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Saturday, February 15, 2025
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भारत की वो पहली ‘ड्रीम गर्ल’, जिसने भरपूर शोहरत भी कमाई और दौलत भी | Who Is India’s First Dream Girl Devika Rani Boss Of Bombay Talkies Earn A Lot Name Fame Money


भारत की वो पहली 'ड्रीम गर्ल', जिसने भरपूर शोहरत भी कमाई और दौलत भी

वो ‘ड्रीम गर्ल’ जो बनी शानदार बॉस

‘ड्रीम गर्ल’ ये शब्द सुनते ही आपके जेहन में सबसे पहले हेमा मालिनी का नाम आया होगा. लेकिन देखा जाए भारत को अपनी पहली ‘ड्रीम गर्ल’ इससे काफी साल पहले मिल गई थी. एक अभिनेत्री के तौर पर उन्होंने ना सिर्फ अपने अभिनय का लोहा मनवाया, बल्कि वह अपने दौर की ऐसी अदाकारा रहीं, जिन्होंने कई मान्यताओं को तोड़ा. उनके साथ कई विवाद भी जुड़े और बाद में वह एक सफल बिजनेस वुमन भी साबित हुईं.

यहां बात हो रही है ‘अक्षूत कन्या’ की स्टार रहीं देविका रानी चौधरी की, जिनका पॉपुलर नाम देविका रानी ही था. गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगौर के परिवार से आने वाली देविका रानी वह उस दौर में फिल्मों की ‘लीडिंग लेडी’ बनी जिस दौर में महिलाओं की मौजूदगी इस प्रोफेशन में ना के बराबर थी.

इतना ही नहीं, जो महिलाएं उस दौरान फिल्मों में काम कर भी रहीं थीं, तो अपना नाम बदलकर. देविका रानी ने अपने असली नाम से ही पहचान बनाई और नाम-शोहरत के अलावा खूब दौलत भी कमाई. वैसे बताते चलें कि देविका रानी का जन्म 1908 में आज ही के दिन यानी 30 मार्च को हुआ था और उनकी मृत्यु 9 मार्च 1994 को हुई.

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प्रेम रोगी से बिजनेस वुमन तक…

हाल में अगर आपने अमेजन प्राइम की ‘जुबली’ सीरीज देखी होगी, तब आप देविका रानी की कहानी से बेहतर रिलेट कर पाएंगे. देविका रानी की पढ़ाई-लिखाई इंग्लैंड में हुई. 1920 के दशक में स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद वह ड्रामा की दुनिया में आ गईं. हालांकि वह टेक्सटाइल डिजाइन और आर्किटेक्चर की पढ़ाई में भी आगे रहीं.

ड्रामा की दुनिया में ही उनकी मुलाकात 1928 में हिमांशु राय से हुई, जो आगे चलकर शादी में बदल गई. हिमांशु राय तब बर्लिन में काम करते थे. साल 1934 में भारत लौटने के बाद हिमांशु राय एक स्टूडियो बनाना चाहते थे. देविका रानी ने उनकी पूरी मदद की और इस तरह ‘बॉम्बे टॉकीज’ स्टूडियो बनाया. वह ‘बॉम्बे टॉकीज’ की लीडिंग स्टार बन गईं, लेकिन उनका ‘प्रेम रोगी’ होना इस बिजनेस को काफी भारी पड़ा.

दरअसल बॉम्बे टॉकीज के लीड स्टार नज्म-उल-हसन के साथ उनके प्रेम प्रसंग की चर्चा उस दौर में काफी हुई. इसके चलते उनके और हिमांशु राय के संबंधों में तो खटास आई ही, नज्म-उल-हसन के करियर पर भी असर पड़ा और बॉम्बे टॉकीज में ही टेक्नीशियन का काम करने वाले अशोक कुमार का फिल्मी सफर भी शुरू हो गया. हालांकि देविका रानी के जीवन में इतने उथल-पुथल के बावजूद आज उनकी पहचान एक सफल बिजनेस वुमन के तौर पर ही की जाती है.

देविका जब बनी ‘बॉम्बे टॉकीज’ की बॉस

देविका रानी और हिमांशु रॉय सिर्फ लाइफ पार्टनर नहीं थे, बल्कि बॉम्बे टॉकीज में बिजनेस पार्टनर भी थे. मुंबई के मलाड में बना ‘बॉम्बे टॉकीज’ उस समय का सबसे आधुनिक स्टूडियो था. तब शशधर मुखर्जी और अशोक कुमार भी इसके पार्टनर थे. साल 1940 में हिमांशु राय की मृत्यु हो गई और उसके बाद ही देविका रानी ‘बॉम्बे टॉकीज’ की बॉस बनी, जो आज उनकी फिल्म स्टार होने से भी बड़ी पहचान है.

हिमांशु राय की मौत के बाद ‘बॉम्बे टॉकीज’ नीचे जाने लगा था. देविका रानी ने कुछ फिल्में प्रोड्यूस भी कीं, लेकिन वह सफल नहीं हुई. लेकिन 1943 में आई ‘बसंत’ और ‘किस्मत’ फिल्म ने स्टूडियो की तारीख बदल दी. इसके बाद देविका रानी एक फुल टाइम बिजनेस वुमन बन गईं. दिलीप कुमार की खोज करने वाली वही थीं, जिन्हें उन्होंने स्टूडियो की ‘ज्वार भाटा’ में रोल ऑफर किया था.

बढ़ती गई देविका रानी की सैलरी

बॉम्बे टॉकीज की बॉस के तौर पर उनका काम छोटे समय के लिए ही रहा, लेकिन इसे आज तक याद किया जाता है. इस दौरान उनके ऊपर दौलत की बारिश भी भरपूर हुई. कई साल फाइनेंशियली स्ट्रगल करने के बाद 1943 में बॉम्बे टॉकीज के बोर्ड ने उन्हें तब के 20,000 रुपए का बोनस न्यू ईयर गिफ्ट के तौर पर दिया. ये दौलत कितनी होगी, इसका अंदाजा आप बस इस बात से लगा सकते हैं कि जब देश आजाद हुआ तब 1 डॉलर महज 4.16 रुपए के बराबर था.

1943 के बाद बॉम्बे टॉकीज में देविका रानी की सैलरी लगातार बढ़ती गई. ये 1600 रुपए से बढ़कर 2750 रुपए हो गई. इतना ही नहीं उन्हें हर महीने 300 रुपए का एंटरटेनमेंट अलाउंस भी मिलने लगा.



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