रतलाम लोकसभा सीट जिसे पहले झाबुआ नाम से भी जाना जाता था, वह क्षेत्र है जहां पर मध्य प्रदेस की सबसे ज्यादा आदिवासी समुदाय की आबादी रहती है. रतलाम लोकसभा में अलीराजपुर और झाबुआ जिला को पूरी तरह से शामिल किया गया है. वहीं इसमें कुछ हिस्सा रतलाम जिले का भी शामिल किया गया है. यहां रहने वाले आदिवासी मुख्य रूप से कृषि और पशुपालन पर ही निर्भर हैं. हालांकि कुछ जगहों पर आदिवासी तौर-तरीकों से बनाई जाने वाली कलाकृतियों को छोटे-छोटे उद्योगों के रूप में विकसित किया गया है. मध्य प्रदेश की इस लोकसभा सीट की चर्चा हो और कांतिलाल भूरिया का नाम न आए ऐसा मुश्किल है. कांग्रेक के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया के नाम से ही इस सीट को प्रदेश और देश में पहचान मिली है.
रतलाम जिले में कई दर्शनीय और धार्मिक स्थल हैं जिनमें से सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है रतलाम का पुराना लक्ष्मी माता मंदिर. इस मंदिर की से जुड़ी मान्यता है कि हर बार दीवाली के वक्त शहर के कई धनी लोग मंदिर प्रशासन के लिए कैश, सोना-चांदी देते हैं. दिवाली के वक्त दो दिनों तक मंदिर की सजावट इसी कैश और सोने-चांदी से की जाती है. इसके बाद करोड़ों रुपये की नकदी और सोने-चांदी को उन लोगों को वापस कर दिया जाता है. ऐसा करना बहुत शुभ माना जाता है. सैलाना में कैक्टस गार्डन भी यहां का अहम दर्शनीय स्थल है.
वहीं अगर झाबुआ की बात की जाए तो यहां पर भी कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें से सबसे प्रमुख है हाथीपावा. इस जगह को झाबुआ का कश्मीर भी कहा जाता है. हाथीपावा हरियाली के बीच बनी एक सुंदर जगह है जहां से प्रकृति के कई रंग दिखाई देते हैं. यहां पर चिड़ियादाना, मोरदाना जैसी जगहें हैं जो कि स्थानीय लोगों के लिए फेवरेट पिकनिक स्पॉट हैं. इनके अलावा झाबुआ में हनुमान टेकरी, मातंगी धाम, रूपगढ़ जलाशय प्रमुख स्थान हैं.
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राजनीतिक ताना-बाना
रतलाम लोकसभा सीट अनुसूचित जनजातियों के लिए रिजर्व रखी गई है. इस लोकसभा सीट में 8 विधानसभाओं को शामिल किया गया है. इनमें अलीराजपुर, जोबट, झाबुआ, थांदला, पेटलाबाद, रतलाम रूरल, रतलाम सिटी और सैलाना को शामिल किया गया है. इन विधानसभा सीटों में से 4 पर बीजेपी काबिज है, 3 पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया हुआ है. वहीं एक विधानसभा पर भारतीय आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है. इस लोकसभा सीट के इतिहास की बात की जाए तो यहां पर शुरू से ही कांग्रेस का दबदबा रहा है.
1952 से लेकर 2009 तक यहां पर सिर्फ एक बार जनता पार्टी और एक बार समयुक्ता सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली है. बाकी हर चुनाव में यहां कांग्रेस ने बाजी मारी है. इस सीट से लंबे वक्त तक दिलीप सिंह भूरिया कांग्रेस से चुनाव लड़े और जीतते रहे. इसके बाद कांग्रेस ने कांतिलाल भूरिया को यहां से मौका दिया. जिसके बाद कांतिलाल भूरिया ने भी लगातार चार बार जीत दर्ज की. इसके बाद दिलीप सिंह भूरिया ने बीजेपी जॉइन कर ली और बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत गए. लेकिन, उनका निधन हो जाने की वजह से इस सीट पर फिर से उपचुनाव हुआ और उपचुनाव में कांतिलाल भूरिया ने फिर बाजी मार ली. हालांकि भूरिया 2019 में गुमान सिंह डामोर से चुनाव हार गए.
पिछले चुनाव में क्या रहा?
पिछले चुनाव की बात की जाए तो बीजेपी ने यहां से गुमान सिंह डामोर को टिकट दिया था. जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर से कांतिलाल भूरिया पर पूरा विश्वास जताया. इस चुनाव में गुमान सिंह डामोर को 696,103 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को 6,05,467 वोट मिले. बीजेपी के डामोर ने भूरिया को 90,636 वोटों के अंतर से भारी शिकस्त दी थी. इस चुनाव के दौरान एक और बड़ी बात निकलकर सामने आई थी कि इस चुनाव में 30,364 वोट नोटा पर पड़े थे. जो कि बहुत ज्यादा है.