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Saturday, November 2, 2024
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औरंगाबाद लोकसभा सीट: पहले शिवसेना को गढ़, बाद में AIMIM का बना मजबूत किला | Aurangabad Lok Sabha Seat First the stronghold of Shiv Sena later the strong fort of AIMIM


औरंगाबाद लोकसभा सीट: पहले शिवसेना को गढ़, बाद में AIMIM का बना मजबूत किला

औरंगाबाद लोकसभा सीट

औरंगाबाद महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से एक है. औरंगाबाद लोकसभा सीट के भीतर कुल छह विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें कुटुम्बा, औरंगाबाद, रफीगंज, गुरुआ, इमामगंज और टिकारी सीटें हैं. कुटुम्बा और इमामगंज रिजर्व सीटें हैं. औरंगाबाद महाराष्ट्र का एक प्रमुख शहर है और मराठवाड़ा क्षेत्र में स्थित है. यह शहर अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है. औरंगाबाद एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक केंद्र है, जिसमें कई प्राचीन और मध्यकालीन शिल्पकला और ऐतिहासिक स्थल हैं. यहां पर मुघल राजवंशों के समय के ऐतिहासिक स्मारक भी हैं. औरंगाबाद में बिम्बिसार, अजातशत्रु, चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक जैसे शासकों ने राज किया.

महाराष्ट्र औरंगाबाद का एक बड़ा और चर्चित जिला है और यहां विश्व प्रसिद्ध अजंता और एलोरा की गुफाएं हैं. इन गुफाओं को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर लिया गया है. इन गुफाओं का निर्माण 200 ईसा पूर्व में हुआ. बताया जाता है कि औरंगजेब ने अपने जीवन का काफी हिस्सा यहीं पर बिताया था और यहीं पर उसकी मौत भी हुई थी. यही रबिया दुर्रानी का मकबरा भी है जो कि औरंगजेब की पत्नी थी.

शुरू में कांग्रेस का गढ़ बाद में शिवसेना की धमक

इस सीट के राजनीतिक परिदृश्य की बात करें तो शुरू में यह कांग्रेस का गढ़ रहा, लेकिन 1999 आते-आते शिवसेना ने यहां अपना पैर जमा लिया. 1952 में जब पहली बार लोकसभा के चुनाव हुए थे तब यहां से कांग्रेस पार्टी के सुरेश चंद्र पहली बार सांसद बने. इसके बाद 1957 में कांग्रेस ने स्वामी रामानंद तीर्थ को टिकट दिया और उन्हें जीत मिली. 1962 में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदला और भाऊराव दगदु राव देशमुख को टिकट दिया और वो पार्टी की उम्मीदों पर खरे भी उतरे. 1967 में भी वही जीते.

1977 में जनता पार्टी का जीत

1977 के लोकसभा चुनाव में जब देश में कांग्रेस के खिलाफ में लहर थी तब इस सीट पर जनता पार्टी का खाता खुला और बापू काळदाते सांसद बने. हालांकि, 1980 के चुनाव में यह सीट फिर से कांग्रेस के पाले में चली गई और काजी सलीम यहां से एमपी बने. 1984 में के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से साहेबराव डोणगावकर को टिकट दिया और वो जीत भी गए. 1989 से 1996 तक यह सीट शिवसेना के कब्जे में रही और मोरेश्वर सावे और प्रदीप जयसवाल सांसद बने थे.

1999 में शिवसेना को मिली जीत

1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने रामकृष्ण बाबा पाटिल को मैदान में उतारा और वो सांसद चुने गए. इसके बाद 1999 में यह सीट शिवसेना के पाले में चली गई और 2014 तक उसी के कब्जे में रही. 2019 के चुनाव में यहां सियासी समीकरण बदले और जनता ने अपना मूड चेंज किया और सीट एआईएमआईएम के हवाले चली गई और इम्तियाज जलील यहां से सांसद बन गए. इससे पहले इस सीट पर एआईएमआईएम का अपना कोई राजनीतिक इतिहास नहीं था. सीट पर जातीय समीकरण की बात करें तो यहां मुस्लिम वोटर की संख्या अधिक है.

2019 के चुनावी आंकड़े

2019 के चुनावी आंकड़ों की बात करें तो इस सीट पर पुरुष मतदाताओं की संख्या 993970 थी. वहीं, महिला मतदाताओं की संख्या 892289 थी. इस तरह से देखें तो 2019 के लोकसभा चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या 1886284 थी.

महाराष्ट्र का इस औरंगाबाद जिले का नाम अब संभाजीनगर कर दिया गया है. राज्य सरकार के प्रस्ताव पर केंद्र की मंजूरी के बाद यह संभव हो सका है। केंद्र ने 24 फरवरी 2023 को इस प्रस्ताव पर अपनी हरी झंडी दी है. हालांकि, लोकसभा सीट का नाम अभी भी औरंगाबाद ही है.



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