मुख्तार अंसारी के माफिया बनने की कहानी
क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी में शुमार एक लड़का कब अपराध की दुनिया का बेताब बादशाह बन गया किसी को खबर तक नहीं लगी. माथे पर गुस्सा और खून में गर्मी उसे विरासत में मिली थी. परिवार को लगता था कि वक्त के साथ सब बदल जाएगा लेकिन कोई अंदाजा भी नहीं लगा पाया कि कब उसने क्रिकेट के बैट को छोड़कर हाथ में बंदूक उठा ली. दबंगई और खून की प्यास का नशा उसके सिर पर चढ़ने लगा था. धीरे-धीरे उसने अपराध की दुनिया के दलदल में अपने पैर जमा लिए और यूपी का सबसे बड़ा माफिया और डॉन बन बैठा. ये लड़का कोई और नहीं मुख्तार अंसारी ही था…
यूपी की राजनीति में भी उसने अपनी पैठ बनाई और बदलती सरकारों के साथ उसका वर्चस्व भी बढ़ता रहा. जब तक सफेदपोश नेताओं का हाथ मुख्तार पर बना रहा तब तक इकबाल बुलंद होता रहा लेकिन जैसे ही उन्होंने हाथ पीछे खींचे उसकी उलटी गिनती शुरू हो गई. मुलायम से लेकर मायावती तक के राज में अपनी दबंगी और राजनीतिक रसूख के बल पर साम्राज्य बनाने वाले मुख्तार का योगी सरकार के राज में अंत हो गया.
माफिया मुख्तार अंसारी को गुरुवार रात करीब साढ़े आठ बजे तबीयत खराब होने के बाद रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया. बताया गया कि उसे उल्टी और बेहोशी की हालत में अस्पताल लगा गया था. अस्पताल में हार्ट अटैक के बाद उसकी मौत हो गई. परिवार के लोगों ने पहले ही आशंका जताई थी कि जेल में उसे जहर दिया जा रहा है. इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच आज उसे सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया.
पिता का अपमान नहीं कर सका बर्दाश्त
80 के दशक में मुख्तार अंसारी की दबंगई के किस्से मोहम्मदाबाद में सुनाई देने लगे थे. उस वक्त मुख्तार के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी गाजीपुर के मोहम्मदाबाद नगर पंचायत के चेयरमैन हुआ करते थे. पिता के राजनीतिक रसूख ने कहीं न कहीं मुख्तार के सिर पर कब्जा कर लिया था. जिस वक्त मुख्तार अपराध की दुनिया की एबीसी सीख ही रहा था उस वक्त मोहम्मदाबाद में एक और प्रभावशाली व्यक्ति का नाम चर्चा में था. उसका नाम सच्चिदानंद राय था.
मोहम्मदाबाद बाजार में सच्चिदानंद राय की किसी बात को लेकर मुख्तार के पिता सुब्हानउल्लाह से बहस हो गई. दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि सच्चिदानंद ने सुब्हानउल्लाह की भरे बाजार बेइज्जती कर दी और काफी लोगों के सामने उन्हें भला-बुरा कह दिया. इस बात की जानकारी जैसे ही मुख्तार को लगी तो उसने अपने पिता के अपमान का बदला लेने की ठान की. इसके लिए मुख्तार ने सैदपुर कोतवाली के मुड़ियार गांव में रहने वाले गैंगस्टर साधु सिंह से मदद मांगी. साधु सिंह ने सच्चिदानंद राय को मरवा दिया. तब से मुख्तार ने साधु सिंह को अपना गुरु मान लिया.
साधु ने गुरुदक्षिणा में मांगी अपने दुश्मन की लाश
साधु ने मुख्तार को अपराध की दुनिया में वहां पहुंचा दिया, जिसकी कल्पना शायद मुख्तार ने भी नहीं की थी. अब वक्त आ गया था कि साधु अपनी गुरुदक्षिणा मांग सके. साधु गाजीपुर में अपना वर्चस्व बनाना चाहता था. इसके लिए मेदनीपुर गांव के दबंग रणजीत सिंह को रास्ते से हटना जरूरी था. साधु ने इसके लिए पूर्वांचल के लड़के मुख्तार को चुना और गुरुदक्षिणा में रणजीत की लाश मांगी. मुख्तार पर साधु का इतना अहसान था कि वो इसके लिए मना भी नहीं कर सका.
इसके बाद मुख्तार ने पूरी प्लानिंग के साथ फिल्मी स्टाइल में रणजीत सिंह की हत्या करवा दी. इसके लिए पहले रणजीत सिंह के घर की रेकी की गई. हत्या को अंजाम देने के लिए रणजीत के पड़ोसी राम मल्लाह से दोस्ती की गई. मुख्तार, राम मल्लाह के घर पर अक्सर आने जाने लगा. मुलाकात के दौरान ही मुख्तार ने राजू और रणजीत के घर की दीवार में एक सुराख किया, जिसकी मदद से मुख्तार ने रणजीत को गोली मार दी.
पूर्वांचल में बढ़ता गया मुख्तार का खौफ
इस हत्याकांड ने पूरे पूर्वांचल को हिलाकर रख दिया और मुख्तार का खौफ हर जगह दिखाई देने लगा. कहा जाता है कि मुख्तार अपनी रसूखदार मूछों पर तांव देकर जब अपनी 786 नंबर की खुली जीप में चलता था तो रास्ते खाली हो जाया करते थे. मुख्तार ने गुरु दक्षिणा के लिए जो बंदूक हाथ में थामी उसकी गोलियों की गड़गड़ाहट की गूंज यूपी में कई सालों तक सुनाई दी. देखते ही देखते प्रतिष्ठित राजनीतिक खानदान से आने वाला लड़का पूर्वांचल का सबसे बड़ा माफिया बन गया.