पूर्वांचल में अपराध और बाहुबली
वह 1970 का दशक था. एक तरफ आजाद भारत में इंदिरागांधी ने आपातकाल लगा दिया था, वहीं दूसरी तरफ जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व बहुसंख्यक युवा देश की राजनीति को बदलने के लिए मचल रहे थे. इसकी रुपरेखा पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की धरती पर गढ़ी जा रही थी. उन्हीं दिनों पूर्वांचल के गोरखपुर में एक नई लाइन भी तैयार हो रही थी. यह लाइन बाहुबलियों की और गुंडे बदमाशों की थी. इस लाइन को चिल्लूपार विधानसभा से तत्कालीन विधायक विधायक हरिशंकर तिवारी दिशा दे रहे थे.
उस समय के पुलिस अधिकारियों की माने तो राजनीति के अपराधीकरण और अपराध के राजनीतिकरण का श्रेय हरिशंकर तिवारी को जाता है. राजनीति में रहते हुए रेलवे और कोयले का ठेका लेने के लिए हरिशंकर तिवारी ने वह सबकुछ किया, जो सूचितापूर्ण राजनीति में वर्जित है. इसके लिए उन्होंने अपनी खुद की नर्सरी में विरेंद्र शाही और श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे गैंगस्टर पैदा किए. वहीं जब विरेंद्र शाही उनकी सल्तनत को चुनौती देने लगे तो श्रीप्रकाश शुक्ला से मरवा दिया. फिर जब श्रीप्रकाश शुक्ला गले की फांस बना तो तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के जरिए उसका भी कल्याण करा दिया.
दूसरी पीढ़ी के थे मुख्तार और बृजेश सिंह
इसी नर्सरी की अगली पौध के रूप में मऊ में मुख्तार अंसारी और उसके सामानांतर बनारस में बृजेश सिंह, जौनपुर में धनंजय सिंह समेत करीब एक दर्जन से अधिक माफिया पैदा हुए. ये सभी गैंगस्टर आपस में तो आए दिन टकराते रहे, लेकिन हरिशंकर तिवारी से ज्यादा वास्ता नहीं रखा. इसकी मुख्य वजह यह थी कि हरिशंकर तिवारी गोरखपुर तक ही सिमटे हुए थे और तिवारी हाता से अपने सारे खेल निपटाते थे. वहीं बाद में पैदा हुए तमाम गैंगेस्टर गोरखपुर से इतर अपने अपने इलाके में रसूख और खौफ पैदा करने में जुटे थे.
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गैंगवार से निपटने के लिए बनी एसटीएफ
इसके चलते पूर्वांचल की धरती आए दिन गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंजने लगी. श्रीप्रकाश शुक्ला का तो आतंक ऐसा था कि वह सरेआम सुपारी लेता और दिन दहाड़े बीच चौराहे पर गोलियां चलाने लगा. इधर, मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह में हर दूसरे दिन गोलीबारी हो रही थी. उस समय उत्तर प्रदेश पुलिस ने इन वारदातों के लिए पहली बार गैंगवार शब्द का इस्तेमाल किया.यह शब्द इजिप्ट की डिक्सनरी से लिया गया है. उस समय एक और काम यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में गैंगवार के खात्मे के लिए सीएम कल्याण सिंह ने एसटीएफ का गठन कर दिया.
50 बदमाशों की बनी थी लिस्ट
एसटीएफ ने उस समय उत्तर प्रदेश के टॉप 50 बदमाशों की लिस्ट तैयार की थी. इस लिस्ट में श्रीप्रकाश शुक्ला को 6ठें स्थान पर रखा गया था. वहीं 32 अन्य बदमाश हरिशंकर तिवारी की नर्सरी के ही पौध थे.यह लिस्ट जब अगले दिन सुबह सीएम कल्याण सिंह के सामने रखी गई तो उन्होंने श्रीप्रकाश का नाम 6ठें स्थान से काट कर सबसे ऊपर रख दिया और बोल पड़े- मार डालो इन गुंडों को. मुख्यमंत्री का निर्देश मिलते ही एसटीएफ उत्तर प्रदेश के बदमाशों के लिए काल बन गई और हर दूसरे दिन एनकाउंटर होने लगे. महज 70 दिनों में एसटीएफ ने दो दर्जन से अधिक बदमाशों को मार गिराया. बावजूद इसके पूर्वांचल से ना तो अपराध खत्म हुआ और ना ही अपराधी.
ना अपराध खत्म हुआ और न अपराधी
चूंकि हरिशंकर तिवारी के समय में ही अपराध का राजनीतिकरण और राजनीति का अपराधीकरण हो चुका था. ऐसे में तमाम बदमाश राजनीति में आकर बाहुबली हो गए. वहीं कई राजनेताओं ने अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए बदमाशों को संरक्षण देना शुरू कर दिया. खुद मुख्तार सपा प्रमुख मुलायम सिंह की शरण में चला गया था. इसी प्रकार बृजेश सिंह और धनंजय सिंह आदि ने भी राजनीतिक संरक्षण हासिल कर ली. फिर बाद में बाहुबलियों की सूची में इलाहाबाद में अतीक अहमद, नोएडा में डीपी यादव, गुड्डू पंडित, गाजियाबाद में सतबीर गुर्जर और महेंद्र फौजी समेत सौ से अधिक बाहुबली शामिल हो गए.