fbpx
Saturday, September 7, 2024
spot_img

भारत पर दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं, संप्रभु देश जैसा सम्मान दे अमेरिका! | India rejects remarks by US Germany on opposition leader Arvind Kejriwal arrest US diplomat summoned


भारत पर दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं, संप्रभु देश जैसा सम्मान दे अमेरिका!

विदेश मंत्री एस जयशंकर. (फाइल फोटो)

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार की दोपहर अमेरिकी राजदूतावास से जवाब तलब किया. वे केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिकी विदेश मंत्रालय की टिप्पणी से बहुत नाराज थे. उन्होंने अमेरिका की कार्यवाहक मिशन उप प्रमुख ग्लोरिया बर्बेना को बुला कर कहा कि यह किसी संप्रभु देश के मामले में दखलंदाजी है. बाद में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बयान जारी किया, “भारत में कुछ कानूनी कार्यवाहियों के बारे में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता की टिप्पणियों पर हम कड़ी आपत्ति जताते हैं. कूटनीति में किसी भी देश से दूसरे देशों की संप्रभुता और आंतरिक मामलों का सम्मान करने की अपेक्षा की जाती है. अगर मामला सहयोगी लोकतांत्रिक देशों का हो तो यह जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है. ऐसा ना होने पर गलत उदाहरण पेश होते हैं.” अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा था, “अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर हमारी करीबी नजर है. हम मुख्यमंत्री केजरीवाल के लिए पारदर्शी कानूनी प्रक्रिया की उम्मीद करते हैं.”

जाहिर है, यह टिप्पणी किसी भी संप्रभु देश को नागवार गुजरेगी. अमेरिका कौन होता है, किसी देश की न्यायिक प्रक्रिया पर नजर रखने वाला? हमारे यहां एक गंवई कहावत है, सूप बोले तो बोले, चलनी का बोले, जेहिमा बहत्तर छेद हैं! अर्थात् सूप तो आवाज करेगा तो क्या चलनी भी आवाज करेगी जो छिद्रों से पटी पड़ी है. यही हाल अमेरिका की जो बाइडेन सरकार का है. भारत और भारतीयों के हर कदम पर आलोचना करना अमेरिकी सरकार अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानती है. केजरीवाल को ED द्वारा गिरफ्तार करना अमेरिका को चुभता है तो कभी बाल्टीमोर ब्रिज के टूटने की तोहमत वहां भारतीयों पर लगाई जाती है. भारतीयों के विरुद्ध सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कई तरह की नस्लवादी टिप्पणियां आई हैं. जबकि यह जहाज सिंगापुर की एक कंपनी का है. इसके चालक दल में सभी 22 लोग भारतीय थे.

डाली नाम का यह मालवाहक जहाज बाल्टीमोर शहर के फ्रांसिस स्कॉट ब्रिज से मंगलवार की तड़के टकरा गया था. देखते ही देखते यह पुल ध्वस्त हो गया. पुल गिरने से आठ लोग पटाप्सको नदी में बह गए. इनमें से छह अभी भी लापता हैं. चालक दल की सूझ-बूझ से ज़्यादा लोगों हताहत होने से बचा लिया गया. मूवलैंड के गवर्नर ने भी चालक दल की प्रशंसा की है. लेकिन चूंकि क्रू में सभी भारतीय थे इसलिए अमेरिका में सोशल मीडिया पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आईं. ये टिप्पणियां भारतीयों के प्रति नफरत से भरी हैं. दरअसल अमेरिका में भारतीयों की तादाद अधिक होती जा रही है और वे हर क्षेत्र में अमेरिकी गोरों की बराबरी कर रहे हैं. बल्कि कम्प्यूटर साइंस में तो वे आगे हो गए हैं. आईटी क्षेत्र की अधिकांश नौकरियां भारतीय लोगों के पास है. इसलिए अमेरिकी श्वेत भारतीयों से कुढ़ते हैं.

एक तरह से यह अमेरिकी दादागिरी

अमेरिका में भारतीय छात्रों का तो अकेले निकलना मुश्किल है. पिछले वर्ष 26 भारतीय छात्रों की हत्या हुई थी. इस वर्ष के तीन महीनों में दस भारतीय छात्रों की हत्या हो चुकी है. अमेरिका ने इन हत्याओं पर कभी कोई सख्त टिप्पणी नहीं की परंतु भारत के आंतरिक मामलों में टिप्पणी करना वह अपना अधिकार समझता है. एक तरह से यह अमेरिकी दादागिरी है. दरअसल बाइडेन प्रशासन इस बात से बौखलाया हुआ है कि भारत रूस से न तो दोस्ती खत्म कर रहा है न ही यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में वह रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन की निंदा कर रहा है. अभी पुतिन जब पांचवीं बार रूस के राष्ट्रपति बने तो भारत ने आगे बढ़ कर पुतिन का स्वागत किया. भारत का सदैव से मानना रहा है कि रूस उसका सबसे भरोसेमंद दोस्त है. इसलिए रूस भले चीन से भी गलबहियां करे किंतु भारत इन सबकी अनदेखी करता है.

