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Sunday, October 6, 2024
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Rishi Panchami Vrat Katha 2024: ऋषि पंचमी के दिन पढ़ें यह कथा, जीवन में बनी रहेगी सुख-शांति!


Rishi Panchami Vrat Katha 2024: ऋषि पंचमी के दिन पढ़ें यह कथा, जीवन में बनी रहेगी सुख-शांति!

ऋषि पंचमी के दिन पढ़ें यह कथा

Rishi Panchami Vrat Katha In Hindi 2024: ऋषि पंचमी हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है. जो कि सप्तऋषियों को समर्पित है. इस दिन सप्त ऋषि की पूजा करने के साथ व्रत भी रखा जाता है. यह त्योहार महिलाओं के लिए बहुत ही खास होता है. इस दिन जो भी बहन रक्षाबंधन को अपने भाई को राखी नहीं बांध सकी वह इस दिन अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांध सकती हैं. इसके अलावा यह व्रत को करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-शांति आती है.

ऋषि पंचमी की व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक राजा हुए थे. वह ऋषियों के ही समान थे. उन्हीं के राज मेंसुमित्र नाम का एक किसान था.उसकी पत्नी जयश्री अत्यंतपतिव्रता थी. एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती के कामों में लगी हुई थी, तो वह रजस्वला हो गई. उसको रजस्वला होने का पता लग गया फर भी वह घर के कामों में लगी रही. कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए. जयश्री तो एक कुतिया बनीं और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने के कारण बैल की योनी मिली, क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था. इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा.

वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे. धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था. अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए. जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सांप ने रसोई की खीर के बर्तन में विष उगल दिया. कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब देख रही थी. पुत्र की बहू के आने पर उसने पुत्र को ब्रह्मम हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया. सुचित्र की पत्नी चंद्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखा न गया और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मारा.

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बेचारी कुतिया डंडे की मार खाकर इधर-उधर भागने लगी. चौके में जो जूठन आदि बचा रहता था, वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को को खाने के लिए देती थी, लेकिन क्रोध के कारण उसने वह भी बाहर फेंक दिया. सब खाने का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा खाना बना कर ब्राह्मणों को खिलाया. रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं. वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला. अपने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए सांप के विष वाले खीर के बर्तन को छूकर अपवित्र कर दिया.

इसी कारण बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ भी नहीं दिया. तब वह बैल बोला, हे भद्रे! तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनी में आ पड़ा हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है. आज मैं भी खेत में दिनभर हल में जुटा रहा. मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत. मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया. अपने माता-पिता की इन बातों को सुचित्र सुन रहा था, उसने उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उसके दुख से दुखी होकर वन की ओर चला गया.

वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता- पिता किन कर्मों के कारण इन नीची योनियों को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार से इनको छुटकारा मिल सकता है. तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नी सहित ऋषि पंचमी का व्रत करो तथा उसका फल अपने माता-पिता को दो. भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्त ऋषियों का पूजन करना. इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नी सहित विधि-विधान से पूजन व्रत किया. उसके पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट गए. इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है.



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