देश के अन्य राज्यों की तरह ओडिशा में भी राजनीतिक हलचल बनी हुई है. यहां पर हलचल का महत्व इसलिए भी है क्योंकि लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी साथ कराए जा रहे हैं. राज्य में मुख्य मुकाबला 2 दशक से भी ज्यादा समय से सत्ता पर काबिज बीजू जनता दल और भारतीय जनता पार्टी के बीच है. राज्य की ढेंकनाल लोकसभा सीट पर भी बीजू जनता दल का कब्जा बना हुआ है. यहां पर मुख्य मुकाबला बीजेडी और बीजेपी के बीच ही होता रहा है.
ओडिशा राज्य के भू-राजनीतिक मानचित्र पर केंद्रीय रूप से बसा ढेंकनाल जिला सुंदर वन्य जीवन और जंगलों से घिरा हुआ है. ढेंकनाल जिला उत्तर में केंदुझार, दक्षिण में कटक जिले की सीमा को छूता है और पूर्व में जाजपुर और पश्चिम में अंगुल जिले से घिरा हुआ है. स्थानीय तौर पर यह माना जाता है कि ढेंकनाल जिले का नाम सावरा प्रमुख ‘ढेंका’ के नाम पर पड़ा है, जिन्होंने पहले यहां पर शासन किया था.
2019 के चुनाव में क्या रहा परिणाम
ढेंकनाल संसदीय सीट के तहत 7 विधानसभा सीटें आती हैं और इसे 2 जिलों ढेंकनाल तथा अंगुल जिलों के क्षेत्रों को शामिल कर बनाया गया है. ढेंकनाल की 4 विधानसभा सीटों और अंगुल की 3 विधानसभा सीटों को शामिल किया गया है. यहां की सभी सीटों पर बीजेडी का कब्जा है.
2019 के संसदीय चुनाव में ढेंकनाल सीट के चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो यहां पर बीजू जनता दल के महेश साहू को जीत मिली थी. महेश साहू को चुनाव में 522,884 वोट मिले तो उनके सामने खड़े भारतीय जनता पार्टी के रुद्र नारायण पाणी को 487,472 वोट आए. कांग्रेस के प्रत्याशी राजा कामाख्या प्रसाद को 80,349 वोट मिले थे.
ढेंकनाल संसदीय सीट का इतिहास
मुकाबला कड़ा रहा और महेश साहू ने 35,412 मतों के अंतर से जीत हासिल की. तब के चुनाव में यहां पर कुल वोटर्स की संख्या 14,61,182 थी. इसमें से पुरुष वोटर्स की संख्या 7,66,060 थी और महिला वोटर्स की संख्या 6,95,010 थी. इसमें से कुल 11,31,522 वोटर्स ने वोट डाले. चुनाव में NOTA के पक्ष में 11,254 वोट डाले गए.
ढेंकनाल संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास को देखें तो यहां पर अभी बीजू जनता दल का कब्जा है. यहां पर जीत की शुरुआत कांग्रेस ने भले ही की थी, लेकिन अब उसे यहां पर लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है. 90 के बाद की राजनीति को देखें तो तब यह सीट कांग्रेस के पास थी. कामख्या प्रसाद सिंह देव ने 1991 के चुनाव में जीत हासिल की. वह 1996 में भी चुनाव जीतने में कामयाब रहे. इसके बाद 1998 के चुनाव में तथागत सतपथी ने बीजू जनता दल के टिकट पर जीत हासिल कर पार्टी का खाता खुलवाया.
हालांकि 1999 के चुनाव में कांग्रेस के कामख्या प्रसाद सिंह देव ने फिर से बाजी मार ली. वह छठी बार यहां से सांसद चुने गए. 2004 में तथागत सतपथी ने वापसी की और बीजेडी को दूसरी बार जीत दिलाई. 2009 के चुनाव में तथागत सतपथी तीसरी बार सांसद चुने गए. वह 2014 के चुनाव में फिर से सांसद बने. हालांकि 2019 में बीजेडी ने महेश साहू को यहां से मैदान में उतारा और वह भी विजयी रहे.
हार का अंतर कम करती जा रही BJP
बीजेपी को अभी यहां से अपनी पहली जीत का इंतजार है. बीजेपी पिछले 2 लोकसभा चुनावों में यहां पर दूसरे नंबर पर रही है. बीजेपी के रुद्र नारायण पाणी को 2014 में 1,37,340 मतों के अंतर से हार मिली थी, लेकिन 2019 के चुनाव में यह अंतर काफी कम हो गया और वह महज 35,412 मतों से हारे. ऐसे में 2024 के चुनाव में रुद्र नारायण पाणी फिर से बीजेपी की ओर से बीजेडी को कड़ी टक्कर देने जा रहे हैं.
ढेंकनाल जिला 4,452 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. यहां का विशाल क्षेत्र घने जंगलों और पहाड़ियों की लंबी श्रृंखला से ढका हुआ है. यहां पर बड़ी संख्या हाथी और बाघ रहते है. यही वजह है कि जिले को ‘देश के हाथियों और बाघों का घर’ कहा जाता है. यह जिला भी खेती प्रमुख क्षेत्र है. यहां की खास खेती में धान, मूंगफली, काजू, आलू, आम, कटहल और गन्ना के साथ-साथ कुछ सब्जियां पैदा करता है.
कनाल जिला अपने मेलों और त्योहारों के लिए बहुत प्रसिद्ध है. गजलक्ष्मी पूजा जिले में मनाया जाने वाला लोकप्रिय त्योहार है. यह हर साल कुमार पूर्णिमा से शुरू होता है और 11 दिनों तक चलता है. कपिलाश, भगवान चन्द्र शेखर का निवास स्थान है जो ओडिशा के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है. यहां हर साल महाशिवरात्रि पर “जागर यात्रा” निकाली जाती है. कामाख्यानगर का दशहरा उत्सव ढेंकनाल जिले की संस्कृति में एक विशेष महत्व रखता है. 2011 की जनगणना के अनुसार ढेंकनाल जिले की कुल आबादी 11,92,948 है. यहां का साक्षरता दर 79.41% है.