नर्मदा नदी के किनारों पर बसा जबलपुर शहर विंध्य पर्वतों से घिरा हुआ है. यह शहर प्रदेश की संस्कारधानी भी कहलाता है, प्रदेश के चार महानगरों में से एक जबलपुर में प्रदेश के हाई कोर्ट की प्रमुख पीठ है. यही नहीं जबलपुर में संगमरमर की पहाड़ियां और नर्मदा से बने धुंआधार जल प्रपात पूरे देश और दुनिया में प्रसिद्ध हैं. यहां की राजनीति में बेहद खास है. आजादी के बाद से ही यह सीट लगातार कांग्रेस की बफादार बनी हुई थी लेकिन, 1996 के बाद से इस सीट पर सिर्फ कमल ही खिल रहा है.
जबलपुर में 8 विधानसभाएं हैं जिनमें पाटन, बर्गी, जबलपुर ईस्ट, जबलपुर नॉर्थ, जबलपुर कैंट, जबलपुर वेस्ट, पनागार और शामिल हैं. इन सभी विधानसभाओं में सिर्फ एक ही कांग्रेस के खाते में गई है, जबकि बाकी विधानसभाएं बीजेपी के हिस्से में आई हैं. यहां पर आर्मी को सप्लाई होने वाले हैवी ड्यूटी ट्रक बनाए जाते हैं. यह ट्रक यहां मौजूद वीकल फैक्ट्री में बनाए जाते हैं. औद्योगिक और प्राकृतिक रूप से समृद्ध जबलपुर शहर के नाम के पीछे भी अनोखी कहानी है.
जबालि ऋषि की तपोभूमि
दरअसल जबलपुर शहर जबालि नाम के महाऋषि की तपोभूमि रहा है, इसी वजह से शुरुआत में इस शहर को जबालिपुरम कहा जाता था. लेकिन, बाद में इसका नाम धीरे-धीरे जबलपुर हो गया. बीच में ऐसी भी खबरें सामने आई हैं, जिनमें कहा जा रहा है कि जल्द ही जबलपुर का नाम बदलकर जबालिपुरम रखने की तैयारी की जा रही है. हालांकि अभी तक इसकी औपचारिक घोषणा नहीं हुई है. जबलपुर में अगर ऐतिहासिक धरोहरों की बात की जाए तो यहां पर 1100 सदी का एक मदन महल है जो शहर की ऐतिहासिक विरासत है.
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सफेद संगमरमर बड़ी पहचान
जबलपुर में नर्मदा घाटी के किनारे बने संगमरमर के पहाड़ भी इस शहर की बड़ी पहचानों में से एक है. यहां के संगमरमर को दुनिया के कई कोनों तक भेजा जाता है, और पूरे देश में बने हजारों मंदिरों में यहीं के सफेद संगमरमर की मूर्तियां स्थापित हैं. संगमरमर के अलावा पूरे देश में यहां की पहचान नर्मदेश्वर शिवलिंग के लिए भी होती है. शिव आराधना में नर्मदेश्वर शिवलिंग यानी नर्मदा से निकले शिवलिंग का सबसे ज्यादा महत्व बताया जाता है.
शहर की राजनीति
जबलपुर संसदीय क्षेत्र में कुल 17,11,683 वोटर्स हैं, देश में जब पहले चुनाव हुए थे उस वक्त मंडला और जबलपुर को एक ही लोकसभा सीट में रखा गया था. जहां से सबसे पहली बार मंगरु गुरु उइके ने चुनाव जीता था. इसके बाद 1957 में जबलपुर और मंडला को दो अलग-अलग संसदीय क्षेत्र बना दिया गया था. इसके बाद यह सीट लंबे वक्त तक कांग्रेस के पाले में रही. हालांकि कांग्रेस का विजयरथ 1996 में आकर रुक गया और तभी से इस सीट पर हर बार कमल खिलता हुआ आ रहा है.
कैसा रहा 2019 का चुनाव
जबलपुर लोकसभा सीट की आठ विधानसभाओं सीट में से सिर्फ एक को छोड़कर 7 पर बीजेपी ने जीत दर्ज की है. 1996 से लेकर अभी तक बीजेपी ही जीत दर्ज कर रही है. 1996-98 में यहां से बाबूराव परांजपे ने बीजेपी से चुनाव लड़ा और जीता. इसके बाद 1999 के लोकसभा चुनाव में जयश्री बनर्जी ने बीजेपी से बाजी मारी. जयश्री के बाद 2004 में बीजेपी ने यहां से राकेश सिंह को टिकट दिया और तब से लेकर 2019 तक इस सीट से राकेश सिंह ही जीतते हुए आ रहे हैं.