मध्य प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की चर्चा जब भी की जाती है तो सबके जेहन में सबसे पहले कमलनाथ का नाम आता है. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ और उनकी छिंदवाड़ा लोकसभा सीट जैसे एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं. इस लोकसभा सीट पर जनता ने हमेशा नाथ परिवार पर अपना भरोसा जताया है. मध्य प्रदेश में बीजेपी ने कई गढ़ बनाए हैं लेकिन कभी छिंदवाड़ा से कमलनाथ को नहीं हिला सकी. इस सीट को पूरे देश में कमलनाथ के नाम से ज्यादा जाना जाता है.
छिंदवाड़ा की बात की जाए तो यह शहर हरे-भरे सतपुड़ा के जंगलों से घिरा हुआ है और यह बैनगंगा नदी के किनारे पर बसा हुआ है. छोटी-बड़ी सभी मिलाकर इस क्षेत्र में तीन नदियां बहती हैं जिनसे यहां की ज्यादातर जमीनों की सिंचाई होती है. अगर इस क्षेत्र में धरोहरों की बात की जाए तो यहां पर 1857 की क्रांति से पहले की ब्रिटिश आर्मी का एक शिविर बना हुआ है जो कि मिट्टी से बना एक दुर्ग है. वहीं अगर धार्मिक स्थलों की बात की जाए तो छिंदवाड़ा के सिमरिया गांव में हनुमान जी का मंदिर है जिसकी मान्यता देश ही नहीं विदेश तक फैली है. मंदिर में हनुमान जी की 101 फीट ऊंची मूर्ति है. इस क्षेत्र में पर्यटन के हिसाब से यह मंदिर अतिमहत्वपूर्ण है.
छिंदवाड़ा और राजनीति
छिंदवाड़ा लोकसभा में 7 विधानसभाएं हैं जिनमें जुन्नारदेव, अमरवाड़ा, चौराई, सौसर, छिंदवाड़ा, परासिया, पंधुमा शामिल हैं. इन सभी विधानसभाओं पर फिलहाल कांग्रेस ही काबिज है. यहां पर 1952 में पहले चुनाव हुए थे, जिसमें कांग्रेस की जीत हुई थी. बस यहीं से इस लोकसभा सीट की कांग्रेस से कुछ ऐसी बनी कि सिर्फ एक बार यहां उपचुनाव में 1997 में सुंदर लाल पटवा जीते थे. इसके अलावा हर बार यहां कांग्रेस की जीत होती रही है. खुद कमलनाथ भी इस सीट से 9 बार लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. 2019 में कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ इस सीट से चुनाव लड़े थे. लोकसभा क्षेत्र में करीब 15 लाख वोटर्स हैं.
नाथ परिवार की सीट
गांधी परिवार के बेहद करीबी माने जाने वाले कमलनाथ ने 1980 में सबसे पहली बार इस लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. बस यहीं से कमलनाथ के जीत का सिलसिला चलता रहा. कमलनाथ यहां से लगातार 4 लोकसभा चुनाव जीते. जिसमें 1980, 1984, 1989, 1994 के चुनाव शामिल हैं. इसके बाद 1996 में इस सीट से कमलनाथ की पत्नी अल्का नाथ ने चुनाव लड़ा और वो भी जीत गईं. इसके बाद सिर्फ एक साल बाद ही दोबारा चुनाव हुए और उसमें यह सीट बीजेपी के हाथ चली.
यहां से सुंदरलाल पटवा ने जीत दर्ज की. ज्यादा दिन नहीं हुए थे और 1998 में फिर चुनाव हुए और कमलनाथ ने इस सीट पर फिर से शानदार जीत दर्ज की. इसके बाद 1998, 1999, 2004, 2009, 2014 तक फिर से कमलनाथ ने यहां पर शानदार जीत दर्ज की है. इसके बाद 2019 में कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ ने यहां से चुनाव लड़ा था और करीब 37 हजार वोटों से बीजेपी के उम्मीदवार नाथन शाह को हरा दिया था.