भिंड लोकसभा सीट चंबल इलाके की दूसरी लोकसभा सीट है जो कि प्रदेश की राजनीति में बेहद खास है. इस लोकसभा सीट में मध्य प्रदेश के दो जिलों दतिया और भिंड को शामिल किया गया है. मध्य प्रदेश की बीजेपी के वर्चस्व वाली कुछ सीटों में भिंड का नाम भी आता है. क्योंकि यहां 1989 से लेकर 2019 तक सिर्फ बीजेपी के उम्मीदवार ने ही जीत दर्ज की है. इस लोकसभा सीट को 8 विधानसभाओं को मिलकर बनाया गया है जिसमें अटेर, भिंड, लाहर, मेहगांव, गोहाद, सेवदा, भांडेर और दतिया शामिल है.
इन आठ विधानसभा सीटों में हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में चार पर कांग्रेस काबिज है और बाकी चार पर बीजेपी ने कब्जा जमाया हुआ है. यह क्षेत्र धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टिकोण से बहुत अहम है. यहां पर ऐतिहासिक धरोहर के रूप में मल्हार राव होलकर की छतरी और अटेर का किला शामिल है. मल्हार राव होलकर की छतरी का निर्माण मालवा की रानी देवी अहिल्याबाई होलकर ने 1766 में करवाया था, वहीं अटेक के किले का निर्माण भदौरिया राजा बदन सिंह ने 1664 के आस-पास करवाया था.
अगर धार्मिक क्षेत्रों की बात की जाए तो भिंड में स्थित वनखंडेश्वर महादेव मंदिर यहां का प्रमुख धार्मिक स्थल है. इस अतिप्रचीन शिव मंदिर का निर्माण चौहान राजा पृथ्वीराज ने करवाया था. पृथ्वीराज चौहान ने इस मंदिर का निर्माण 1175 ई. में करवाया था. यह भिंड और आस-पास के क्षेत्र के लोगों के लिए प्रमुख आस्था का केंद्र है. वहीं दूसरी ओर दतिया में मां पीतांबरा शक्तिपीठ पूरे प्रदेश में प्रमुख आस्था का केंद्र है. मां पीतांबरा शक्तिपीठ तांत्रिक सिद्धि और तप के लिए जाना जाता है.
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जातिगत समीकरण
जातिगत समीकरणों की बात की जाए तो इस लोकसभा सीट पर करीब साढ़े 17 लाख मतदाता हैं. इनमें से 3-3 लाख क्षत्रिय ब्रह्मण वोट बैंक है, दलित वोटवैंक करीब साढ़े तीन लाख है. इनके अलावा यहां पर गुर्जर, कुशवाह, रावत, किरार, धाकड़, रावत करीब 3 लाख और आदिवासी और अल्पसंख्यक करीब साढ़े चार लाख हैं. हालांकि यहां पर बने जातिगत समीकर ज्यादा मायने नहीं रखते क्योंकि मतदान के वक्त इसका मिला जुला असर दिखाई देता है.
राजनीतिक ताना-बाना
भिंड लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो यहां कांग्रेस, भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी सभी को जनता ने बारी-बारी मौका दिया है. हालांकि 1989 के बाद यहां पर एक छत्र बीजेपी का दबदबा रहा है. यहां से 1989 में नरसिंह राव दीक्षित ने चुनाव लड़ा था, बस यहीं से बीजेपी की जीत का सिलसिला शुरू हो गया. इसके बाद यहां से योगानंद सरस्वती ने चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की. 1996 में राम लखन सिंह ने यहां से चुनाव लड़ा और वह बीजेपी के पहली पसंद बन गए. राम लखन सिंह ने इस लोकसभा सीट से लगातार 4 बार जीत दर्ज की. यह जीत का सिलसिला अभी भी जारी है.
पिछले चुनाव में क्या हुआ?
2019 के लोकसभा चुनाव की बात की जाए तो बीजेपी ने यहां से संध्या राय को उम्मीदवार बनाया था, जबकि कांग्रेस ने उनके सामने देवाशीष जरारिया को उतारा था. इस चुनाव में संध्या राय को 5.27 लाख वोट मिले थे जबकि देवाशीष जरारिया 3.27 लाख वोट मिले थे. वहीं बीएसपी का तीसरे नंबर पर यहां वोटबैंक है. यह वोट बैंक निर्णायक नहीं है लेकिन यह मध्य प्रदेश की बाकी सीटों के मुकाबले कहीं ज्यादा है. बीएसपी के बाबू राम जामोर को 66 हजार वोट मिले थे. इस चुनाव में संध्या राय ने करीब 2 लाख वोटों से शानदार जीत दर्ज की थी.