सूरत से मोरारजी देसाई ने पांच बार जीत दर्ज की थी
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सूरत गुजरात राज्य का एक मुख्य शहर है. यह शहर डायमंड और कपड़ा उद्योग के लिए जाना जाता है. इसलिए इस शहर को डायमंड, सिल्क सिटी भी कहा जाता है. यह देश का आठवां सबसे बड़ा शहर और नौवां सबसे बड़ा शहरों का समुह है. यहां कारोबार के लिहाज से यह शहर पूरे में भारत में अपनी पहचान रखता है वहीं राजनीतिक दृष्टि से भी सूरत लोकसभा सीट काफी महत्वपूर्ण है. देश के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई यहां से चुनाव लड़कर संसद पहुंचे थे. मोरारजी देसाई इस सीट से लगातार पांच बार सांसद रहे थे. उन्होंने पहली बार इस सीट पर 1957 में जीत दर्ज की थी इसके बाद वह 1977 तक लगातार यहां से चुनाव जीतते रहे.
सूरत शुरुआती चुनावों में कांग्रेस पार्टी का गढ़ था. 1984 तक पार्टी यहां लगातार जीत दर्ज करती रही लेकिन इसके बाद यहां की जनता ने कांग्रेस से जो मुंह फेरा फिर कांग्रेस की तरफ कभी नहीं किया. बीजेपी 1989 से यहां लगातार जीत दर्ज कर रही है. वर्तमान में बीजेपी की दर्शन विक्रम जरदोश सूरत की सांसद हैं.
दर्शन विक्रम जरदोश की तीसरी जीत
दर्शन विक्रम जरदोश ने कांग्रेस पार्टी के अशोक पटेल को शिकस्त दी है. बीजेपी की जरदोश ने यहां एकतरफा जीत हासिल की है. उन्हें यहां 74.5% मिले जबकि कांग्रेस पार्टी के अशोक पटेल को 23.2% वोट मिले थे. तीसरे स्थान पर रहे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विजय शेनमारे को 0.5%, चौथे स्थान पर रहे निर्दलीय सुरवाडे संतोष अवधूत (गब्बर) को 0.2% और पांचवे स्थान पर रमेशभाई पी. बरैया 0.1% को 0.1% वोट मिले थे.
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2019 में 5 लाख वोटों से बीजेपी की जीत
बीजेपी के दर्शन विक्रम जरदोश ने कांग्रेस के अशोक पटेल को 5,48,230 वोटों से हराया था. विक्रम जरदोश को जहां 795,651 वोट मिले वहीं कांग्रेस के अशोक पटेल (अढेवाड़ा) को 247,421, तीसरे स्थान पर रहे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
के विजय शेनमारे को 5,735, चौथे स्थान पर रहे निर्दलीय सुरवाडे संतोष अवधूत (गब्बर) 2,348 और पांचवे स्थान पर रहे उम्मीदवार 0.2% स्वतंत्र रमेशभाई पी. बरैया को महज 1,057 वोट मिले थे. 2019 में यहां कुल 14 उम्मीदवार थे. इससे पहले 2014 में बीजेपी के दर्शन विक्रम जरदोश ने कांग्रेस पार्टी के नैषध भूपतभाई देसाई को 5,33,190 वोटों से हराया था.आम आदमी पार्टी के मोहनभाई बी पटेल को महज 18,877 वोट मिले थे. जबकि बीएसपी के ओमप्रकाश श्रीवास्तव को नोटा के 10,936 से भी कम 6,346 वोट मिले थे.
सूरत का चुनावी इतिहास
सूरत में 1952 में हुए सबसे पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी के कनयालाल देसाई ने जीत दर्ज की थी. इसके बाद 1957 में मोरारजी देसाई ने जीत दर्ज की. मोरारजी देसाई 1957, 1962, 1967, 1971 और 1977 में लगातार पांच बार जीत दर्ज की. उन्होंने पहले चार बार कांग्रेस की टिकट पर जबकि पांचवी बार जनता पार्टी की टिकट पर चुनाव जीता था. 1977 में चुनाव जीत दर्द करने के बाद वह भारत के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने थे. 1980 ओर 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सीडी पटेल सूरत के सांसद बने. 1989 में यहां बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की. बीजेपी के काशीराम राणा ने यहां से संसद पहुंचे. काशीराम राणा ने 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, और 2004 में लगातार छह बार जीत दर्ज की. 2009 से 2019 तक बीजेपी की दर्शन जरदोश लगातार तीन बार जीत दर्ज कर चुकी है.
मुकेश भाई दलाल बीजेपी उम्मीदवार
2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक सूरत जिले की जनसंख्या लगभग 61 लाख है. इस जिले की 85.53 फीसदी जनसंख्या साक्षर है. जिसमें पुरूष साक्षरता दर 89.56 फीसदी और महिला साक्षरता दर 80.37 फीसदी है. बात लोकसभा की करें तो सूरत लोकसभा सीट के अंतर्गत सात विधानसभा- कटा ग्राम, ओलपाड, करंज,वरच्छा रोड, सूरत पूर्व,सूरत पश्चिम और सूरत उत्तर सीट शामिल है. सूरत लोकसभा क्षेत्र में कुल 16,55,704 मतदाता हैं. इनमें पुरुष मतदाताओं की संख्या 7,64,304 जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 8,91,341 है. यहां थर्ड जेंडर निर्वाचक 59 है. बीजेपी ने यहां लगातार तीन बार जीत दर्ज करने वाली दर्शन जरदोश का टिकट काट कर मुकेश भाई दलाल को उम्मीदवार बनाया है जबकि कांग्रेस पार्टी ने नीलेश कुंबानी को मैदान में उतारा है.
सूरत शहर की स्थापना पंद्रहवी सदी में हुआ था. 12वीं से 15वीं शताब्दी तक यह शहर मुस्लिम शासकों, पुर्तगालियों, मुगलों और मराठों के आक्रमणों का शिकार हुआ, सूरत देश का एक प्रमुख कारोबारी शहर है. यहां डायमंड, सोने चांदी के साथ कपड़ा उद्योग पूरे भारत में प्रसिद्ध है. यहां के सूती, रेशमी, किमख़्वाब जरीदार कपड़ा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है.