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Tuesday, December 3, 2024
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कांग्रेस के लिए संजीवनी बनते रहे लालू, लेकिन बिहार में पार्टी को घुटनों पर ला दिया | Lalu Prasad Yadav Congress RJD Pappu Yadav purnia kanhaiya kumar begusarai seat lok sabha election 2024


कांग्रेस के लिए संजीवनी बनते रहे लालू, लेकिन बिहार में पार्टी को घुटनों पर ला दिया

कांग्रेस के लिए संजीवनी बनते रहे लालू, लेकिन

कांग्रेस के लिए हमेशा मजबूती से खड़े रहने वाले लालू प्रसाद बिहार में अब कांग्रेस के साथ खेल करते देखे जा रहे हैं. पूर्णियां से पप्पू यादव और बेगूसराय से कन्हैया कुमार का टिकट काटकर लालू ने साबित कर दिया कि कोई कद्दावर नेता उन्हें कांग्रेस का कतई पसंद नहीं है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस पप्पू का इस्तेमाल सीमांचल में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए करना चाह रही थी. वहीं अगड़ों में वापस पैठ बनाने के लिए कांग्रेस कन्हैया कुमार को बेगूसराय से लड़ाना चाह रही थी. लेकिन कांग्रेस की रणनीति को भांपकर लालू प्रसाद ने दोनों नेताओं के पर कतर दिए और कांग्रेस को घुटनों पर ला खड़ा किया.

सीमांचल में पप्पू का टिकट लालू प्रसाद ने क्यों काटा है?

सीमांचल के चार जिलों में मुस्लिम आबादी 40 फीसदी से लेकर तकरीबन 65 फीसदी है. इसलिए कांग्रेस पप्पू यादव की पार्टी का कांग्रेस में विलय कराकर पूर्णियां से लड़ाने की सोची थी. पप्पू यादव कोशी-सीमांचल में एक्टिव रहे हैं और पिछले एक साल से पूर्णियां में अपने लिए कड़ी मेहनत करते देखे जा रहे थे. माना जा रहा था पप्पू को आगे कर कांग्रेस ओबीसी ओर दलितों में भी पैठ बनाने में कामयाब रहेगी. वहीं तेलांगना और कर्नाटक चुनाव के परिणाम के बाद मुसलमान कांग्रेस की तरफ टकटकी लगाकर देख रहे हैं. लेकिन कांग्रेस की सारी योजना धरी की धरी रह गई. कांग्रेस आरजेडी पर दबाव बनाती उससे पहले ही आरजेडी ने पूर्णियां से पप्पू भारती को उतारकर पप्पू का खेल खराब कर दिया. ज़ाहिर है कांग्रेस की सोच धरी की धरी रह गई और कांग्रेस लालू प्रसाद के आगे घुटनों पर खड़ी दिख रही है.

दरअसल, ऐसा लालू प्रसाद ने बेगूसराय में कन्हैया कुमार के साथ भी किया है. कन्हैया मुसलमानों में भी काफी लोकप्रिय देखे गए हैं. उनकी सभा में अच्छी भीड़ देखी जाती रही है. कांग्रेस कन्हैया कुमार के सहारे अगड़ों, मुसलमानों और बीजेपी विरोधी वोटों में विश्वास ज़माने की सोच रही थी लेकिन लालू प्रसाद को ये दोनों नेता इतने नापसंद दिखे की इनकी टिकट काटकर बिहार से चलता करने में लालू प्रसाद ने कोई कसर नहीं छोड़ी है. ज़ाहिर है एक क्षत्रिय दल के तौर पर लालू प्रसाद इन दोनों नेताओं को कांग्रेस के रिवाइवल के लिए गंभीर तौर पर देख रहे हैं. इसलिए लालू प्रसाद के माई समीकरण को तोड़ने का दम इन दोनों नेताओं में है. ज़ाहिर है लालू बिहार में कांग्रेस के पक्ष में ऐसा समीकरण बनता नहीं देख सकते हैं. इसलिए पप्पू और कन्हैया को बेटिकट कर लालू प्रसाद ने आरजेडी और अपने बेटे तेजस्वी की राजनीति की डगर पर संभावित खतरों को किनारा कर दिया है.

कांग्रेस को बैशाखी के सहारे ही चलाना चाहते हैं लालू

लालू प्रसाद कांग्रेस के कहने पर 7 से बढ़कर 9 सीटें देने के लिए तैयार हो गए. लेकिन पप्पू यादव की सीट पर खेलकर कांग्रेस के जनाधार वाले नेता पप्पू यादव का पत्ता साफ तौर पर काट दिया. कन्हैया कुमार की जगह सीपीआई के उम्मीदवार को टिकट देकर लालू प्रसाद ने अपनी मंशा पहले ही जता दी थी. लेकिन पप्पू के पीछे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को खड़ा देखकर बीमा भारती से पहले ही प्रेस कन्फ्रेंस कर कांग्रेस के साथ खेल करने से कोई परहेज नहीं किया. ज़ाहिर है लालू प्रसाद कटिहार भी देने को तैयार नहीं थे. लेकिन तारीक अनवर को खतरना न मानते हुए कटिहार पार मान गए लेकिन पूर्णियां को धीनकर लालू प्रसाद कांग्रेस को बैशाखी के सहारे ही देखना चाहते हैं ये साफ कर दिया. ऐसे में मुजफ्फरपुर,महारजगंज से लेकर भागलपुर,समस्तीपुर जैसी 9 सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार तो खड़ी कर रही है. लेकिन इनमें से कोई भी उम्मीदवार अपने दम पर चुनाव निकालने की स्थिती में हो ऐसी संभावनाएं नहीं के बराबर है. ज़ाहिर है बिहार में कांग्रेस आरजेडी के सहारे राजनीति करने को मजबूर रहे हैं ऐसी स्थिती लालू प्रसाद बनाए रखना चाह रहे हैं.

