
मुख्तार अंसारी (फाइल फोटो)
पूर्वांचल के माफिया डॉन रहे मुख्तार अंसारी को आप खूंखार बदमाश कह सकते हैं. सरकारी रिकार्ड में भी उसे गैंगस्टर कहा गया है, लेकिन ऐसे भी काफी लोग हैं जो उसे मसीहा मानते हैं. मऊ और गाजीपुर में कई लोग मुख्तार अंसारी द्वारा उपकृत भी हुए हैं. एक समय कहा जाता था कि मुख्तार के दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटा. इस कहानी में हम यही बताने की कोशिश करेंगे कि 40 साल तक खौफ का राज चलाने वाले मुख्तार अंसारी के कितने चेहरे थे. कैसे वह किसी के लिए डैकुला बन जाता था तो कोई उसे मसीहा मानने लग जाता था.
पहली कहानी उस समय की है, जब मुख्तार अंसारी पहली बार मऊ सदर विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे. उस समय तक उनकी माफियागिरी चमक चुकी थी. उन्हीं दिनों मऊ के शहादतपुरा में एक मुस्लिम दंपत्ति उनके सामने गुहार लेकर हाजिर हुआ. बताया कि बेटी की शादी तय है, लेकिन पैसे की व्यवस्था नहीं हो पायी है. उस समय मुख्तार ने दंपत्ति को यह भरोसा देते हुए लौटा दिया था कि शादी तय समय पर होगी. उस समय वह लोग मुख्तार को कोसते हुए घर लौट आए, लेकिन अगले ही दिन लड़के वाले खुद उनके घर पहुंच गए. कहा कि वह कोई दहेज नहीं लेंगे.
शादी में की थी मदद
वहीं शादी से एक दिन पहले मुख्तार के आदमी शादी के लिए जरूरी सामान लेकर पहुंच गए. तब से वह परिवार मुख्तार को मसीहा मानता है. ऐसी ही एक कहानी साल 2005 के आसपास की है. उस समय मुख्तार जेल में थे. मऊ के दक्षिण टोला में रहने वाला एक जुलाहा परिवार मुसीबत में था. दरअसल उनके इकलौते बेटे को मुंबई पुलिस ने अरेस्ट किया था. किसी माध्यम से उस परिवार ने मुख्तार से गुहार लगाई. उस समय मुख्तार ने उनकी पूरी मदद की और मऊ से अपने लोगों को मुंबई भेज कर उस लड़के को रिहा कराया.
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जेल में रहकर भी मुंबई में की मदद
बाद में पता चला कि मुंबई पुलिस ने उसे किसी गलतफहमी की वजह से अरेस्ट किया था. वह परिवार भी मुख्तार को किसी देवदूत से कम नहीं मानता. अब बात कर लेते हैं मुख्तार के दूसरे चेहरे की. 90 के दशक में आमगढ़ के तरवां थाना क्षेत्र में सड़क निर्माण के ठेके को लेकर मुख्तार अंसारी का एक ठेकेदार से विवाद हुआ था. इस मामले में मुख्तार के गुर्गों ने ठेकेदार को गोली मार दी. इस वारदात में ठेकेदार तो बच गया, लेकिन गोली एक मजदूर को लगी और इलाज के दौरान उसकी मौके पर ही मौत हो गई थी.
विरोधियों पर डालता था इल्जाम
इस मामले में मुख्तार मजदूर परिवार का हितैसी बनकर आया और अपने विरोधियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया. हालांकि बाद में मुकदमे की जांच बलिया ट्रांसफर हो गई और निष्पक्ष जांच के बाद मुख्तार के खिलाफ आजमगढ़ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल किया जा सका. इसी प्रकार बनारस के कोयला व्यापारी रुंगटा के अपहरण और हत्या के मामले में मुख्तार ने पहले पीड़ित परिवार का हितैसी बनने की कोशिश किया था. उसने प्रयास किया था कि यह मुकदमा बृजेश सिंह के सिर पर डाल दिया जाए. हालांकि इस मामले में भी उसे कामयाबी नहीं मिली और जब मामले की जांच सीबीआई ने की वह दोषी पाया गया.