महात्मा गांधी ने रॉलेट एक्ट को वापिस लेने के लिए देश भर में हड़ताल का बिगुल बजा दिया था.
ब्रिटिश हुकूमत ने आजादी के मांग के उठते स्वर को दबाने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपनाए थे. इन्हीं में से एक था रॉलेट एक्ट. यह इतना सख्त और एकतरफा कानून था जिससे अंग्रेजी हुकूमत के पास हिंदुस्तान में बिना कारण बताए और बिना किसी अपराध में शामिल हुए ही, किसी को भी गिरफ्तार करके जेल में डालने जैसी अकूत ताकत मिल गई थी. इस कानून के विरोध में महात्मा गांधी ने 30 मार्च, 1919 को देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया था. आइए जानते हैं कि महात्मा गांधी ने इसे काला कानून क्यों कहा था.
रॉलेट एक्ट के खिलाफ शुरु हुए राष्ट्रव्यापी अहिंसक विरोध को आगे चलकर एंटी-रॉलेट सत्याग्रह आंदोलन नाम से जाना गया. इतिहासकारों के हिसाब से यह गांधीजी के नेतृत्व वाला पहला प्रमुख राष्ट्रीय स्तर अभियान था. मदन मोहन मालवीय सहित कई प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं ने रॉलेट एक्ट का विरोध किया था. चलिए समझते हैं कि किसकी सिफारिशों पर रॉलेट एक्ट तैयार हुआ था और इसमें क्या-क्या प्रावधान थे.
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किसकी सिफारिशों पर तैयार हुआ रॉलेट एक्ट?
ब्रिटिश हुकूमत ने मार्च 1919 में दमनकारी रॉलेट एक्ट को पारित किया था. इसका आधिकारिक नाम अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम 1919 (The Anarchical and Revolutionary Crime Act of 1919) दर्ज है. तो फिर इसे रॉलेट नाम कहां से मिला? दरअसल, यह कानून सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर आधारित था. Indian Culture Portal की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, बढ़ते राष्ट्रवाद और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष की तीव्रता के कारण ब्रिटिश प्रशासन हिन्दुस्तान में राजनीतिक संकट का सामना कर रहा था. इसका मुकाबला करने के लिए, अंग्रेजों ने रॉलेट कानून पेश किया.
Hundred years ago, the British government enacted the Rowlatt Acts of 1919 that curbed the civil and political liberties of Indians. In Feb/March 1919 Mahatma Gandhi announced his desire to start ‘Satyagraha’ against proposed Rowlatt Act. #Gandhi150Years #RowlattAct100Years pic.twitter.com/hbSFg88c7X
— Mani Bhavan Mumbai (@GandhiInMumbai) March 5, 2019
रॉलेट एक्ट के दमनकारी प्रावधान
रॉलेट कानून में असहमति को अपराध घोषित करार देना, सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने का अधिकार देना और राजनीतिक कैदियों को बिना मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखने जैसे प्रावधान थे. यह कानून इतना भयावह था कि अगर किसी शख्स को रौलेट एक्ट के तहत गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया है, तो उसके पास यह अधिकार भी नहीं था कि वह अफसर से पूछ सके कि उसे क्यों और किसके कहने पर जेल में बंद किया गया है. मसलन, किसी भी व्यक्ति (हिंदुस्तानी) को बिना वजह बताए, निरपराधी होने के बाद भी उसे गिरफ्तार करके जेल में डाला जा सकता था.
रिपोर्ट के मुताबिक, इसी काले-कानून के अंतर्गत अंग्रेजी हुकूमत ने पुलिस और प्रशासनिक अफसरों को अधिकार दे दिया था कि वे बलपूर्वक ‘प्रेस की स्वतंत्रता’ का अधिकार भी अपनी मर्जी से कभी भी छीन सकते हैं. यह साफ था की इसे क्रांतिकारी गतिविधियों को कुचलने के लिए ही बनाया गया था. ताकि ऐसा भय फैल जाए जिससे कोई हिंदुस्तानी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावती तेवर अख्तियार करने की हिमाकत ही न करें.
महात्मा गांधी ने बुलाई सत्याग्रह सभा
स्वतंत्रता सेनानी इस कानून को लाने के ब्रिटिश हुकूमत के इरादे पहले ही भाप गए थे. इसी सिलसिले में बापू ने रॉलेट एक्ट को वापिस लेने के लिए देश भर में हड़ताल का बिगुल बजा दिया. उन्होंने 24 फरवरी, 1919 के दिन मुंबई (तब बॉम्बे) में एक बड़ी सत्याग्रह सभा भी आयोजित की. सभा में तय हुआ और कसम ली गई कि रौलेट एक्ट का विरोध सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर किया जाएगा. 6 अप्रैल 1919 को देशव्यापी अहिंसक विरोध प्रदर्शन का आगाज हुआ. महात्मा गांधी के आह्वान पर आंदोलन में 30 मार्च से 19 अप्रैल 1919 के बीच भीड़ की तादाद बढ़ी. आंदोलन के दौरान, रॉलेट कानून का विरोध करने के लिए जिलों और तहसीलों में विभिन्न कांग्रेस केंद्रों पर सभाएं आयोजित की गईं. आधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, इन बैठकों में 2000 से 10,000 लोगों भीड़ इकट्ठा हुई. रॉलेट सत्याग्रह इस मायने से अहम था क्योंकि इसने भारत की राष्ट्रवादी राजनीति को ‘कुछ चुनिंदा वर्गों’ की राजनीति से ‘जनता की राजनीति’ बना दिया था.