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Sunday, February 9, 2025
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बेलछी, हाथी की सवारी, अम्मा और आजमगढ़… 1980 में इंदिरा ने यूं लिखी वापसी की पटकथा | Indira Gandhi Arrived In Bihar Belchi Village On An Elephant journey become turning point and she won 1980 general elections


बेलछी, हाथी की सवारी, अम्मा और आजमगढ़... 1980 में इंदिरा ने यूं लिखी वापसी की पटकथा

बिहार के बेलछी गांव में यात्रा के दौरान इंदिरा गांधी को हाथी पर बिठाया गया था.

1977 का साल अगर इंदिरा गांधी की हार के लिए याद किया जाता है तो 1980 उनकी जोरदार वापसी के लिए. 21 महीने की इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव नतीजे इंदिरा गांधी और कांग्रेस के लिए मायूस करने वाले थे. 1978 में कांग्रेस एक बार फिर दो फाड़ हुई. जनता पार्टी की सरकार उनसे हिसाब चुकता करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही थी. उन्हें गिरफ्तार भी किया गया.चिकमगलूर से उपचुनाव में उन्होंने जीत दर्ज की लेकिन लोकसभा से उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई.

शुरुआत में इंदिरा हार के सदमे में थीं. लेकिन फिर संजय गांधी और उनकी टीम ने सड़कों से अदालतों तक संघर्ष से जोश भरा. इंदिरा भी मैदान में उतरीं. बेलछी की उनकी यात्रा टर्निंग प्वाइंट साबित हुई. जनता पार्टी की आपसी कलह भी उनकी वापसी में मददगार बनी.

पैदल चलेंगे, सारी रात चलेंगे

27 मई 1977 को बिहार शरीफ़ के बेलछी गांव में दबंग मध्यवर्गीय जाति के भूस्वामियों ने भूमि विवाद में ग्यारह दलितों को जिंदा जला दिया था. इस कांड की देश-विदेश में ज्यादा चर्चा ढाई महीने बाद तब हुई जब इंदिरा गांधी वहां पहुंचीं. इमरजेंसी विरोधी लहर में उत्तर भारत में कांग्रेस साफ हो गई थी. केंद्र में मोरारजी और बिहार में कर्पूरी ठाकुर की सरकार थी.

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13 अगस्त 1977. इंदिरा दिल्ली से पटना पहुंचीं. बरसाती मौसम की उस शाम इंदिरा गांधी ने बेलछी पहुंचने की ठानी. कहा, खाना नहीं खाएंगे. वहां चलना चाहिए. कार्यकर्ताओं ने खराब मौसम का हवाला दिया. खस्ताहाल सड़क का जिक्र करते हुए बताया कि वहां कार से नहीं पहुंचा जा सकता. दिल्ली से चलते समय सोनिया गांधी ने भी उन्हें रोका था लेकिन इंदिरा नही मानीं. कहा पैदल चलेंगे. जरूरत हुई तो सारी रात चलेंगे.

आगे कमर तक पानी

पत्रकार जनार्दन ठाकुर ने इंदिरा की इस यात्रा के बारे में लिखा था, “बिहार शरीफ़ कस्बे से निकलते ही सड़क कच्चे रास्ते में बदल गई. जीप के मिट्टी में फंसने पर वे ट्रैक्टर पर बैठ गईं. लेकिन वह भी दलदल में फंस गया. इंदिरा पैदल ही चल पड़ीं. साथियों ने उन्हें आगे कमर तक पानी होने के लिए सचेत किया. इंदिरा ने झिड़का कि मैं पानी के बीच में से भी चल सकती हूं. किसी ने हाथी से जाने का सुझाव दिया.

सवाल हुआ कि हाथी पर आप चढ़ेंगी कैसे? जवाब मिला पहली बार हाथी पर नहीं चढ़ रही. ये जरूर है कि बहुत दिन बाद चढ़ रही हूं. पास के मंदिर से हाथी मंगाया गया. उसे मोती नाम से पुकारा जाता था. कम्बल-चादर बिछा इंदिरा गांधी को हाथी पर बिठाया गया. बाद में राष्ट्रपति बनी प्रतिभा पाटिल डरी हुई हाथी पर उनसे चिपकी हुई थीं. हाथी पर हौदा नहीं था. झूमता हुआ चल रहा मोती दोनों को लगभग झुला रहा था. संतुलन बनाए रखने की चुनौती थी. इंदिरा में ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त साहस था.

इंदिरा अम्मा लौट आईं

जीप से वे जहां उतरीं थीं वहां से बेलछी पहुंचने में लगभग साढ़े तीन घंटे का वक्त लगा था. बेशक सफ़र तकलीफदेह था लेकिन लोगों के जेहन में दर्ज इमरजेंसी की बुरी यादों को भुलाने में ये मददगार था. इंदिरा को लेकर मोती जब बेलछी पहुंचा तो अंधेरा छा चुका था. लालटेनों की बत्तियां ऊंची करते हुए लोग उनकी ओर दौड़े. महावत ने हाथी को बैठाया. इंदिरा उतरीं. पीड़ित परिवारों की व्यथा सुनी. ढाढस बंधाया.