लालू कांग्रेस के दोस्त हैं या दोस्त के रूप में चालाक दुश्मन ?

दरअसल इंडिया गठबंधन में कांग्रेस को मजबूत करने के लिए लालू प्रसाद ने ममता बनर्जी से लेकर अखिलेश यादव और तमिलनाडू के नेता स्टालिन से बात करने में कोई परहेज नहीं दिखाया था. कहा जा रहा था कि नीतीश उन दिनों नेताओं से घूम घूमकर मिल रहे थे लेकिन बीजेपी विरोधी नेताओं को एक साथ लाने में लालू प्रसाद प्रमुथ तौर पर काम कर रहे थे. बीजेपी विरोधी होने की उनकी विश्वसनियता बीजेपी विरोधी पार्टियों को उनकी ओर खींच रही थी और अरविन्द केजरीवाल सरीखे नेता भी तेजस्वी यादव और लालू प्रसाद से बात कर एंटी एनडीए फ्रंट बनाने को लेकर तैयार हुए थे. लेकिन इन सबमें लालू प्रसाद खुद की पार्टी की भलाई देख रहे थे. एंटी-बीजेपी छवि लालू प्रसाद के लिए माई समीकरण को आधार वोट बैंक मजबूत रखने में कामयाब रही है. लेकिन मुस्लिम बिहार में कांग्रेस की तरफ शिफ्ट करने लगे ऐसा लालू प्रसाद कदापि नहीं चाहते हैं.

ज़ाहिर है इसलिए सीमांचल और कोशी सहित दक्षिण बिहार में लालू प्रसाद कांग्रेस के कद्वावर नेता को पनपने देने नहीं चाहते हैं. एक क्षेत्रिय दल की भांति लालू प्रसाद बखूबी समझते हैं कि कांग्रेस की बिहार में मजबूती आरजेडी के कमजोर होने की वजह होगी. इसलिए कांग्रेस को कमजोर बनाए रखने में ही उनकी राजनीतिक हित सधता दिख रहा है. ज़ाहिर है इसलिए लालू प्रसाद कांग्रेस के साथ तबसे मजबूती से दिख रहे हैं जबसे कांग्रेस बिहार में लगातार कमजोर दिखी है. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को राज्यसभा भेजकर लालू प्रसाद आधार हीन नेताओं को बिहार पाल-पोसकर रखना चाहते हैं. यही वजह है कि जब भी कोई कद्वावर नेता कांग्रेस में आकर कांग्रेस की ज़मीन मजबूत करना चाहता है तो आरजेडी उसे चलता कर देती है. ऐसा पिछले लोकसभा चुनाव में कीर्ति झा आजाद के साथ भी हुआ था जब वो दरभंगा से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने पहुंचे थे. ब्राह्मणों के बड़े चेहरे के तौर पर कीर्ति आजाद उभर सकते थे और वो पूर्व कांग्रेस के सीएम भगवत झा आजाद के बेटे हैं. लेकिन आरजेडी ने उन्हें बिहार से रुखसत कर कांग्रेस छोड़ने को मजबूर कर दिया.

केन्द्र में कांग्रेस के दोस्त क्यों दिखते रहे हैं लालू ?

सोनियां गांधी के विदेश मूल का मुद्दा हो या राहुल को नेता बनाए रखने की बात,लालू प्रसाद केन्द्र की राजनीति में कांग्रेस के साथ दिखे हैं. इतना ही नहीं साल 2004 से लेकर 2009 तक केन्द्र में सरकार कांग्रेस के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने वाले लालू प्रसाद बिहार प्रदेश में कांग्रेस को खोखला करते रहे और कांग्रेस लालू की गोद में बैठकर अपने लिए बिहार में कुछ सीटों के लिए मोहताज होती रही. आज उसी का परिणाम है कि कांग्रेस के आधार वोटर कांग्रेस से काफी दूर जा चुके हैं. वहीं राष्ट्रीय राजनीति में प्रासंगिकता कायम रखने के लिए लालू प्रसाद कांग्रेस के हिमायती दिखते रहे हैं. लेकिन चतुर क्षेत्रिय दल की तरह लालू प्रसाद को अहसास है कि कांग्रेस का रिवाइवल उनके लिए खतरे की घंटी हो सकती है. इसलिए बिहार में कांग्रेस को घुटनों के बल खड़े करने में ही अपने परिवार और पार्टी की भलाई समझ रहे हैं.



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