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Friday, March 28, 2025
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Banda Lok Sabha Seat: बांदा सीट पर क्या खत्म होगा ‘हैट्रिक’ पर ग्रहण, अब तक किसी भी दल को नहीं मिली लगातार 3 जीत | Banda Lok Sabha constituency Profile BJP opposition alliance india BSP elections 2024


उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में भी लोकसभा चुनाव को लेकर हलचल बनी हुई है. बांदा संसदीय सीट पर कभी किसी दल का लंबे समय तक दबदबा नहीं रहा है. यहां पर अब तक हुए चुनाव में किसी भी दल ने चुनावी जीत की हैट्रिक नहीं लगाई है. समाजवादी पार्टी 2014 में हार के साथ ही हैट्रिक से चूक गई, लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) भी हैट्रिक की रेस में है. हालांकि इस बार मुकाबला कांटे का होने वाला है क्योंकि 2019 के चुनाव में बीजेपी को कड़े मुकाबले में जीत मिली थी. इस बार चुनाव में यूपी में सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं.

बांदा शहर का नाम बामदेव नाम के महान ऋषि के नाम पर पड़ा. पहले इसे बाम्दा कहते थे फिर बाद में बांदा पड़ा. बांदा जिले का इतिहास पाषाण काल और नवपाषाण काल के दौर का माना जाता है. इस क्षेत्र के सबसे पहले ज्ञात शासक यायात्री को माना जाता है जिनके बड़े पुत्र यदु को यह क्षेत्र विरासत में मिली, बाद में उनकी संतानों ने इस इलाके का नाम चेदि-देश रख दिया. यहां पर कालिंजर के नाम की एक पहाड़ी है जिसे पवित्र माना जाता है. वेदों में भी इसका उल्लेख किया गया है. साथ ही यह भी माना जाता है कि भगवान राम ने अपने 14 साल के निर्वासन में 12 साल चित्रकूट में बिताए थे, जो कुछ साल पहले तक यह बांदा जिले का हिस्सा हुआ करता था. कहते हैं कि प्रसिद्ध कालिंजर-पहाड़ी (कलंजराद्री) का नाम भगवान शिव के नाम पर है, जो कालिंजर के मुख्य देवता हैं जिन्हें आज भी नीलकंठ कहा जाता है.

पिछले चुनाव में किसे मिली जीत

साल 1998 में चित्रकूट नाम के नए जिला का गठन दो तहसीलों जैसे कारवी और मऊ के साथ किया गया था. बांदा जिले में 5 तहसील बबेरू, बांदा, अतर्रा, पेलानी और नरैनी रह गए. चित्रकूट धाम नाम से नई कमिश्नरी का गठन किया गया जिसका मुख्यालय बांदा बनाया गया. इस मंडल में बांदा, हमीरपुर, महोबा और चित्रकूट जिले रखे गए. बांदा जिले के तहत बाबेरू, नारैनी, बांदा, चित्रकूट और माणिकपुर विधानसभा सीटें आती हैं जिसमें नारैनी सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व है. 2022 के विधानसभा चुनाव में 2 सीटों पर बीजेपी तो 2 सीटों पर समाजवादी पार्टी को जीत मिली, जबकि एक सीट अपना दल के खाते में गई थी.

2019 के संसदीय चुनाव की बात करें तो बांदा लोकसभा सीट पर बीजेपी के आरके सिंह पटेल और समाजवादी पार्टी के श्यामा चरण गुप्ता के बीच मुख्य मुकाबला रहा था. चुनाव से पहले सपा और बसपा के बीच गठबंधन की वजह से यह सीट सपा के खाते में गई. आरके सिंह पटेल को चुनाव में 477,926 वोट मिले तो श्यामा चरण गुप्ता के खाते में 418,988 वोट आए. जबकि कांग्रेस के बालकुमार पटेल को 75,438 वोट ही मिले.