दलितों के बीच संदेश गया कि इंदिरा अम्मा लौट आई हैं. यह प्रतीकात्मक पहल थी. इंदिरा ने यह खास मौका लपक कर सत्तादल पर बढ़त बना ली. वापसी में आधी रात में रास्ते में एक कॉलेज में भाषण देते हुए इंदिरा पुराने तेवरों में थीं. इस यात्रा ने देश-विदेश में सुर्खियां बटोरी थीं. पराजय से पस्त-हताश कांग्रेस कार्यकर्ताओं के झुंड सड़कों पर फिर दिखने लगे थे.

इमरजेंसी की छवि से उबरने का अभियान

अगले दिन पटना में इंदिरा बीमार जेपी से मिलीं. इमरजेंसी में इंदिरा ने उन्हें जेल भेजा था तो जेपी ने उन्हें सत्ता से बेदखल करने में निर्णायक भूमिका निभाई थी. इमरजेंसी में बनी अपनी खराब छवि से उबरने के इंदिरा अभियान पर थीं और ऐसी मुलाकात से वे क्यों चुकतीं जिसकी सुर्खियां बननी तय थीं.

वे अपने पिता के दोस्त जेपी के साथ थीं जिनके लिए टकराव के पहले तक वे बेटी इंदु थीं. ये मुलाकात गिले -शिकवे दूर होने का संदेश देने वाली थी. जेपी और इंदिरा की साथ तस्वीरें खिंची. जेपी ने उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं दीं.

फिर से रायबरेली के वोटरों के बीच

बेशक रायबरेली के वोटरों ने चुनाव में शिकस्त देकर इंदिरा गांधी के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर की थी लेकिन वे एक बार फिर उनके बीच पहुंचकर खोए भरोसे की वापसी की तैयारी में थीं. नाराज वोटरों के बीच वे खुली जीप में पहुंचीं. लोग उनके आगे -पीछे दौड़ रहे थे. जगह-जगह भावुक दृश्य थे. उनका जबरदस्त स्वागत हुआ.

लंदन के अखबार गार्जियन ने लिखा इंदिरा के पुराने वोटरों ने सिर्फ दस मिनट में उन्हें माफ कर दिया. चुनाव में कांग्रेस को पूरी तौर पर खारिज करने वाले वोटरों का मूड भांपने के लिए इंदिरा ने सड़क मार्ग से ही आगे की भी यात्रा जारी रखी. कानपुर तक के रास्ते में जमा भारी भीड़ ने उनका हौसला बढ़ाया. रास्ते की हर सभा में वे दोहराती रहीं कि सत्ता में बैठे लोग एक औरत को सता रहे हैं. कुछ दिनों बाद हरिद्वार की एक बड़ी सभा में वे सवाल कर रही थीं कि मुझ अकेली औरत से यह सरकार डर क्यों रही है ?

आजमगढ़ उपचुनाव, वापसी का संदेश

यात्राओं में सड़कों के किनारे और सभाओं में जुटने वाली भीड़ इंदिरा गांधी का खोया आत्मविश्वास वापस ला रही थी. लेकिन लोकतंत्र में जनसमर्थन का प्रमाणपत्र तो चुनाव नतीजे देते हैं. उत्तर प्रदेश जिसने 1977 के चुनाव में कांग्रेस को पूरी तौर खारिज किया था, वहां के एक उपचुनाव नतीजे ने इंदिरा गांधी को उम्मीदों की किरण दिखाई. मुख्यमंत्री रामनरेश यादव के लोकसभा से इस्तीफे के कारण 1978 में आजमगढ़ में उपचुनाव हुआ. कांग्रेस ने मोहिसिना किदवई को उम्मीदवार बनाया. चौधरी चरण सिंह के भरोसेमंद राम वचन यादव जनता पार्टी की ओर से मुकाबले में थे.

केंद्र-प्रदेश की सरकारों ने उनके पक्ष में पूरी ताकत लगाई. उधर इंदिरा गांधी ने मुस्लिम, दलित वोटरों पर खास फोकस किया. खुद को महिला होने के कारण जनता पार्टी सरकार द्वारा सताए जाने का इमोशनल कार्ड भी चला. मोहिसिना के लिए अनेक सभाएं कीं और क्षेत्र में काफी समय देकर कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया. नतीजे कांग्रेस के पक्ष में गए. मोहिसिना को 1,31,329 और राम वचन यादव को 95,944 वोट मिले.

कहने के लिए यह एक उपचुनाव था लेकिन इसके निहितार्थ गहरे थे. यह एक ऐसी पार्टी की जीत थी जिसे और जिसकी नेता को सिर्फ साल भर पहले वोटरों ने भारी नाराजगी के बीच पूरी तौर पर खारिज कर दिया था. सत्ताधारी इस संदेश को पढ़ने-समझने में भले चुके हों लेकिन इंदिरा ने बखूबी समझा और सत्ता में वापसी की तैयारी में पूरी शिद्दत से जुट गईं.

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