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Saturday, October 5, 2024
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Warangal Lok Sabha Seat: तेलंगाना की सांस्कृतिक राजधानी, BRS का गढ़… क्या इस बार खिल पाएगा ‘कमल’? | telangana warangal lok sabha constituency know about history bjp brs congress candidate stwas


Warangal Lok Sabha Seat: तेलंगाना की सांस्कृतिक राजधानी, BRS का गढ़... क्या इस बार खिल पाएगा 'कमल'?

वारंगल लोकसभा सीट.

वारंगल लोकसभा सीट तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में से एक है. यह लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है. आजादी के बाद से इस लोकसभा सीट पर 17 बार चुनाव हुए हैं. वहीं दो बार 2008 और 2015 में दो उपचुनाव भी हुए. इस सीट पर सबसे अधिक आठ बार कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है. वहीं BRS (भारत राष्ट्र समिति) और TDP (तेलुगु देशम पार्टी) जैसे राजनीतिक दलों ने भी यहां चुनाव जीता है. 2014 से इस सीट पर BRS के उम्मीदवार जीत दर्ज कर रहे हैं. 2019 में इस सीट पर पसुनुरी दयाकर ने जीत दर्ज की थी.

वारंगल लोकसभा सीट पर पहली बार 1952 में चुनाव हुए थे. तब पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट (हैदराबाद) के उम्मीदवार पेंडयाल राघव राव ने यहां जीत दर्ज की थी. तेलंगाना का वारंगल क्षेत्र 12वीं सदी में काकतीय वंश की राजधानी था. 1163 में बनाया गया 1000 खंभों वाला मंदिर भी यहीं है. वारंगल में काकतीयों के बाद बहमनी, कुतुबशाही और मुगलों ने राज किया. यहां कई प्राचीन मंदिर और ऐतिहासिक किले हैं.

2019 के चुनाव में BRS प्रत्याशी को मिली थी जीत

वारंगल लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत सात विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें घनपुर स्टेशन, पालकुर्थी, पार्कल, वारंगल पश्चिम, वारंगल पूर्व, वरधानापेट और भूपालपल्ली विधानसभा सीटें हैं. इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत कुल मतदाताओं की संख्या करीब 17 लाख है. 2019 में 10 लाख 61 हजार 645 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जिसमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 5,30,268 और महिला मतदाताओं की संख्या 5,30,078 थी. BRS के विजयी प्रत्याशी पसुनुरी दयाकर को 612,498 वोट मिले थे.

1163 में हुई थी वारंगल की स्थापना

वारंगल तेलंगाना में हैदराबाद के बाद दूसरा सबसे बड़ा नगर है. साथ ही वारंगल जिला मुख्यालय भी है. वारंगल की स्थापना 1163 में हुई थी. इस काकतीय वंश ने बनाया था. यह काकतीय वंश की राजधानी भी था. काकतीयों वंश द्वारा यहां पर कई निर्माण कराए गए, जिसमें दुर्ग, झीले, मंदिर और पत्थर के बने तोरण इत्यादि हैं. काकतीयों के बाद यहां बहमनी, कुतुबशाही और मुगलों ने भी राज किया.

तेलंगाना की सांस्कृतिक राजधानी है वारंगल

आज यह तेलंगाना में पर्यटक का बहुत बड़ा केंद्र है. वारंगल को तेलंगाना की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है. इटली के प्रसिद्ध पर्यटक मार्कोपोलो मोटुपल्ली ने पहली बार इसी क्षेत्र से भारत में प्रवेश किया था. वारंगल तेलंगाना का प्रमुख वाणिज्यिक एवं औद्योगिक केंद्र भी है. यहां कालीन, कंबल एवं रेशम के कई बड़े-बड़े कारखाने हैं. वहीं अगर शिक्षा के क्षेत्र की बात करें तो वारंगल में काकतीय विश्वविद्यालय, काकतीय मेडिकल कॉलेज, राष्ट्रीय तकनीकी संस्थान समेत कई शैक्षिक संस्थान हैं.

किन-किन राजाओं ने वारंगल पर शासन किया?

बीटा प्रथम, गणपति, रूद्रमादेवी और प्रताप रूद्र यहां के शासक थे. रुद्रमादेवी ने 36 वर्ष तक बड़ी योग्यता से राज्य किया. उन्हें रुद्रदेव महाराज कहकर संबोधित किया जाता था. प्रतापरुद्र (शासन काल 1296-1326 ई.) रुद्रमा दोहित्र था. इन्होंने पाण्डयनरेश को हराकर कांची को जीता. प्रतापरुद्र ने मुसलमानों के छह आक्रमणों को विफल किया, लेकिन 1326 ई. में उलुगखां ने जो पीछे मुहम्मद बिन तुगलक नाम से दिल्ली का सुल्तान हुआ, ककातीय के राज्य की समाप्ति कर दी. उसने प्रतापरुद्र को बंदी बनाकर दिल्ली ले जाना चाहा था, लेकिन रास्ते में ही नर्मदा नदी के तट पर इस स्वाभिमानी और वीर पुरुष ने अपने प्राण त्याग कर दिए. ककातीयों के शासनकाल में वारंगल में हिंदू संस्कृति और तेलुगु भाषाओं की अभूतपूर्व उन्नति हुई.



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