बाइडेन को निजी तौर पर भी भारत से खुन्नस

बाइडेन को निजी तौर पर भी भारत से खुन्नस है. इसकी एक वजह तो अगले वर्ष होने वाला अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव है. बाइडेन को पता है, कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप से दोस्ती निभा सकते हैं. इंडियन डायसपोरा अमेरिका में बहुत ताकतवर है. पैसे के मामले में भी और राजनीतिक ताकत में भी. भारतीय लोग वहां एकतरफा वोटिंग करते हैं. इसलिए भी राष्ट्रपति जो बाइडेन किसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अर्दब में लेना चाहते हैं. मगर भारत उनकी हर हरकत पर प्रतिक्रिया करता है. अभी केजरीवाल की गिरफ्तारी पर जर्मनी ने भी केजरीवाल की ED द्वारा गिरफ्तारी पर बड़े नरम लहजे में ऐसी ही बयानबाजी की थी. भारत ने फौरन जर्मन दूतावास के डिप्टी चीफ जॉर्ज एनजवीलर को तलब कर लिया था. उन्हें कहा था कि भारत आंतरिक मसलों पर विदेशी हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करेगा.

अमेरिका की दखलंदाजी का हर स्तर पर विरोध

जर्मनी ने सिर्फ इतना ही कहा था कि आरोपों का सामना कर रहे अरविंद केजरीवाल किसी भी अन्य भारतीय नागरिक की तरह निष्पक्ष सुनवाई के हकदार थे. इसमें कोई शक नहीं कि जर्मनी ने यह बयान अमेरिका के उकसावे पर दिया होगा. लेकिन भारत की सख्त प्रतिक्रिया से वह चुप बैठ गया. अमेरिका ने दस दिन पहले भी CAA लागू करने के मुद्दे पर कुछ इसी तरह की टिप्पणी की थी. तब भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा था इतिहास को समझे बिना CAA पर कोई भी टिप्पणी करना ठीक नहीं है. हम विभाजन के दौरान हुई नागरिकता संबंधी जटिलताओं को सुलझाने के लिए ही CAA ले कर आए हैं. उन्होंने कहा था अमेरिका हमारी समस्याओं को नहीं समझता है. भारत अब अमेरिका की दखलंदाजी का हर स्तर पर विरोध कर रहा है.

भारत को छेड़ने से बाज नहीं आ रहा अमेरिका

अमेरिका की दिक्कत यह है कि वह भारत को छोड़ना भी नहीं चाहता और उसे छेड़ने से भी बाज नहीं आ रहा. भारत को छोड़ देने का मतलब है, महाबली चीन को छुट्टा खेल करने देना. आज चीन जिस तरह अमेरिका से आर्थिकी में होड़ ले रहा है, वह संकेत है कि एशिया के देशों में अमेरिकी दादागिरी अब नहीं चल पाएगी. ऐसे में अपने एकमात्र सहयोगी देश भारत को छोड़ना अमेरिका के लिए स्थायी सिरदर्द बन जाएगा. आबादी में भारत चीन को टक्कर दे रहा है. यह बढ़ती आबादी ही आज किसी देश की GDP को ऊपर चढ़ाती है. इस मामले में भारत चीन से इक्कीस ही है. पूरे विश्व में जैसे-जैसे चीनी लोग पहुंच रहे हैं, उसी संख्या में भारतीय भी. मेधा और राजनीतिक इच्छाशक्ति में भारतीय लोग चीनियों से कहीं आगे हैं. इसीलिए अमेरिका, कनाडा यूके में भारतीय आज शिखर पर हैं. भारतीयों का यह दबाव ही आज नरेंद्र मोदी की शक्ति बन गया है. इसीलिए अमेरिका हो या जर्मनी फौरन सख्त जवाब पा जाता है.

संप्रभु देश जैसा सम्मान दे अमेरिका

विदेशों में जा कर बसना कोई पलायन नहीं बल्कि भारतीय मध्य वर्ग के सपनों की उड़ान है. कोई भी व्यक्ति विदेश तब ही जा पाता है, जब उसके पास पैसा होता है. किसी भी व्यक्ति के लिए अमेरिका, कनाडा अथवा यूरोप जाकर बसने में कम से कम दस लाख रुपए तो चाहिए ही. वीज़ा, हवाई टिकट और कुछ दिनों तक बेरोज़गार यूं ही नहीं रहा जा सकता. इसलिए विदेश में पलायन आज उच्च मध्यवर्ग ही कर सकता है. यह वर्ग अपने काम में कुशल है. भारत के प्रीमियर संस्थानों से इसने डिग्री हासिल की हुई है, इसीलिए उसे इन पश्चिमी देशों में काम मिल रहा है. सत्य यह है कि अमेरिका या यूरोप की हमें जरूरत है तो उन्हें भी हमारी जरूरत है. हम परस्पर अन्योन्याश्रित हैं. इसलिए बराबरी का व्यवहार होना चाहिए. इस बराबरी के चलते कोई भी देश किसी दूसरे देश पर दादागिरी नहीं कर सकता. इसलिए अमेरिका हमें एक संप्रभु देश जैसा सम्मान दे. हम अपनी न्यायिक व्यवस्था का सम्मान करते हैं. हमें कोई पाठ न पढ़ाए.



RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

Most Popular