूरी हो गई हो लेकिन बिग बी की एक ख्वाहिश ऐसी भी थी जो आज तक पूरी नहीं हो पाई. इसका ताल्लुक प्रयागराज की उस आलीशान कोठी से है जिसे ” बेतिया -रानी ” की कोठी कहा जाता है.
प्रयागराज के साहित्यकार यश मालवीय बताते हैं कि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्मकथा “अधूरे ख़्वाब ” में इस कोठी का बेहद रूमानी अंदाज में जिक्र किया है. ये वो दौर था जब अमिताभ प्रयागराज के इसी 7 क्लाइव रोड स्थित बंगले में अपने परिजनों के साथ किराये पर रहते थे. क्लाइव रोड से अपने स्कूल बोयज हाईस्कूल पढ़ने जाते समय अमिताभ इसी रानी बेतिया की कोठी के पास रुककर उसकी चहारदीवारी से अंदर झांककर देखते थे की आखिर कौन हैं रानी बेतिया, कैसी हैं रानी बेतिया और इसी कुतुहल को लिए वो स्कूल के लिए आगे बढ़ जाते थे. यह प्रसंग खुद हरिवंश राय बच्चन ने अपनी आत्म कथा ” बसेरे से दूर” में लिखा है.
रानी बेतिया की कोठी का क्या तिलस्म है?
बाल मनोविज्ञान के जानकार डॉ जनक पाण्डेय के मुताबिक अमिताभ के पिता का साहित्यिक परिवेश और घर में होने वाला बाल विमर्श भी इस तरह के किरदार और कौतुहल को जन्म देता है. परियों की दुनिया भी इसी का हिस्सा होती है. अमिताभ 1956 में प्रयागराज छोड़कर यहां से शेरवुड और फिर वहां से मुंबई चले गए लेकिन ” रानी बेतिया ” कौन थीं, रानी बेतिया की कोठी का क्या तिलस्म है, अमिताभ के लिए आज भी यह रहस्य है. बालमन के अपने कल्पना लोक से निकलकर अमिताभ आज भी अपनी सपनों में इस कोठी के बारे में सोचते हैं इस बात का जिक्र उन्होंने कई बार अपने इंटरव्यू में किया है.
कल खुलेगी रानी बेतिया की तिजोरी
रानी बेतिया कौन थीं ये राज़ अमिताभ आज तक नहीं जान पाए, लेकिन आज जिस जगह ये कोठी थी वहां श्रम न्यायालय का दफ्तर बना दिया गया है. इस कोठी के पुराने समय से रखवाली करते आये माधव बताते हैं की शहर के बीचोंबीच 22 बीघे में बनी इस आलिशान कोठी को 1951 में रानी बेतिया के मरने के बाद कोर्ट्स ऑफ वार्ड ने अपने कब्जे में ले लिया और जिला प्रशासन आज भी इस कोठी का किराया 267 रुपये मासिक लेती है. लेकिन अब बिहार राजस्व परिषद के अधिकारियों की एक टीम प्रयागराज पहुंच चुकी है. इस टीम ने पिछले दिनों प्रयागराज का दौरा किया और यहां के अधिकारियों के साथ मीटिंग्स की और बेतिया राज घराने की संपत्तियों को चिन्हित करने का आग्रह किया था.
इसी कड़ी में टीम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के त्रिवेणी शाखा में भी गई जहां रानी जानकी कुंअर की तिजोरी रखी है. इस तिजोरी में रानी के बेशकीमती हीरे-जवाहरात और गहने रखे हैं, जिनकी कीमत 200 करोड़ आंकी जा रही है. राजघराने के कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज भी होने की उम्मीद है. इस तिजोरी को प्रशासन 16 अप्रैल 2025 यानी कल खोलने की तैयारी में है. माना जा रहा है कि तिजारी के साथ राजघराने को लेकर कई राज भी इसमें बाहर आएंगे.