दोनों उम्मीदवारों के बीच कड़ा मुकाबला रहा लेकिन आरके सिंह पटेल ने अंत तक चले संघर्ष के बाद यह चुनाव 58,938 मतों के अंतर से जीत लिया. तब के चुनाव में बांदा संसदीय सीट पर कुल 16,59,357 वोटर्स थे जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 9,09,518 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 7,49,767 थी. इनमें से 10,34,549 (63.5%) वोटर्स ने वोट डाले. चुनाव में NOTA के पक्ष में 19,250 वोट पड़े थे.

बांदा सीट का राजनीतिक इतिहास

बांदा संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां पर हर बड़े दलों को जीत मिली है. यहां पर अब तक हुए 17 चुनावों में सबसे अधिक ब्राह्मण बिरादरी के प्रत्याशी को जीत मिली है और 7 बार चुनाव जीतने में कामयाब रहे हैं. जबकि 5 बार कुर्मी उम्मीदवार को जीत मिली. यहां पर अब ओबीसी वर्ग को छह बार जीत मिल चुका है. संसदीय सीट के शुरुआती चुनाव को देखें तो 1957 में कांग्रेस के राजा दिनेश सिंह को जीत मिली. 1962 में सावित्री निगम को जीत मिली. 1967 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के प्रत्याशी जोगेश्वर यादव ने उलटफेर करते हुए जीत अपने नाम कर लिया. जनसंघ के राम रतन शर्मा ने 1971 के चुनाव में जीते थे. जनता पार्टी के अंबिका प्रसाद पांडे 1977 में विजयी हुए थे.

1980 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर वापसी की और रामनाथ दुबे सांसद बने. 1984 में कांग्रेस के भीष्म देव दुबे के खाते में यह जीत गई. 1989 में सीपीआई को दूसरी बार यहां से जीत मिली और राम सजीवन सांसद चुने गए. 1991 में बीजेपी ने राम लहर के बीच इस सीट पर भी अपना खाता खोल लिया. प्रकाश नारायण त्रिपाठी सांसद चुने गए. 1996 में बसपा के राम सजीवन ने जीत हासिल कर पार्टी के खाता खोला. सजीवन इससे पहले 2 बार सांसद चुने गए थे. 1998 में बीजेपी के रमेश चंद्र द्विवेदी को जीत मिली. 1999 में राम सजीवन ने एक बार फिर बसपा के लिए जीत हासिल की.

बांदा सीट का जातिगत समीकरण

2004 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के श्याम चरण गुप्ता ने जीत अपने नाम करते हुए पार्टी के लिए खाता खोला. श्यामा चरण गुप्ता श्यामा ग्रुप ऑफ कंपनीज के संस्थापक हैं. 2009 में सपा के टिकट पर आरके सिंह पटेल पहली बार सांसद चुने गए. 2014 के चुनाव में देश में मोदी लहर का असर दिखा और लंबे इंतजार के बार फिर से भगवा पार्टी को यहां पर जीत मिली. बीजेपी के भैरों सिंह मिश्रा ने इस बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले सांसद आरके सिंह पटेल को 1,15,788 मतों के अंतर से हरा दिया. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में आरके सिंह पटेल ने फिर से दलबदल किया और अब बीजेपी में शामिल हो गए. पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए आरके सिंह पटेल ने सपा के पूर्व सांसद श्यामा चरण गुप्ता को 58,938 मतों के अंतर से हरा दिया.

बांदा सीट पर अब तक 7 बार ब्राह्मण उम्मीदवार तो 5 बार कुर्मी उम्मीदवार को जीत मिल चुकी है. इसलिए इस क्षेत्र को ब्राह्मण और कुर्मी बाहुल्य माना जाता है. चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही सपा ने ओबीसी वर्ग के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री शिव शंकर सिंह पटेल को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है. वह 2022 में सपा में शामिल हुए थे. शिव शंकर पहले बीजेपी सरकार में मंत्री थे और जिले की बबेरू सीट से विधायक रहे. वह यूपी सरकार में सिंचाई एवं लोक निर्माण राज्यमंत्री भी थे.



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