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Wednesday, December 4, 2024
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राजनीति को बुरा अनुभव बताया, लगे थे गुमशुदगी के पोस्टर… जानें कैसी थी गोविंदा की पहली पारी | govinda joins shiv sena eknath shinde in first inning 2004 govinda defeated bjp ram naik and in 2009 congress nirupam replaced him


राजनीति को बुरा अनुभव बताया, लगे थे गुमशुदगी के पोस्टर... जानें कैसी थी गोविंदा की पहली पारी

फ‍िल्‍म अभिनेता गोविंदा गुरुवार को एकनाथ शिंदे की शिवसेना में शामिल हुए.

फिल्म अभिनेता गोविंदा ने अपनी दूसरी राजनीतिक पारी की शुरुआत की है. गुरुवार को वो एकनाथ शिंदे की शिवसेना में शामिल हुए और कहा, मैं एकनाथ शिंदे को धन्यवाद देता हूं. 2009 में जब राजनीति से दूरी बनाई थी तो सोचा नहीं था कि कभी दोबारा इसमें वापस लौटूंगा. अब एकनाथ शिंदे की पार्टी में आया हूं. 14 साल का मेरा वनवास खत्म हो गया है. अब चर्चा है कि पार्टी गोविंदा को उत्तर-पश्चिम सीट से लोकसभा चुनाव में उतार सकती है.

गोविंदा ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत 2004 में कांग्रेस से की थी और 2009 में इससे दूरी बना ली थी. पार्टी ने उन्हें उत्तर मुंबई सीट से लोकसभा उम्मीदवार बनाया था और गोविंदा ने जीत हासिल करके चौंकाया था.

गोविंदा ने BJP के गढ़ में लगाई थी सेंध

2004 के लोकसभा चुनाव में उत्तर मुंबई सीट से मैदान में उतरे गोविंदा का मुकाबला भाजपा के उम्मीदवार और दिग्गज नेता राम नाईक से था. मुकाबला इसलिए दिलचस्प था क्योंकि उत्तर मुंबई सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता था. इसी सीट से राम नईक तीन बार सांसद रह चुके थे. भाजपा की इस संभावित जीत को रोकने के लिए कांग्रेस ने गोविंदा को मैदान में उतारा था. गोविंदा जीते भी और पार्टी का यह दांव एकदम सही साबित हुआ. इसे मुंबई की राजनीति में बड़े उलटफेर के तौर पर देखा गया था.

चुनाव के बाद राम नाईक ने दावा किया था कि गोविंदा ने यह चुनाव जीतने के लिए अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और बिल्डर हितेन ठाकुर से मदद ली थी. नईक ने अपनी किताब किताब ‘चरैवेति, चरैवेति’ (बढ़ते रहो) में इसका जिक्र किया था. उन्होंने लिखा था कि चुनाव में मतदाता को प्रभावित करने के लिए गोविंदा ने उनकी मदद ली थी. हालांकि, गोविंदा ने राम नईक के दावों को खारिज कर दिया था.

जीत का गुरुर और निराश मतदाता

भाजपा को हराने के बाद गोविंदा 2004 में लोकसभा पहुंचे और पार्टी की नजरों में खरे उतरे. राजनीति में अपना मुकाम बनाने के लिए एक कदम आगे भी बढ़े, लेकिन जिस मतदाताओं की वजह से वो इस पायदान पर पहुंचे थे उन्हें निराश कर दिया. चुनाव जीतने के बाद गोविंदा अपने निर्वाचन क्षेत्र नहीं पहुंचे. 5 सालों तक जनता के मुद्दों को समझने में नाकामयाब रहे. जनता में उनको लेकर गुस्सा था. क्षेत्र में उनकी गुमशुदगी के पोस्टर तक लगा दिए गए थे. कहा जाने लगा था कि उन्हें अपनी जीत पर घमंड हो गया था.

संसदीय कार्यवाही में एक भी दिन नहीं पहुंचे

सांसद बनने के बाद गोविंदा संसदीय कार्यवाही में एक भी दिन शामिल नहीं हुए. सदन में अनुपस्थित रहने वाले सांसदों में गोविंदा सबसे ऊपर थे. पांच साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने सदन में एक भी सवाल नहीं उठाया.

2009 के बाद गोविंदा ने अपनी पहली राजनीतिक पारी को अलविदा कहते हुए आरोप भी लगाए थे. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में उनके प्रतिद्वंद्वियों ने कार्यकाल के दौरान दिक्कतें पैदा कीं. कहा- कुछ लोग मेरे साथ काम नहीं करना चाहते. इसलिए मैं चुनाव लड़ने की जगह सिर्फ प्रचार करने का फैसला लिया. गोविंदा ने बातचीत करते हुए राजनीति को बुरा अनुभव बताया था.

इसलिए कट गया था टिकट

मतदाताओं की नाराजगी और उनका रुख देखने के बाद कांग्रेस ने 2009 के लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काट दिया था. पार्टी ने उस चुनाव में उत्तरी मुंबई में गोविंदा की जगह संजय निरुपम को टिकट देकर मैदान में उतारा. पार्टी को लगता था मतदाता का गुस्सा हार की वजह बन सकता है और वो फैसला सही साबित हुआ. 2009 के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार संजय निरुपम भाजपा के राम नाईक को शिकस्त देने में कामयाब रहे. यहीं से गोविंदा राजनीति से दूर जाने लगे. धीरे-धीरे राजनीति से गायब हो गए.

अब आगे क्या?

अब दूसरी पारी से गोविंदा और शिवसेना को दोनों को फायदा हो सकता है. गोविंदा फिल्मों से दूर हैं और राजनीति उनके कॅरियर को नई दिशा दे सकती है. वहीं, गोविंदा का साथ मिलने से पार्टी को फायदा हो सकता है. सेलिब्रिटी के प्रचार के साथ पार्टी का भी दायरा बढ़ेगा. गोविंदा के साथ उनके दूसरे साथी भी किसी न किसी रूप में पार्टी का हिस्सा बनकर फायदा पहुंचा सकते हैं. हालांकि यह वक्त बताएगा कि गोविंदा पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतर पाएंगे.

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