कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के नेता मिलती-जुलती बातें कहें और वह भी शीर्ष स्तर के, ऐसा बड़ा कम होता है. पर इस महीने दो अलग-अलग मौकों पर दोनों खेमों से एक जैसे कुछ बयान मीडिया में आए.
देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पास आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की किसी सीट से चुनाव लड़ने का विकल्प था पर उन्होंने बहुत सोचने के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष जेपी नड्डा को ना कह दिया.
देश की वित्त मंत्री का मानना था कि उनके पास ‘उस तरह के पैसे नहीं जिससे वह चुनाव लड़ सकें’. ये तो एक बात हुई. दूसरी चीज भी इसी महीने की 21 तारीख को घटी.
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राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे एक साथ प्रेस कांफ्रेंस करने आए और कमोबेश वित्त मंत्री ही की तरह कहा कि हमारे पास चुनाव लड़ने को पैसे नहीं.
कांग्रेस के ऐसा कहने के पीछे की वजह निर्मला सीतारमण से थोड़ी जुदा थी.
बकौल वित्त मंत्री, उनकी आय और संपत्ति इतनी नहीं थी कि वह चुनाव लड़ सकें तो कांग्रेस के दर्द के पीछे की वजह पार्टी की आय पर लगने वाला इनकम टैक्स विभाग का ‘भारी-भरकम और बेतुका टैक्स’ था.
कांग्रेस को तो यहां तक कहना पड़ा कि उसके अकाउंट फ्रीज किए जाने से चुनाव प्रचार में दिक्कत आ रही, अपने नेताओं को एक शहर से दूसरे शहर भेजने के लिए रेलवे टिकट तक की व्यवस्था नहीं हो पा रही.
कांग्रेस को शायद उम्मीद थी कि चुनाव की दुहाई दिए जाने और जनता के सामने अपनी बात रखने से विभाग और सरकार थोड़ी नरमी दिखाएगी पर हकीकत में ऐसा कुछ भी होता हुआ नहीं नजर आ रहा.
आज इनकम टैक्स विभाग ने कांग्रेस को 1,700 करोड़ रुपए का नया डिमांड नोटिस भेज दिया है.
कांग्रेस के टैक्स बकाया का ये पूरा मामला काफी उलाझाऊ है.
फिर भी एक लाइन में कहें तो ये केस – पार्टी की आय और उससे संबंधी टैक्स की अनियमितता और हेरफेर से जुड़ा है. आइये इसे एक-एक कर समझते हैं.
पहला मामला – 1,700 करोड़ की गिरी गाज
इनकम टैक्स विभाग ने कांग्रेस को 1,700 करोड़ रुपए का जो डिमांड नोटिस भेजा है, ये वित्त वर्ष 2017-18 से लेकर 2020-21 के बीच के टैक्स रिटर्न की अनियमितता से जुड़ा है. 1,700 करोड़ की रकम में जुर्माना और ब्याज दोनों शामिल है.
कांग्रस इन चार बरस (2017-18, 2018-19, 2019-20, 2020-21) की पार्टी की आय से संबंधित टैक्स के पुनर्मूल्यांकन को या यूं कहें कि दोबारा से हिसाब-किताब किए जाने को सही नहीं मानती. वह इसके खिलाफ हाईकोर्ट भी गई थी लेकिन उसे राहत नहीं मिल पाई.
हाईकोर्ट ने कांग्रेस की अपील को ठुकराते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया तो यही लगता है कि आयकर विभाग ने कांग्रेस के खिलाफ ठोस सबूत जुटाए हैं.
सबसे अहम है आयकर विभाग के वे छापे जो 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले हुए और इस दौरान कांग्रेस से मुताल्लिक तकरीबन 524 करोड़ रुपये के ऐसे लेनदेन का पता चला जिसका कोई हिसाब-किताब मौजूद नहीं था.
कांग्रेस पार्टी इन आरोपों से इत्तेफाक नहीं रखती. लेकिन मुसीबत ये है कि गुरुवार, 28 मार्च को जब दिल्ली हाईकोर्ट ने भी कांग्रेस को किसी भी तरह की मोहलत देने से इनकार कर दिया तो आज, 29 मार्च को विभाग ने 1,700 करोड़ की टैक्स वसूली का नोटिस देश की सबसे पुरानी पार्टी को थमा दिया.
राहुल गांधी ने आईटी की नोटिस को बीजेपी का टैक्स आतंकवाद और लोकतंत्र का चीरहरण कहा है. आरोप है कि इसके जरिये देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी की आर्थिक कमर तोड़ने की कोशिश की जा रही है ताकि वह चुनाव न लड़ सके.
