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Sunday, September 8, 2024
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Baramati constituency maharashtra lok sabha election 2024 bjp ncp sharad pawar ajit pawar supriya sule stwma | Baramati Lok Sabha Seat: ‘एनसीपी’ के विभाजन के बाद बारामती लोकसभा सीट पर होगी शरद पवार और अजीत पवार की अग्निपरीक्षा


Baramati Lok Sabha Seat: 'एनसीपी' के विभाजन के बाद बारामती लोकसभा सीट पर होगी शरद पवार और अजीत पवार की अग्निपरीक्षा

Baramati Loksabha Constituency

महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से एक बारामती संसदीय सीट काफी महत्तवपूर्ण है. यह शरद पवार के एनसीपी गुट की पारंपरिक सीट है. वर्तमान में इस सीट पर सुप्रिया सुले सांसद हैं जो शरद पवार की बेटी हैं. सुप्रिया इस सीट से तीन बार संसद चुनी गईं हैं. यहां से खुद शरद पवार 6 बार सांसद चुने गए हैं. एक बार उनके भतीजे अजीत पवार ने इस सीट से जीत हासिल की है. अजीत पवार ने शरद पवार से बगावत कर एनसीपी पर कब्जा कर लिया. अब यहां शरद पवार और अजीत पवार की ‘एनसीपी’ में टक्कर देखने को मिलेगी.

बारामती संसदीय सीट पवार परिवार का मजबूत गढ़ है. यहां तीन दशक से इस परिवार का दबदबा रहा है. बारामती में ही शरद पवार का जन्म हुआ है. साल 1984 में शरद पवार यहां से पहली बार सांसद चुने गए थे. वह भारतीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) पार्टी से चुनाव लड़े थे. इनसे पहले इस सीट पर कांग्रेस पार्टी की पकड़ रही थी. इस सीट पर एक बार फिर से सुप्रिया सुले चुनावी मैदान में नजर आएंगी. शरद पवार ने अपने पोते रोहित पवार को बारामती लोकसभा सीट की जिम्मेदारी देते हुए उन्हें चुनाव प्रभारी बनाया है.

बड़े स्तर पर होती है अंगूर और गन्ने की खेती

बारामती लोकसभा सीट पुणे जिले का ही हिस्सा है. इसमें जिले की 6 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें 4 सीटों इंदापुर, बारामती, पुरंदर और भोर पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का कब्जा है. वहीं, दौंड और खड़कवासला सीट पर भारतीय जनता पार्टी के विधायक काबिज हैं. बारामती में अंगूर और गन्ने की खेती मुख्य फसलों में से हैं और यह बड़े स्तर पर की जाती है. यहां के अंगूर और शक्कर का यूरोपीय देशों में निर्यात किया जाता है.

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यहां मौजूद हैं प्राचीन मंदिर

करहा नदी के किनारे बसा बारामती के प्राकृतिक नजारे लोगों को अपनी ओर आकृषित करते हैं. यह करहा नदी के कारण दो हिस्सों में बंटा हुआ है. इतिहास में यह शहर भीमथडी नाम से मशहूर था. यह शहर महान कवि पुरस्कार विजेता लोकप्रिय कवि मोरोपंत के कारण भी प्रसिद्ध है. यहां दो प्राचीन मंदिर हैं. करहा नदी के पश्चिमी तट श्री काशीविश्वेश्वर मंदिर और पूर्वी तट पर बना सिद्धेश्वर मंदिर है. इनका निर्माण 750 ईस्वी के आसपास हुआ.

कांग्रेस का रहा दबदबा

बारामती लोकसभा सीट साल 1952 में अस्तित्व में नहीं थी. यहां पहला चुनाव साल 1957 में हुआ था. यह सीट शुरू में कांग्रेस की पारंपरिक सीट रही. इस सीट पर पवार परिवार का दबदबा रहा. बारामती लोकसभा सीट पर साल 2019 के चुनाव में 21 लाख 14 हजार 716 मतदाता थे. 1957 में कांग्रेस के केशवराव जेधे जीत हासिल कर यहां से पहले सांसद चुने गए. 1960 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ और कांग्रेस के गुलाबराव जेधे चुनाव जीते. साल 1967 में आम चुनाव में भी कांग्रेस के गुलाबराव जेधे सांसद बने. 1971 में कांग्रेस के आर.के.खाडिलकर विजयी हुए. 1977 में जनता पार्टी के संभाजीराव काकड़े ने इस सीट पर कब्जा किया. 1980 के चुनाव में कांग्रेस इस सीट पर फिर से काबिज हो गई और शंकरराव बाजीराव पाटिल सांसद बने.

संसदीय चुनाव में पवार परिवार की एंट्री

1984 के चुनाव में बारामती सीट से शरद पवार ने पहली बार संसदीय चुनाव लड़ा. भारतीय कांग्रेस (समाजवाद) पार्टी के टिकट से शरद पवार ने जीत दर्ज की. 1985 में वह वापस राज्य की राजनीति में पहुंच गए और सांसद पद से इस्तीफा दे दिया. 1985 में हुए उपचुनाव में बारामती से जनता पार्टी के संभाजीराव काकड़े सांसद चुने गए. 1989 में इस सीट पर फिर से कांग्रेस ने वापसी की और शंकरराव बाजीराव पाटिल सांसद बने. साल 1991 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से शरद पवार के भतीजे अजीत पवार को टिकट दिया. अजीत पवार चुनाव जीतकर सांसद बने.

शरद पवार का चला जादू

साल 1991 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ. शरद पवार ने कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. साल 1994 यहां फिर से उपचुनाव हुआ और कांग्रेस के बापूसाहेब थिटे सांसद बने. 1996 में फिर से शरद पवार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर सांसद बने. 1998 के चुनाव में शरद पवार फिर से सांसद चुने गए. 25 मई 1999 को एनसीपी का उदय हुआ शरद पवार ने पार्टी के निशान से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. 2004 में वह इस सीट से छठीं बार सासंद बने. 2009 के चुनाव में शरद पवार ने अपने बेटी सुप्रिया सुले को इस सीट से प्रत्याशी बनाया. उन्होंने जीत दर्ज कर यहां से सांसद का पद पर कब्जा किया. साल 2014 आयर 2019 के चुनाव में चली ‘मोदी लहर’ का इस सीट पर कोई असर नहीं हुआ और दोनों चुनाव में सुप्रिया सुले ने जीत दर्ज की. एक बार वह फिर से शरद पवार गुट से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं.



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