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Sunday, October 6, 2024
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वो क्रांतिकारी जिनका अस्थि कलश कंधे पर लाए थे मोदी, 56 साल बाद पूरी हुई थी स्वतंत्रता सेनानी की अंतिम इच्छा | shyamji krishna varma freedom fighter death last wish narendra modi brought ashesh from switzerland


वो क्रांतिकारी जिनका अस्थि कलश कंधे पर लाए थे मोदी, 56 साल बाद पूरी हुई थी स्वतंत्रता सेनानी की अंतिम इच्छा

नरेंद्र मोदी जेनेवा से श्यामजी की अस्थियां लेकर आए थे.Image Credit source: @modiarchive

अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारियों ने क्या कुछ नहीं किया. जहां जिसको जैसा मौका मिला, क्रांति की ज्वाला में अपनी आहुति दी. ऐसे ही एक क्रांतिकारी थे श्यामजी कृष्ण वर्मा. उन्होंने अंग्रेजों के ही गढ़ लंदन में स्वाधीनता संग्राम की अलख जलाई. आज उनका नाम देश को स्वतंत्र कराने वाले क्रांतिकारियों में अगली पंक्ति में लिया जाता है पर उनकी एक इच्छा पूरी करने में हमें सालों लग गए थे. दरअसल 30 मार्च 1930 को श्यामजी का निधन जेनेवा में हुआ था और उनकी अंतिम इच्छा थी कि आजादी मिलने के बाद उनकी अस्थियां भारत लाई जाएं. ऐसे हुआ भी और 2003 में गुजरात के सीएम रहते हुए नरेंद्र मोदी खुद जेनेवा से अस्थियां लाए थे. श्यामजी की पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं पूरा किस्सा.

श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म 4 अक्टूबर, 1857 को गुजरात में कच्छ जिले के मांडवी कस्बे में हुआ था. वह संस्कृत के साथ ही दूसरी भाषाओं के विशेषज्ञ थे.अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने भारत में कई राज्यों के दीवान के रूप में काम किया. फिर खासकर संस्कृत के गहन अध्ययन ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में इसी विषय के प्रोफेसर मोनियर विलियम्स का ध्यान अपनी ओर खींचा. इसके चलते वह ऑक्सफोर्ड में अंग्रेजी पढ़ाने के लिए विदेश चले गए और वहीं स्वाधीनता संग्राम की लौ प्रज्वलित कर दी.

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लंदन में इंडियन होम रूल सोसाइटी बनाई

बाल गंगाधर तिलक, स्वामी दयानंद सरस्वती और हर्बर्ट स्पेंसर से प्रभावित श्यामजी ने लंदन में इंडियन होम रूल सोसाइटी, इंडिया हाउस और द इंडियन सोशियोलॉजिस्ट जैसे संगठनों की स्थापना की. इंडियन होम रूल सोसाइटी और इंडिया हाउस ने अंग्रेजों के ही देश यानी ब्रिटेन में युवाओं को भारत पर राज कर रहे अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियां शुरू करने के लिए प्रेरित किया. इंडियन होम रूल सोसाइटी के जरिए ही श्यामजी और दूसरे क्रांतिकारियों ने भारत में ब्रिटिश शासन की आलोचना शुरू कर दी.

बॉम्बे आर्य समाज के पहले अध्यक्ष रहे श्यामजी की ही प्रेरणा से वीर सावरकर लंदन में इंडिया हाउस के सदस्य बने थे. कहा जाता है कि श्यामजी ने कानून की पढ़ाई भी की थी और लंदन में बैरिस्टर के रूप में भी जाने जाते थे. साल 1905 में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लिखने के कारण उन पर राजद्रोह का आरोप लगा और प्रैक्टिस करने पर रोक लगा दी गई. हालांकि, लंदन में बैरिस्टरों और न्यायाधीशों के लिए चार पेशेवर संघों में से एक ऑनरेबल सोसाइटी ऑफ द इनर टेम्पल की गवर्निंग काउंसिल ने बाद में कहा था कि श्यामजी के मामले में पूरी तरह से निष्पक्ष सुनवाई नहीं हुई थी और 2015 में इनर टेम्पल द्वारा मरणोपरांत उनकी प्रैक्टिस को बहाल कर दिया गया था.

पहले विश्व युद्ध के दौरान जेनेवा चले गए

खैर, बाद में श्यामजी ने अपने आंदोलन का आधार इंग्लैंड से पेरिस ट्रांसफर कर लिया पर स्वाधीनता संग्राम जारी रखा. पहला विश्वयुद्ध शुरू हुआ तो वह स्विट्जरलैंड में जिनेवा चले गए और अपना बाकी का जीवन वहीं बिताया. 30 मार्च 1930 को उनकी मृत्यु हो गई. उनकी अंतिम इच्छा थी कि देश को आजादी मिलने के बाद उनकी अस्थियां भारत लाई जाएं. साल 1947 में आजादी मिलने के बाद भी 56 सालों तक उनकी अस्थियों को लेने कोई जेनेवा नहीं गया. आखिर में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी जेनेवा गए. 22 अगस्त 2003 को नरेंद्र मोदी ने स्विटजरलैंड की सरकार से श्यामजी की अस्थियां ग्रहण की और खुद भारत लाए.

गुजरात में निकाली गई थी अस्थि कलश यात्रा

स्वदेश पहुंचने पर गुजरात में भव्य वीरांजलि यात्रा आयोजित की गई और श्यामजी की अस्थियों का कलश 17 जिलों से होकर गुजरा. लोगों ने सड़कों के किनारे खड़े होकर उनको श्रद्धांजलि अर्पित की. जिस वाहन में अस्थि कलश रखा गया था, उसे विशेष रूप से तैयार कर वीरांजलि-वाहिका नाम दिया गया था. आखिर में अस्थि कलश को मांडवी (कच्छ) में उनके परिवार को सौंप दिया गया था.

Modi Brought Back Ashes Of Shyamji Krishna Varma

गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी स्विटजरलैंड की सरकार से श्यामजी की अस्थियां खुद भारत लाए.

मांडवी के पास क्रांति तीर्थ की स्थापना की गई

यही नहीं, स्वाधीनता सेनानी श्यामजी कृष्ण वर्मा के सम्मान में गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार ने मांडवी के पास एक मेमोरियल बनवाया. इसका नाम क्रांति तीर्थ है, जिसकी आधारशिला 4 अक्टूबर 2009 को रखी गई और इसे 13 दिसंबर 2010 को राष्ट्र को समर्पित किया गया. 52 एकड़ जमीन पर फैले इस मेमोरियल कॉम्प्लेक्स में इंडिया हाउस बिल्डिंग की रेप्लिका तैयार की गई है. श्यामजी कृष्ण वर्मा और उनकी पत्नी की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं. नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो साल 2015 में इनर टेंपल सोसाइटी ने लंदन में उनको श्यामजी कृष्ण वर्मा की अस्थियों को स्वदेश लाने के लिए एक प्रमाणपत्र भी दिया था. तब ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने प्रेजेंटेशन भी दिया था.

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