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Wednesday, December 4, 2024
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शरबत पिलाओ! लू से मरूं या गोली से, तुम्हारे मुख्यमंत्री का चुनाव टलेगा! पढ़ें UP के दिलचस्प किस्से | amethi lok sabha by election 1981 and up state assembly election when rajiv gandhi and vishwanath pratap singh contested independent candidates were in limelight


शरबत पिलाओ! लू से मरूं या गोली से, तुम्हारे मुख्यमंत्री का चुनाव टलेगा! पढ़ें UP के दिलचस्प किस्से

1981 के अमेठी लोकसभा उपचुनाव में पहली बार राजीव गांधी चुनावी मैदान में उतरे थे.

यह 1981 का अमेठी लोकसभा उपचुनाव था. चुनाव प्रचार अपने चरम पर था. राजीव गांधी अपना पहला चुनाव लड़ रहे थे. निर्दलीय प्रत्याशी “धरती पकड़” भी इसी सीट से उम्मीदवार थे. नामांकन के बाद से वे लापता थे. मुख्यमंत्री का निर्देश था. राज्य के गुप्तचरों की टीम धरती पकड़ की तलाश में दिन-रात एक किए हुए थी.

उधर तिंदवारी (बांदा) का 1981 का विधानसभा उपचुनाव जहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह उम्मीदवार थे, वहां विपक्ष ने कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था. लेकिन एक पनवाड़ी ने ताल ठोंक रखी थी. प्रचार बीच वह भी लापता थे. तलाश थी. फिर मिले . सुरक्षाकर्मियों के साथ घूमना शुरू किया. जहां-तहां थक कर बैठ जाते. उठने की शर्त रहती कि पहले शरबत पिलाओ..!

तब किसी भी उम्मीदवार के निधन पर स्थगित होता था चुनाव

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 52 के अंतर्गत किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के प्रत्याशी की नामांकन की अंतिम तारीख को पूर्वान्ह 11 बजे के बाद अथवा मतदान के पूर्व तक मृत्यु सूचित होने की स्थिति में चुनाव अन्य किसी तारीख के लिए स्थगित किए जाने की व्यवस्था है. लेकिन अधिनियम में संशोधन के पूर्व यह व्यवस्था सभी प्रत्याशियों के मामले में लागू होती थी.

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जाहिर है कि चुनाव आयोग को तब सभी प्रत्याशियों की सुरक्षा को लेकर ज्यादा सतर्क रहना पड़ता था. खासतौर पर चर्चित सीटों पर ऐसे अनेक निर्दलीय चेहरे जरूर नामांकन करते थे, जिनका इकलौता मकसद बड़े नामों के मुकाबले उतरकर प्रचार हासिल करना रहता था. बात दीगर है कि नामांकन के बाद चुनाव क्षेत्र में उनकी मौजूदगी दुर्लभ होती थी.

हर चर्चित चुनाव में रहती थी धरतीपकड़ की दावेदारी

1980 में संजय गांधी ने अमेठी लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी. दुर्भाग्य से एक विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया. 1981 के अमेठी उपचुनाव में कांग्रेस ने राजीव गांधी को प्रत्याशी बनाया. विपक्ष की ओर से शरद यादव उन्हें चुनौती दे रहे थे. पैंथर्स पार्टी के प्रो. भीम सिंह भी उम्मीदवार थे. लेकिन उत्तर प्रदेश की कांग्रेसी सरकार को इन उम्मीदवारों से ज्यादा निर्दलीय उम्मीदवार “धरतीपकड़” के कुशल-क्षेम की फिक्र थी.

काका जोगिंदर उर्फ धरतीपकड़ देश-प्रदेश की चुनावी राजनीति का उन दिनों एक चर्चित नाम था. वे कितने वोट पाए और कब उनका नामांकन बचा या खारिज हुआ, इसका महत्व नहीं था बल्कि वे अब तक कितने चुनाव लड़ चुके इसकी चर्चा रहती थी. राष्ट्रपति पद सहित कोई भी चुनाव जिससे महत्वपूर्ण चेहरा जुड़ा हो, उस चुनाव में “धरतीपकड़” की उम्मीदवारी आमतौर पर तयशुदा रहती थी. चुनाव के दिनों में उनसे जुड़ी खबरों को अखबारों में स्पेस मिलता और दिलचस्पी के साथ वे पढ़ी जाती थीं.

लापता धरतीपकड़ की तलाश में खुफिया विभाग!

