तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष
अन्नामलाई.
तमिलनाडु बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई ने कर्नाटक में नक्सलियों के आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति पर चिंता जताई है. उन्होंने नक्सलियों के आत्मसमर्पण की नीति और पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार का यह रवैया नीति की सच्चाई पर संदेह पैदा कर सकता है.
अन्नामलाई ने आत्मसमर्पण प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार का दृष्टिकोण नीति की अखंडता पर संदेह पैदा कर सकता है. उन्होंने विक्रम गौड़ा मुठभेड़ का उदाहरण दिया, जिसने स्थानीय लोगों को चिंतित कर दिया है. उन्होंने कहा, ‘ऐसी खबरें हैं कि मुख्यमंत्री खुद आत्मसमर्पण प्रक्रिया में शामिल थे और सुदूर जंगल में हथियार दिखाए गए थे. जनता के लिए इस बयान पर विश्वास करना मुश्किल है.’
नक्सलियों के गढ़ चिकमंगलुरु का SP रह चुके हैं अन्नामलाई
अन्नामलाई ने शनिवार को उडुपी में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह बात कही. वे जनवरी 2015 से अगस्त 2016 के बीच उडुपी में पुलिस अधीक्षक (एसपी) और 2018 में कर्नाटक में नक्सलियों के गढ़ माने जाने वाले चिकमंगलुरु के पुलिस अधीक्षक (एसपी) के पद पर कार्यरत थे.
अन्नामलाई ने कहा कि नक्सलियों से जुड़ी नीति का उद्देश्य नक्सलवाद का रास्ता छोड़ चुके लोगों को फिर से मुख्यधारा में शामिल करना है, लेकिन इसके क्रियान्वयन को लेकर संदेह बना हुआ है. उन्होंने कहा, ‘नक्सलियों द्वारा हाल ही में किए गए आत्मसमर्पण ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक की मौजूदगी में आत्मसमर्पण की प्रक्रिया नक्सलियों के लिए बहुत आसान बना दी गई है.’
‘किसने संविधान को बदल दिया’ किताब का किया विमोचन
अन्नामलाई ने यह टिप्पणी ऐसे समय की है जब कर्नाटक में नक्सलियों की समस्या से निपटने के तरीके पर बहस चल रही है. इसमें नेता और कार्यकर्ता आत्मसमर्पण के प्रति सरकार के दृष्टिकोण पर सवाल उठा रहे हैं. अन्नामलाई ने उडुपी में ‘सिटीजन फॉर सोशल जस्टिस’ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में विकास कुमार पी द्वारा लिखित पुस्तक ‘संविधान बदलयसीदा यारू? (किसने संविधान को बदल दिया) का विमोचन किया.
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उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘यह पुस्तक कांग्रेस के शासन के दौरान किए गए कई संशोधनों के बारे में बताती है, जिनका उद्देश्य हमारे नागरिकों के मौलिक अधिकारों, नागरिक स्वतंत्रता और यहां तक कि संविधान की प्रस्तावना के अर्थ को कमजोर करना था.’