गुना लोकसभा सीट मध्य प्रदेश की राजनीति वह सीट है जहां पर शायद ग्वालियर से ज्यादा राजघराने का वर्चस्व है. इस सीट से माधवराव सिंधिया चुनाव लड़ चुके हैं, राजमाता विजय राजे सिंधिया चुनाव लड़ चुकीं हैं, ज्योतिरादित्य सिंधिया भी चुनाव लड़ चुके हैं. यह लोकसभा सीट मध्य प्रदेश की राजनीति की उन धुरियों में से एक हैं जहां से एक वक्त था कि पूरे प्रदेश की राजनीति की दिशा और दशा तय होती थी. प्रदेश की राजनीति में यह लोकसभा सीट बेहद महत्वपूर्ण है. गुना लोकसभा में पूरा अशोकनगर और शिवपुरी जिला आता है, वहीं कुछ गुना जिले के कुछ हिस्से इसमें शामिल किए गए हैं.
गुना लोकसभा को भी 8 विधानसभाओं से मिलकर बनाया गया है जिसमें शिवपुरी, पिछोर, कोलारस, बमोरी, गुना, अशोक नगर, चंदेरी, मुंगावली शामिल हैं. इनमें से अशोक नगर और बमोरी विधानसभा पर कांग्रेस काबिज है वहीं बाकी विधानसभाओं पर बीजेपी ने अपना कब्जा जमाया हुआ है. ऐतिहासिक स्थानों की बात की जाए तो बजरंगढ़ नाम का ऐतिहासिक स्थान है जहां एक अति प्रचीन मंदिर स्थित है. इस मंदिर की दूर-दूर तक ख्याति है. इसके अलावा यहां पर चंदेरी के किले भी बहुत फेमस हैं. यहां पर जागेश्वरी माता का बहुत प्राचीन मंदिर है, जहां हर नवरात्रि में लाखों भक्त पहुंचते हैं.
ग्वालियर और गुना लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां लगातार राजघराने के सदस्य जीतते आ रहे हैं. राजमाता विजय राजे सिंधिया से लेकर बेटे माधवराव सिंधिया, यशोधरा राजे सिंधिया. बाद में इस सत्ता को ज्योतिरादित्या सिंधिया ने आगे बढ़ाया. इस सीट पर पार्टी से ज्यादा राजघराने का वर्चस्व रहा है इसलिए सिंधिया राजघराने के सदस्य ही यहां से अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ते रहे हैं और एक-दो बार को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर मौकों पर शानदार जीत दर्ज की है.
राजनीति और सिंधिया परिवार
इस लोकसभा सीट की बात की जाए तो 1957 से ही इस सीट पर राजघराने का वर्चस्व रहा है. सबसे पहले यहां से राजमाता विजय राजे सिंधिया ने 1957 में चुनाव लड़ा था. उनके बाद इस सीट पर माधवराव सिंधिया ने सबसे पहली बार 1971 में चुनाव लड़ा था. इस दौरान उन्होंने लगातार तीन लोकसभा चुनाव में गुना लोकसभा सीट पर जीत दर्ज की. माधवराव के बाद इस सीट पर फिर से राजमाता ने बीजेपी से चुनाव लड़ा और 1989 से लेकर 1998 तक चार बार सांसद चुनी गईं. माधवराव सिंधिया ने इस सीट पर फिर से वापसी की और 1999 में कांग्रेस से चुनाव जीता. हालांकि इसके बाद 2002 में उपचुनाव किए गए जिसमें सबसे पहली बार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने यहां से चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की. इसके बाद 2004, 2009 और 2014 में सिंधिया ही यहां से जीतते रहे.
2019 के चुनाव में क्या हुआ?
2019 के चुनाव की बात की जाए तो यहां से बीजेपी ने कृष्णपाल सिंह यादव को मैदान में उतारा था, जबकि कांग्रेस ने एक बार फिर से ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस सीट से टिकट दिया था. राजघराने के वर्चस्व वाली इस सीट पर इस बार कुछ पांसे गलत पड़ गए और पूरे देश में चली मोदी लहर का यहां भी असर दिखाई दिया. बीजेपी के कृष्णपाल सिंह यादव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस चुनाव में करीब सवा लाख वोटों से हरा दिया था.