ये तो खैर 2017-18 से लेकर 2020-21 की टैक्स अनियमितता का पूरा मामला हुआ.
आयकर विभाग साल 2014-15 से लेकर 2016-17 तक की टैक्स अनियमितता की भी नए सिरे से जांच कर रही है. पार्टी इसके खिलाफ भी हाईकोर्ट जा चुकी है लेकिन 22 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा और जस्टिस पुरुषेंद्र कौरव की बेंच विभाग की तफ्तीश के खिलाफ कांग्रेस की याचिका को खारिज कर चुकी है.
इस तरह कांग्रेस पार्टी के खातों की 7 साल की आय और उससे जुड़ी कथित अनियमितता आईटी डिपार्टमेंट की रडार पर है.
कहा जा रहा है कि इन 7 बरसों के अलावा विभाग 2021-22, 2022-23, 2023-24 के टैक्स असेसमेंट की भी कार्रवाई शुरू कर सकता है. ये पूरा हिसाब-किताब 31 मार्च, 2024 के बाद जारी किया जा सकता है.
अगर ऐसा होता है तो कुल मिलाकर 10 वर्षों के टैक्स असेसमेंट का बोझ चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी के मत्थे आ सकता है.
दूसरा मामला – 135 करोड़ की वसूली
मीडिया रपटों के मुताबिक ये मामला है साल 2018-19 के टैक्स असेसमेंट से जुड़ा. इस दौरान कांग्रेस ने साढ़े 14 लाख रुपये का डोनेशन नकद में लिया और टैक्स रिटर्न भी 33 दिन की देरी से फाइल किया.
राजनीतिक दलों को इनकम टैक्स से जुड़ी जो भी छूट मिलती है, वह उन्हें आयकर कानून की धारा 13(1) के तहत क्लेम करनी पड़ती है. कांग्रेस पर इसी प्रावधान के उल्लंघन का आरोप है.
चूंकि पार्टी ने इस वित्त वर्ष के दौरान 33 दिन की देरी से टैक्स रिटर्न फाइल किया, आयकर विभाग ने कांग्रेस की कुल 199 करोड़ की आय पर टैक्स के छूट के दावे को खारिज कर दिया.
2021 में विभाग ने 105 करोड़ की अनियमितता के एवज में 20 फीसदी यानी 21 करोड़ चुकाने को कहा पर कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया.
पार्टी ये मामला लेकर इनकम टैक्स अपीलेट ट्रिब्यूनल (आईटीएटी) पहुंची लेकिन ट्रिब्यूनल ने याचिका को सुनने के बाद खारिज कर दिया.
पार्टी थक-हार कर दिल्ली हाईकोर्ट गई पर वहां भी इस महीने की 13 तारीख को उसकी गुहार काम न आई.
नतीजतन, 16 मार्च को आयकर विभाग ने कांग्रेस के बैंक खातों से 135 करोड़ रुपये की वसूली कर ली. इसमें से 103 करोड़ के करीब का जुर्माना था और बाकी के 21 करोड़ इस जुर्माने पर लगे ब्याज की रकम थी.
तीसरा मामला – 30 साल पुराना
तीसरा मामला करीब 30 साल पुराना है. कांग्रेस की 1994-95 की आय और उससे जुड़े हिसाब-किताब वाले इस केस में आयकर विभाग ने पार्टी पर 53 करोड़ का जुर्माना लगाया है.
ऊपर के दोनों मामलों ही की तरह यहां भी आयकर कानून की धारा 13 ही के सेक्शन ए के उल्लंघन की बात की जा रही.
कांग्रेस इसे बदले की राजनीति का नमूना बता रही है जबकि दूसरे पक्ष का कहना है कि आयकर विभाग लगातार इस सिलसिले में पार्टी को अलर्ट भेजता रहा है.
एक ओर कांग्रेस की हीलाहवाली, लेट-लतीफी और लापरवाही को इस पूरे घटनाक्रम का जिम्मेदार बताया जा रहा तो कांग्रेस इस पूरी कार्रवाई को आम चुनाव से पहले उसे आर्थिक तौर पर पंगु करने की सियासी चाल बता रही है और इनकम टैक्स विभाग को भारतीय जनता पार्टी की फ्रंटल ऑर्गनाइजेशन कह रही है.
हाईकोर्ट, ट्रिब्यूनल और आयकर विभाग से नाउम्मीद होने के बाद अब कांग्रेस पार्टी की आखिरी उम्मीद सुप्रीम कोर्ट से है.