
गोलकोंडा ब्लू डायमंड को अब तक खोजे गए सबसे मूल्यवान और दुर्लभ नीले हीरों में से एक माना जाता है.
भारत की शाही विरासत का एक दुर्लभ नगीना द गोलकोंडा ब्लू डायमंड पहली बार नीलामी के लिए रखा जाएगा. जिनेवा में क्रिस्टी के मैग्नीफिसेंट ज्वेल्स नीलामी में इसको इसी साल 14 मई को शामिल किया जाएगा. द गोलकोंडा ब्लू डायमंड किसी दौर की इंदौर और बड़ौदा के महाराजाओं की अमानत थी, जो अब नीलामी तक पहुंच गई है.
गोलकोंडा ब्लू डायमंड एक चमकीला 23.24 कैरेट का नीला हीरा है. इसकी कीमत 430 करोड़ रुपये तक आंकी गई है. आइए जान लेते हैं गोलकोंडा ब्लू डायमंड की पूरी कहानी.
सबसे दुर्लभ नीले हीरों में से एक है
गोलकोंडा ब्लू डायमंड को अब तक खोजे गए सबसे मूल्यवान और दुर्लभ नीले हीरों में से एक माना जाता है. द गोलकोंडा ब्लू की नीलामी भारत के लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसका सीधा-सीधा संबंध भारतीय राजघरानों के साथ है. वास्तव में गोलकोंडा ब्लू डायमंड दुनिया भर में मशहूर गोलकोंडा की खदान में पाया गया था. गोलकोंडा की खदानें दुनिया भर में सबसे प्रतिष्ठित हीरा खदानों में शुमार हैं.
दुनियाभर में हीरों के लिए प्रसिद्ध हैं गोलकोंडा की खदानें
गोलकोंडा की खदानों की प्रसिद्धि का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका जिक्र चौथी शताब्दी की संस्कृति की पांडुलिपियों में भी मिलता है. 327 बीसी में सिकंदर भी भारत से कई हीरे यूरोप ले गया था. इसके साथ ही पश्चिम में इन दुर्लभ हीरों ने अपनी अलग पहचान बनाई. 1292 एडी में मार्को पोलो ने अपने यात्रा वृतांतों में भारतीय हीरों की खूबसूरती का जिक्र किया है.
वर्तमान तेलंगाना में स्थित गोलकोंडा की खदानें गोलकोंडा ब्लू ही नहीं, ऐसे और भी तमाम हीरे दुनिया को देने के लिए जानी जाती हैं. इनमें दुनिया के सबसे चर्चित हीरे कोहिनूर और होप का नाम भी शामिल है.
किसी जमाने में इंदौर के महाराजा की संपत्ति था
इन्हीं खदानों में से किसी एक से गोलकोंडा ब्लू डायमंड भी निकला था. यह डायमंड किसी जमाने में इंदौर के महाराजा यशवंत राव होलकर द्वितीय के पास होता था. वह साल 1920 और 30 के दशक के दौरान अपनी महानगरीय लाइफस्टाइल के लिए प्रसिद्ध राजा थे. बताया जाता है कि साल 1923 में फ्रांसीसी जौहरी चौमेट से इस असाधारण नीले हीरे को जड़वाकर एक कंगन बनवाया गया था. महाराजा यशवंत राव होलकर द्वितीय के पिता ने इसी की तरह से प्रसिद्ध दो और महत्वपूर्ण गोलकोंडा हीरों इंदौर पर्ल्स को पाने के बाद अधिकृत किया था.
हीरे के हार वाली पेंटिंग से अमर हो गया
एक दशक बाद 1930 के दशक में महाराजा के आधिकारिक जौहरी मौबौसिन ने इसको एक ग्रैंड नेकलेस में पिरोया, जिसने इंदौर पर्ल्स के साथ शाही कलेक्शन को और भी चमकदार बना दिया. जाने-माने फ्रांसीसी चित्रकार बर्नार्ड बाउटेट डी मोनवेल ने इंदौर की महारानी के एक पोट्रेट में इस हार को भी चित्रित किया था, जिसने इसे अमर कर दिया. इसके जरिए उस दौर का ग्लैमर और कल्चरल फ्यूजन भी दुनिया के सामने आया.
साल 1947 में अमेरिका ले जाया गया गोलकोंडा ब्लू
साल 1947 में गोलकोंडा ब्लू डायमंड अमेरिका की राह पर चला, जब न्यूयॉर्क के जाने-माने जौहरी हैरी विंस्टन ने इसे खरीद लिया. हैरी विंस्टन ने गोलकोंडा ब्लू डायमंड को इसके ही आकार वाले एक सफ़ेद हीरे के साथ मिलाकर एक ब्रोच में जड़ दिया. इसके बाद वह ब्रोच वापस घूमते हुए बड़ौदा के महाराजा के पास पहुंच गया और एक बार फिर से शाही परिवार का हिस्सा बन गया. इस तरह गोलकोंडा ब्लू डायमंड निजी हाथों में जाने से ठीक पहले भारत के शाही वंश के पास आ गया. हालांकि, इसके बाद गोलकोंडा ब्लू डायमंड को कई बार निजी हाथों में बेचा गया.
अंगूठी में जड़ा है ऐतिहासिक हीरा
अब 23.24 कैरेट के इसी चमकीले नीले हीरे को नीलामी के लिए रखा जा रहा है, जिसका अनुमानित मूल्य 300 से 430 करोड़ रुपए के बीच बताया जा रहा है. इसकी नीलामी 259 साल पुरानी कंपनी क्रिस्टीज कर रही है, जिसने पहले भी गोलकोंडा की खदानों से निकले कई प्रसिद्ध हीरे नीलाम किए हैं. इन हीरों में आर्कड्यूक जोसेफ, प्रिंसि और विटल्सबाख आदि नाम शामिल हैं. वर्तमान में इस ऐतिहासिक भारतीय मूल के गोलकोंडा ब्लू डायमंड को पेरिस के मशहूर डिजाइनर जेएआर ने एक आकर्षक अंगूठी में जड़ा है.
दोबारा मिलना मुश्किल है ऐसा हीरा
क्रिस्टीज के ज्वेलरी विभाग के अंतरराष्ट्रीय प्रमुख राहुल कडाकिया ने इस नीलामी को लेकर एक बयान जारी किया है. इसमें कहा कि इस स्तर (गोलकोंडा ब्लू डायमंड) के असाधारण और शाही रत्न वास्तव में जीवन में एक ही बार बाजार में आते हैं. अपनी शाही विरासत, असाधारण रंग और आकार के साथ गोलकोंडा ब्लू डायमंड सच में दुनिया के दुर्लभतम नीले हीरों में से एक बन जाता है. इसका मतलब यह है कि ऐसा हीरा दोबारा मिलना बहुत मुश्किल है.
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