1981 में राजीव गांधी की उम्मीदवारी के साथ ही धरतीपकड़ ने भी सुल्तानपुर कलेक्ट्रेट पहुंच कर अपना पर्चा दाखिल कर दिया. जांच में उनका पर्चा वैध पाया गया. लेकिन इसी के साथ चुनाव क्षेत्र से वे अदृश्य हो गए. राजीव गांधी की जीत के प्रति कांग्रेस आश्वस्त थी लेकिन किसी भी मोर्चे पर पार्टी गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती थी. एक आशंका चुनाव स्थगित कराने की कोशिश को लेकर भी हुई और तभी लोगों को धरतीपकड़ की याद आई.

कोई खोज -खबर न मिलने पर मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राज्य के खुफिया विभाग को अलर्ट किया. कई टीमें लगाई गईं. एक टीम ने उन्हें मध्यप्रदेश में खोजा. चुनाव की गहमागहमी और भागदौड़ से बेखबर अमेठी का यह प्रत्याशी एक घर में आराम फरमा रहा था. उन्हें मुश्किल से अमेठी आने के लिए राजी किया गया. फिर वहां मतदान तक उनका पूरा ख्याल और मिजाज पुर्सी की गई. उनके समेत सभी प्रत्याशियों के साथ लगाए गए सुरक्षाकर्मियों ने आगे पूरी चौकसी बरती.

उम्मीदवार ग्राहकों के लिए पान लगाने में व्यस्त

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री रहते तिंदवारी से विधानसभा का उपचुनाव लड़ा. विपक्षी दलों ने उनके खिलाफ़ कोई प्रत्याशी नहीं खड़ा किया. लेकिन पान की दुकान करने वाले एक निर्दलीय उम्मीदवार ने पर्चा दाखिल किया और फिर घर वापस चला गया. दो सुरक्षाकर्मी जब उसे ढूंढते पहुंचे तो वह अपनी दुकान पर ग्राहकों के लिए पान लगा रहा था. सिपाहियों की पूछताछ पर वह पहले तो डरा लेकिन यह जानकारी मिलने पर कि उन्हें उसकी सुरक्षा में लगाया गया है, वह इस सम्मान पर खुशी से उछल पड़ा. कहा अब कि जब इतनी अहमियत मिली है तो चुनाव जरूर लडूंगा.

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपने साक्षात्कारों पर केंद्रित किताब “मंजिल से ज्यादा सफ़र” में इस प्रत्याशी को याद करते हुए बताया था कि शुरुआत में उसने जोर-शोर से प्रचार किया. ये प्रचंड गर्मी का मौसम था. थक कर यह प्रत्याशी किसी पेड़ के नीचे बैठ जाता था और सुरक्षा में लगे सिपाहियों से कहता कि शरबत पिलाओ. सिपाही उससे कहते कि उन्हें उसकी सुरक्षा में लगाया गया है. शरबत के इंतजाम और पिलाने के लिए नहीं.

प्रत्याशी के जवाब ने सिपाहियों को अपने थानेदार के पास दौड़ने के लिए मजबूर कर दिया. वह कहता था, “मैं गोली से मरूं या फिर लू से. दोनों हाल में तुम्हारे मुख्यमंत्री का चुनाव रद्द होगा. “थानेदार की मदद से ये सिपाही मतदान की तारीख तक प्रत्याशी को शरबत पिलाते रहे. प्रत्याशी पैदल प्रचार करता रहा. उसके साथ पदयात्रा सिपाहियों की मजबूरी थी.

वोट नहीं डूबी रकम की वसूली जरूरी

एक प्रत्याशी तो इससे भी आगे निकला.विश्वनाथ प्रताप सिंह के अनुसार, इलाहाबाद के एक लोकसभा चुनाव में ब्याज पर कर्ज देने वाला एक साहूकार उम्मीदवार था. पर्चा दाखिल करने के बाद चुनाव प्रचार में उसे कोई दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन सुरक्षा के लिए दो सिपाही मिले. इन सिपाहियों का उसने अपने धंधे के लिए बढ़िया इस्तेमाल किया.

साहूकार अपने बकायेदारों के पास इन सिपाहियों को भेजता. बादामी कागज पर कुछ लिखा होता. सिपाही इसे गिरफ्तारी वारंट बताते. सिपाहियों को वसूली पर बढ़िया कमीशन मिलता था. वोट भले न मिलें हों लेकिन इस उम्मीदवार ने इन सिपाहियों की मदद से चुनाव की अवधि में डूबी रकम की वसूली में अच्छी कामयाबी हासिल की.

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